Bhutan History in Hindi: राजतन्त्र से लोकतंत्र की ओर भूटान की एतिहासिक यात्रा का सफर

Bhutan Ka Itihas in Hindi: भूटान एक छोटा, पर्वतीय और भूमि-रुद्ध देश है, जो दक्षिण एशिया में स्थित है। इसके पूर्व में अरुणाचल प्रदेश (भारत), पश्चिम में सिक्किम और उत्तर में चीन (तिब्बत) स्थित है।;

Update:2025-03-23 16:23 IST

Bhutan History Kingdom 

Bhutan Ka Itihas in Hindi: भूटान, जिसे दुनिया का सबसे खुशहाल देश कहा जाता है, ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव का गवाह बना है। सदियों तक एक शक्तिशाली राजशाही के अधीन रहने वाला यह हिमालयी देश 2008 में लोकतंत्र के मार्ग पर चल पड़ा। भूटान में लोकतंत्र की स्थापना किसी जनक्रांति या विद्रोह का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह एक अनूठा उदाहरण था, जहाँ स्वयं राजा ने अपनी शक्तियाँ त्यागकर देश को लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाने के लिए प्रेरित किया।

भूटान का ऐतिहासिक परिचय

भूटान एक छोटा, पर्वतीय और भूमि-रुद्ध देश है, जो दक्षिण एशिया में स्थित है। इसके पूर्व में अरुणाचल प्रदेश (भारत), पश्चिम में सिक्किम और उत्तर में चीन (तिब्बत) स्थित है। राजधानी: थिम्फू, सरकारी भाषा: जोंगखा, जनसंख्या: लगभग 8 लाख (2024 में अनुमानित),धर्म: बौद्ध धर्म (प्रमुख), भूटान का शासकीय ढांचा पहले सामंतशाही और फिर राजशाही के रूप में विकसित हुआ। यह देश लंबे समय तक बाहरी दुनिया से कटा रहा और आधुनिक राजनीतिक बदलावों से अछूता था।


राजशाही का उदय और शासन व्यवस्था

9वीं शताब्दी में, जब तिब्बत में अशांति थी, कई बौद्ध भिक्षु भूटान की ओर आए। इसी समय से भूटान में बौद्ध धर्म की नींव पड़ी, और 12वीं शताब्दी में ड्रुक्पा कग्युपा सम्प्रदाय का गठन हुआ, जो आज भी देश का प्रमुख धर्म है। भूटान का राजनीतिक इतिहास भी इसी धार्मिक इतिहास से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है, जहाँ धर्म और राज्य के बीच सामंजस्य बना रहा हैं।

भूटान में 17वीं सदी तक विभिन्न सामंती नेता और बौद्ध लामाओं का शासन था।1616 में शबद्रुंग नगवांग नामग्याल ने भूटान को एकीकृत कर इसे एक मजबूत राज्य बनाया। उन्होंने भूटान में दोहरी शासन प्रणाली स्थापित की:धार्मिक नेता (धर्म राजा),राजनीतिक नेता (देसी राजा)। सत्रहवीं शताब्दी के अंत में, भूटान ने बौद्ध धर्म को पूर्ण रूप से अंगीकार किया और 1865 में ब्रिटेन के साथ सिनचुलु संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत भूटान ने अपनी सीमाओं के कुछ भूभाग को ब्रिटेन के हाथों में सौंपा और बदले में वार्षिक अनुदान प्राप्त किया।


1907 में ब्रिटिश शासन के तहत भूटान में राजशाही की स्थापना हुई। इसके बाद, 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, 1949 में भारत और भूटान के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसके अनुसार भारत ने भूटान को उसकी सभी खोई हुई ज़मीन वापस लौटा दी और भूटान की विदेश नीति एवं रक्षा नीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1907 में राजशाही की स्थापना:उगेन वांगचुक भूटान के पहले राजा बने।इसके साथ ही भूटान में वंशानुगत राजशाही की स्थापना हुई. राजा को असीमित शक्तियाँ प्राप्त थीं।

भूटान का भारत से संबंध:1949 में भारत और भूटान के बीच शांति और मित्रता संधि हुई, जिसके तहत भारत ने भूटान की संप्रभुता को मान्यता दी।भूटान ने विदेश नीति में भारत पर निर्भरता रखी।

लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम

1998 में भूटान में राजनीतिक परिवर्तन की नींव रखी गई। इस वर्ष राजा ने निर्णय लिया कि वह अपनी कुछ शक्तियाँ मंत्रिपरिषद को सौंपेंगे1998 में चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने मंत्रिपरिषद को अधिक अधिकार सौंपे।उन्होंने प्रधानमंत्री का पद बनाया और मंत्रिपरिषद को शाही अनुमोदन के बिना निर्णय लेने का अधिकार दिया।जनता को राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर मिला।


