Microsoft Cloud Outage: क्या होगा जब सब कंप्यूटर बन्द हो जाएंगे ?
Microsoft Cloud Outage Disadvantage: दुनिया की दिग्गज कंप्यूटर कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट का सिस्टम ही बैठ गया और तकनीक पर निर्भर दुनिया थम सी गई। 170 देशों में 85 लाख कंप्यूटर ठप हो गये थे।
Microsoft Cloud Outage Disadvantage: हमारी जिंदगी, रोजमर्रा के कामकाज, हमारी नौकरियां, हमारे बिजनेस, हमारा रुपया पैसा, हमारी पहचान, हमारा सब कुछ एक ही चीज से जुड़ चुका है। एक ऐसा जुड़ाव जिसे हम जान नहीं रहे या जान कर भी अनजान बने हुए हैं।यह चीज है कंप्यूटर। जिन्होंने कभी कंप्यूटर कभी देखा नहीं, जिन्होंने कभी कम्प्यूटर चलाया नहीं, जिनका कभी कंप्यूटर से कोई लेना देना नहीं, उन सभी की भी जिंदगी कंप्यूटर पर टिकी हुई है। हद तो यह हो गयी है कि हमने एक आभासी दुनिया इसी कंप्यूटर व इस तरह के तमाम उपकरणों के सहारे तैयार कर ली है। अपनी इस आभासी दुनिया को हम वास्तविकता दुनिया से बेहतर बनाने में लगे रहते हैं।वास्तविक दुनिया से ज़्यादा समय हम आभासी दुनिया को देने लगे हैं।पर सोचिये ! अगर एक दिन कंप्यूटर अचानक ठप हो जाये या ठप कर दिया जाए तो क्या होगा? यह तो शायद ही हममें से किसी ने सोचा होगा। लेकिन जो होगा वह इतना भयानक होगा जो कि एटमी हमले से भी बदतर हो सकता है।
इसकी एक बहुत छोटी सी मिसाल हम अभी कुछ ही दिन पहले देख चुके हैं, जिसे इतिहास की सबसे बड़ी ग्लोबल तकनीकी समस्या कहा जा रहा है। इसमें दुनिया की दिग्गज कंप्यूटर कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट का सिस्टम ही बैठ गया और तकनीक पर निर्भर दुनिया थम सी गई। 170 देशों में 85 लाख कंप्यूटर ठप हो गये थे। यह था डिजिटल महामारी का एक छोटा सा नमूना। भले ही कंप्यूटर थोड़ी देर में चालू होने लगे थे। लेकिन इस झटके से पूरी तरह उबरने में ही कई हफ्ते लग जाएंगे।
हम कह सकते हैं कि हमें इससे क्या मतलब? ऐसा सोचने की गलती भी न करिएगा। गांव देहात में धान की रोपाई कर रहा किसान हो या बंगलुरु में बैठा सॉफ्टवेयर इंजीनियर। मतलब तो सबको है। आज पूरा बैंकिंग सिस्टम, पूरा रेलवे सिस्टम, पूरा एयरलाइन्स सिस्टम, पूरा आधार कार्ड सिस्टम, पैन कार्ड सिस्टम, पूरा कैशलेस सिस्टम, खसरा खतौनी सिस्टम, बिजली सप्लाई सिस्टम, डिफेंस सिस्टम, मोबाइल, टीवी, ईमेल से लेकर हॉस्पिटल सेवाएं ..... आप बस नाम लेते जाइये, हर सिस्टम कंप्यूटर से जुड़ा हुआ है, उसी पर टिका हुआ है। सबमें कंप्यूटर हैं। और सब सिस्टम को कंट्रोल कर रही हैं माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेजन जैसी विशाल कंपनियां।
हर काम को मशीनी दिमागों के हवाले किया जा चुका है
मान लीजिए ये सिस्टम अगर एक साथ बैठ जाएं या जानबूझ कर बैठा दिए जाएं तो क्या होगा? सब कुछ रुक जाएगा। तर्क दे सकते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है, जब कंप्यूटर नहीं थे तब तो सब कुछ मैनुअली होता था। लेकिन ऐसी तुलना न करने लगियेगा। अब सब काम मशीन ही करती है। हर काम को मशीनी दिमागों के हवाले किया जा चुका है, जहां कंप्यूटर चिप है और सॉफ्टवेयर है। बस। ये ठप हुआ तो आपकी जिंदगी ठहर जाएगी।
क्योंकि आप ने बच्चों को चुप रखने के लिए मोबाइल पकड़ा रखा है।उसे जोड, घटाव, गुणा- भाग व पहाड़े के लिए कम्प्यूटर पर आश्रित कर रखा है। नंबर याद रखना आप के बूते की बात नहीं रह गयी है। उसके लिए फ़ोन बुक के भरोसे हैं आप। पिछली चीजें जानने के लिए गूगल अंकल के सहारे के सिवाय आप के पास कोई चारा नहीं है। रास्ता भी अब आप को याद नहीं रहता। इसके लिए आप गूगल मैप के भरोसे रहते हैं। दिमाग़ तो आप को जवाब देता जा रहा है। आप क्रियेटर नहीं रह गये हैं। आप नकलची बन बैठे हैं।’एक क्लिक पर सब कुछ रखने’ व ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ के नारे ने आप को बैसाखी पर लाकर टिका दिया है।
