DNA जल्द बन सकता है दुनिया का सबसे छोटा हार्ड ड्राइव, जानें कैसे

वर्ष 1950 से वैज्ञानिक डेटा संग्रह करने के उपाय हेतु डीएनए के उपयोग की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। यदि इस वैज्ञानिक खोज को सफलता मिलती है तो मानव डीएनए दुनिया की सबसे छोटी हार्ड ड्राइव के रूप में तैयार हो जाएगा।

Report :  Ankit Awasthi
Published By :  Deepak Kumar
Update:2021-12-07 19:47 IST

वर्तमान में दुनियाभर में डेटा का उपयोग बेहद नाटकीय रूप से बढ़ा है और आगामी 2020 से 2025 के बीच इसके 6 गुना और बढ़ने के आसार भी देखे जा रहे हैं। पिछले साल वैश्विक स्तर पर 33 जेटाबाइट डेटा का निर्माण किया गया था, जिसमें 2025 तक 175 जेटाबाइट्स अनुमानित थे। आपको बात दें कि एक जेटाबाइट एक लाख करोड़ गीगाबाइट के बराबर होता है। वहीं, वर्तमान में डेटा संग्रहण प्रणाली (data storage system) को संशोधित किया जाना अनिवार्य है जिससे कि बड़ी मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सके।

भारी मात्रा में डेटा को संग्रहित करने के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके चलते समाधान तलाशे जा रहे हैं। आपको यह सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन मानव शरीर में इस समस्या का समाधान मौजूद है। वर्ष 1950 से वैज्ञानिक डेटा संग्रह करने के उपाय हेतु डीएनए (DNA) के उपयोग की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। यदि इस वैज्ञानिक खोज को सफलता मिलती है तो मानव डीएनए (DNA) दुनिया की सबसे छोटी हार्ड ड्राइव के रूप में तैयार हो जाएगा।

डीएनए में एकत्र होता है बहुत सा डेटा

डीएनए (DNA) को मानव शरीर के एक ऐसे सूक्ष्म अंग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो हर जीव की संरचना से लेकर उसके व्यवहार तक के डेटा की सुरक्षा करता है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी यूएसए (Northwestern University USA) में सेंटर फॉर सिंथेटिक बायोलॉजी (center for synthetic biology) में केमिकल एंड बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग (chemical and biological engineering) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कीथ ई.जे. टायो (Associate Professor Dr. Keith EJ tayo) के मुताबिक-"डीएनए बहुत ही ज्ञात अंग है और शरीर की हर कोशिका में हमारे पास इसकी एक प्रति है मौजूद है।"

डीएनए में एक हार्ड ड्राइव जैसी प्रणाली होती है मौजूद

कंप्यूटर सूचनाओं को बाइनरी अंकों या बिट्स (0 और 1) के रूप में संग्रहीत किया जाता है तथा इन बिट्स या अंकों की मदद से ही प्रोग्राम या एक्शन को कार्य करने का निर्देश दिया जाता है। ठीक इसी प्रकार डीएनए में चार न्यूक्लिक एसिड बेस- ए, टी, जी और सी मौजूद होते हैं , जो एक साथ जीन का निर्माण करते हैं। इस जुड़ी चीजों पर शोध कर रहे शोधकर्ताओं के मुताबिक डीएनए आधारित डेटा संग्रहण बाइनरी डेटा को कुछ सीमित सीमाओं के साथ एन्कोड और डीकोड करने के लिए संश्लेषित स्ट्रैंड का उपयोग करने में सक्षम हो सकेगा।

शोधकर्ताओं द्वारा डेटा को संग्रहित करने के तरीके तथा डीएनए में जानकारी संग्रहित करने का एक इन-विट्रो तरीका खोज निकाला गया है। अमेरिकन केमिकल सोसायटी (American Chemical Society) के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि यह विधि निर्धारित समय के भीतर ही पर्यावरणीय संकेतों या टर्टल्स के लिए बिना छेड़छाड़ की दर्ज टीडीटी के साथ की जाती है। प्राकशित अध्ययन की सह लेखिका नमिता भान ने शोध के बारे में कहा कि इसके परिणाम सकारात्मक और उत्साहजनक हैं।

तकनीकी चुनौतियों से निपटना अभी है बाकी

एक अध्ययन से यह पता चला है कि शोधकर्ता आमतौर पर एक घंटे में एक बाइट के 3/8वें हिस्से की रिपोर्ट करने में सक्षम हैं तथा इस क्षमता को बढ़ाया भी जा सकता है। प्रोफेसर डॉ कीथ ई.जे. टायो (Associate Professor Dr. Keith EJ tayo) के मुताबिक-"एक डिजिटल तस्वीर लाखों बाइट्स से बनी होती है और इसे एक मानक हार्ड ड्राइव पर पढ़ने या लिखने के लिए सेकंड का केवल एक हिस्सा ही लगता है। ऐसे में बहुत सारे डीएनए के साथ तेज़ डेटा संग्रहण होने के चलते इसे संबोधित करने में कई तकनीकी कठिनाइयाँ और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।"

कंप्यूटर के प्रदर्शन को प्रभावित करता है बेहतर संग्रहण

आमतौर पर डेटा को पढ़ने और लिखने में लगने वाला समय कंप्यूटर की प्रोसेसिंग स्पीड से काफी अलग होता है, तथा इसी के चलते यह नई तकनीक यूजर्स को इससे जुड़े फायदे भी उपलब्ध करवाएगी। वर्तमान में कंप्यूटर के प्रदर्शन में बेहतर सुधार हेतु हार्ड डिस्क ड्राइव और सॉलिड-स्टेट ड्राइव का उपयोग किया जाता है। इसी के परिणामस्वरूप अब वैज्ञानिक और शोधकर्ता ऊर्जा का उपयोग करने वाले संग्रहण को निर्मित करने की कोशिश में लगे हुए हैं जो मौजूदा तकनीक से काफी तेज होगा।

(अनुवाद-रजत वर्मा)

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