24 मार्च 2001 में संविधान निर्माण:राजा ने एक संविधान सभा का गठन किया और लोकतांत्रिक संविधान के मसौदे पर काम शुरू हुआ।2005 में नया संविधान प्रस्तुत किया गया।इसमें भूटान को संवैधानिक राजशाही और लोकतंत्र में बदलने का प्रस्ताव था।

लोकतंत्र की स्थापना का कारण और प्रक्रिया

भूटान का लोकतंत्र में परिवर्तन राजा की दूरदर्शिता और जनता के भविष्य को सुरक्षित करने के इरादे का परिणाम था।

लोकतंत्र अपनाने के प्रमुख कारण:

राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने महसूस किया कि भविष्य में राजशाही भूटान की स्थिरता बनाए नहीं रख पाएगी।उन्होंने शांति के समय में लोकतंत्र लागू करने का निर्णय लिया, ताकि भविष्य में राजनीतिक अस्थिरता को रोका जा सके।2005 में संविधान का मसौदा जारी हुआ।इसमें नागरिक अधिकार, राजनीतिक स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव की गारंटी दी गई।2006 में राजा ने अपने पुत्र जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक को गद्दी सौंप दी.इस दौरान भूटान में लोकतंत्र की नींव पूरी तरह मजबूत हो गई।

2008: पहला आम चुनाव और नई शुरुआत

2005 में, राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक और सरकार ने देश के पहले संविधान का मसौदा प्रस्तुत किया, जिसमें नागरिकों से समीक्षा करने का आग्रह किया गया। संविधान में यह स्पष्ट किया गया कि जब तक राजा अपनी प्रतिबद्धता और राज्य के हितों की रक्षा करेंगे, वे सरकार की दिशा निर्धारित करने में नेतृत्व की भूमिका निभाते रहेंगे।

29 दिसम्बर 2005 को राजा ने घोषणा की कि भूटान में पहला पूर्ण संसदीय चुनाव 2008 में होगा - जो वांगचुक राजवंश की शताब्दी होगी।दिसंबर 2007 और मार्च 2008 में क्रमशः राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय असेंबली के चुनावों के साथ, भूटान एक लोकतांत्रिक संवैधानिक राजतंत्र में परिवर्तित हो गया।इस परिवर्तन में भारत सरकार और भारतीय निर्वाचन आयोग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


2008 में भूटान में पहला लोकतांत्रिक चुनाव आयोजित किया गया। 24 मार्च 2008 को पहला संसदीय चुनाव हुआ।इसमें दो प्रमुख राजनीतिक दलों ने भाग लिया:भूटान पीस एंड प्रॉस्पेरिटी पार्टी (DPT),पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP)। DPT को 47 में से 45 सीटों पर जीत मिली और भूटान का पहला लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री बना।जुलाई 2008 में भूटान का नया लोकतांत्रिक संविधान लागू हुआ।इसके तहत राजा का स्थान एक संवैधानिक प्रमुख का हो गया और संसद को विधायी अधिकार प्राप्त हुए।

लोकतंत्र में भूटान की राजनीतिक संरचना

भूटान अब एक संवैधानिक राजशाही है।राजा:राजा अब केवल एक संवैधानिक प्रमुख है।राजा का हस्तक्षेप सीमित है।दो सदनों वाली संसद बनाई गई:नेशनल असेंबली (निचला सदन),नेशनल काउंसिल (उपरी सदन)कार्यकारी शक्तियाँ प्रधानमंत्री के पास होती हैं।संसद में बहुमत प्राप्त दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है।

लोकतंत्र के प्रभाव और चुनौतियाँ

सरकार अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनी।लोगों को चुनाव में मतदान का अधिकार मिला।प्रेस को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।भूटान की सामाजिक संरचना कमजोर थी, जिससे लोकतंत्र अपनाने में समय लगा।मीडिया की सीमित स्वतंत्रता और राजनीतिक जागरूकता की कमी बड़ी चुनौती रही।अर्थव्यवस्था में भारत पर अत्यधिक निर्भरता बरकरार है।

भूटान का लोकतांत्रिक भविष्य

भूटान का लोकतंत्र धीरे-धीरे मजबूत हो रहा है। जनता अब राजनीति में अधिक भागीदारी दिखा रही है।लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाने के लिए राजनीतिक सुधार किए जा रहे हैं।युवाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ रही है।सरकार ने सुशासन और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी है।

भूटान का लोकतंत्र में परिवर्तन एक ऐतिहासिक घटना थी, जो राजा की दूरदृष्टि, जनता की भागीदारी और संवैधानिक बदलावों का परिणाम था। बिना किसी विद्रोह या रक्तपात के भूटान ने लोकतंत्र अपनाया, जो इसे दुनिया में एक अनोखा उदाहरण बनाता है।

Tags:    

Similar News