समस्या यह है कि दुनिया सॉफ्टवेयर प्लेटफार्मों पर बहुत अधिक निर्भर हो गई है। कोई भी प्लेटफार्म पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अभी तो यह हालत तब है जब एआई का कब्जा होना शुरू ही हुआ है। जब वह छा जाएगा तब की कल्पना कीजिये। पहले ही पता चल चुका है कि एआई किसी इंसानी मस्तिष्क की तरह बर्ताव कर सकता है, वैसे ही मनोभाव प्रदर्शित कर सकता है। मनमानी पर भी उतारू हो सकता है।
हालांकि माइक्रोसॉफ्ट की गड़बड़ी के पीछे एक मानवीय चूक को दोषी माना गया है। लेकिन साजिशों की थ्योरी पर भरोसा करने वालों ने इसके लिए एलियन अटैक से लेकर ब्लैकरॉक कंपनी की हरकत तक को जिम्मेदार ठहराया है। असली वजह शायद ही कभी पता चले । लेकिन ये खतरे की घंटी नहीं बल्कि घण्टा घड़ियाल है।
तीसरा विश्व युद्ध कंप्यूटर शटडाउन से लड़ा जाएगा
साइबर अपराध के लिए यह घटना खुला मौक़ा हो सकती है। कोई देश, संगठन, हैकर या साइबर अपराधी हमारे वैश्विक तकनीकी बुनियादी ढांचे पर कितना कहर बरपा सकते हैं, यह अकल्पनीय है। यह भी कह सकता है कि तीसरा विश्व युद्ध कंप्यूटर शटडाउन से लड़ा जाएगा।
ऐसा करके किसी भी देश को पंगु किया जा सकता है। या फिर कोई आपराधिक संगठन किसी देश के सिस्टम को हैक करके कोई भी मांग रख सकता है। हमने अपनी सहूलियत के लिए टेक्नोलॉजी डेवलप की, अपनाई और इसके सुख भोग रहे हैं। हाथ पैर हिलाए बिना सब कुछ हो जा रहा है। रेलवे के सिग्नल में तेल वाली कुप्पी की जरूरत नहीं रही, अब सॉफ्टवेयर से बत्ती लाल हरी होती है। दिमाग भी लगाने की जरूरत नहीं रही, अब आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस ही सब कर देगा। मरीजों की डायग्नोसिस, इलाज या ऑपरेशन भी मशीनी दिमाग कर रहे हैं। कितना आसान, कितना मुफीद।
दुनिया का 95 फीसदी बैंकिंग सिस्टम सर्वर से जुड़ा
हर चीज के दो पहलू होते हैं सो वही सिद्धांत यहां भी लागू है। दिक्कत यह है कि दूसरा पहलू जानते हुए भी अब कुछ किया नहीं जा सकता। कितना बैकअप करेंगे? टेक्नोलॉजी डाल डाल हैं तो कंप्यूटर वायरस, क्रिमिनल और हैकर पात पात हैं। हर चीज का तोड़ मौजूद है। कंप्यूटर पर निर्भरता की जहां तक बात है तो जान लीजिए कि हर साल कोई तीस करोड़ ब्रांडेड कंप्यूटर बिकते हैं। करीब इतने ही असेम्बल मशीनों की बिक्री होती है। कोई 7 अरब स्मार्ट फोन हैं जो हर साल लाखों की संख्या में बढ़ते जाते हैं। दुनिया की 90 फीसदी कंपनियां मेनफ़्रेम सर्वर से जुड़ी हैं। दुनिया का 95 फीसदी बैंकिंग सिस्टम सर्वर से जुड़ा हुआ है। पूरे के पूरे मिसाइल सिस्टम कंप्यूटर से ही ऑपरेट होते हैं। सर्वर पर निर्भरता का आलम यह है कि ग्लोबल मल्टी क्लाउड स्टोरेज बाजार 2032 तक 1,11,326.6 मिलियन डॉलर का होने की उम्मीद है।
हमने सन अस्सी से कंप्यूटरों की गड़बड़ी से बड़ी घटनाएं होते देखा है। सॉफ्टवेयर की गलती से मिसाइलों को गलत जगह गिरते देखा है। हाल की घटना उसी कड़ी का हिस्सा है। पर यह सिलसिला खत्म होना तो दूर, बढ़ता ही जाना है। अगला अटैक कहां होगा, कोई नहीं जानता।
कंप्यूटर-जनरेटेड रोबोट हमारी दुनिया पर कब्जा कर लेंगे
नामचीन भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने सही कहा है कि : "जब तक मानव जाति अपने जेनेटिक मेकअप और डीएनए को बदलकर खुद को पुनः डिजाइन नहीं करती, तब तक ये पूरी संभावना है कि कंप्यूटर-जनरेटेड रोबोट हमारी दुनिया पर कब्जा कर लेंगे।”
हम आप कर क्या सकते हैं। कितना कैश, कौन कौन से दस्तावेजों की कापियां रखें?, क्या लैंडलाइन पर आ जाएं? घर दफ्तर में कितना बैकअप रखें? जरूरत है कि हमें बताया जाए ठीक उसी तरह जैसे कि युद्ध के समय सुरक्षा के उपाय बताए जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि कोरोना के समय एहतियात बताए गए थे। एक इमरजेंसी प्लान बनाया जाना चाहिए। यह वक्त की जरूरत है। पर किया हम यह कर पा रहे हैं? या कर पायेंगे?
( लेखक पत्रकार हैं ।)