Rajasthan Shitala Mata Mandir: शीतला माता का दिव्य चमत्कार: विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया भाटूण्ड मंदिर की रहस्यमयी ओखली का रहस्य
Rajasthan Famous Shitala Mata Mandir: भाटूण्ड गांव का शीतला माता मंदिर राजस्थान के पाली जिले में स्थित है। यह मंदिर अपनी दिव्यता और चमत्कारी घड़े के लिए प्रसिद्ध है।;
Rajasthan Famous Shitala Mata Mandir
Rajasthan Famous Shitala Mata Mandir: राजस्थान(Rajasthan), अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों के लिए संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यहां का हर गांव और शहर अपनी अनूठी मान्यताओं और विरासत के कारण विशेष स्थान रखता है। ऐसा ही एक अद्भुत स्थान है पाली जिले का भाटूण्ड(Bhatund) गांव, जहां स्थित शीतला माता का मंदिर आस्था और चमत्कारों के लिए जाना जाता है।
यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि इसकी सबसे विशेष बात एक चमत्कारी घड़ा है, जिसे लेकर मान्यता है कि यह भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। श्रद्धालु दूर-दूर से इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं और माता के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस मंदिर की दिव्यता, रहस्यमयी घटनाओं और इसकी धार्मिक मान्यता इसे राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठों में स्थान दिलाती है।
शीतला माता कौन हैं?
शीतला माता(Shitla Mata) को हिन्दू धर्म में रोगों की देवी माना जाता है। विशेषकर चेचक और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा के लिए इनकी पूजा की जाती है। शीतला माता का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि माता अपने भक्तों की सभी प्रकार की बीमारियों से रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करती हैं। माता शीतला की पूजा विशेष रूप से बसोड़ा पर्व पर की जाती है, जिसमें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।
रहस्यमय घड़े का राज
राजस्थान के पाली जिले(Pali district of Rajasthan) के छोटे से गांव भाटूण्ड(Bhatund) में स्थित शीतला माता का प्राचीन मंदिर इसी रहस्य और आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में एक अद्भुत घड़ा है, जिसमें अब तक लाखों लीटर पानी डाला जा चुका है, लेकिन 800 साल बीत जाने के बाद भी यह कभी नहीं भरा। भक्त इसे देवी माता का आशीर्वाद मानते हैं और श्रद्धा से इसमें जल अर्पित करते हैं। यह मंदिर केवल अपनी दिव्यता के लिए ही नहीं, बल्कि इस रहस्यमयी घड़े के कारण भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।
आस्था का अनोखा केंद्र
पाली जिले के भाटूण्ड गांव में स्थित शीतला माता का यह प्राचीन मंदिर केवल अपनी धार्मिक महिमा के लिए ही नहीं, बल्कि यहां मौजूद चमत्कारी घड़े के कारण भी प्रसिद्ध है। इस अद्भुत रहस्य को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं।
यह चमत्कारी घड़ा साल में केवल दो बार ही भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है, शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन। बाकी समय यह एक विशाल पत्थर से ढका रहता है। इन पावन अवसरों पर भक्त कलश भर-भरकर इसमें हजारों लीटर पानी अर्पित करते हैं, लेकिन यह घड़ा कभी भरता नहीं। मान्यता है कि अब तक इसमें लाखों लीटर पानी डाला जा चुका है, फिर भी इसका स्तर वैसा ही बना रहता है। यह रहस्य और आस्था का संगम मंदिर को और भी विशेष बना देता है, जिससे भक्तों की श्रद्धा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
800 साल पुरानी रहस्यमयी मान्यता
इस मौजूद चमत्कारी घड़े को लेकर भी अनगिनत मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस घड़े में डाला गया पानी एक राक्षस पी जाता है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता के अनुसार, करीब 800 साल पहले इस क्षेत्र में बाबरा नामक एक राक्षस का आतंक था। गांववाले उससे भयभीत रहते थे, क्योंकि हर बार जब किसी ब्राह्मण के घर विवाह होता, वह राक्षस दूल्हे की बलि ले लेता। इस भय से मुक्ति पाने के लिए ग्रामीणों ने मां शीतला की आराधना की। माता शीतला उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और एक ब्राह्मण को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जब उसकी पुत्री का विवाह होगा, तब वे स्वयं आकर इस राक्षस का अंत करेंगी। विवाह के शुभ अवसर पर माता एक छोटी कन्या के रूप में प्रकट हुईं और अपने घुटनों से दबाकर बाबरा राक्षस का संहार कर दिया।
राक्षस के वरदान की कथा
मरते समय बाबरा राक्षस ने मां शीतला से वरदान मांगा कि उसे गर्मी में अत्यधिक प्यास लगती है, इसलिए भक्त साल में दो बार उसे पानी अर्पित करें। माता ने उसकी यह अंतिम इच्छा पूरी करने का वचन दिया। तभी से, इस चमत्कारी घड़े में साल में दो बार पानी डालने की परंपरा चली आ रही है।
भक्तों की मान्यता है कि जो भी जल इस घड़े में अर्पित किया जाता है, वह राक्षस पी जाता है, और यही कारण है कि घड़ा कभी भरता नहीं। इस रहस्य को सुलझाने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन आज तक कोई यह पता नहीं लगा सका कि यह कैसे और क्यों होता है। यही चमत्कार मंदिर को और भी अद्भुत और रहस्यमयी बना देता है, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था और बढ़ जाती है।
साल में दो बार खोला जाता है घड़ा
भाटूण्ड के शीतला माता मंदिर में स्थित यह चमत्कारी घड़ा साल में केवल दो बार भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है। यह घड़ा एक विशाल पत्थर से ढंका रहता है, जिसे विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान हटाया जाता है।
इन शुभ अवसरों पर गांव की महिलाएं हजारों लीटर पानी इस घड़े में अर्पित करती हैं, लेकिन यह कभी नहीं भरता। यह रहस्य भक्तों के लिए एक गहरी आस्था का प्रतीक बन गया है। इसके बाद, मंदिर के पुजारी माता शीतला के चरणों से लगाकर इसमें दूध का भोग चढ़ाते हैं, और जैसे ही दूध अर्पित किया जाता है, घड़ा पूरा भर जाता है।
इसके बाद घड़े को फिर से पत्थर से ढक दिया जाता है, और अगले वर्ष तक इसे नहीं खोला जाता। इस विशेष अवसर पर गांव में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास का केंद्र बनी हुई है।
50 लाख लीटर से भी अधिक पानी अर्पित किया जा चुका है
भाटूण्ड के शीतला माता मंदिर में स्थित यह अद्भुत घड़ा आकार में सिर्फ आधा फुट चौड़ा और उतना ही गहरा है, लेकिन इसकी विशेषता इसे असाधारण बनाती है। कहा जाता है कि इसमें कितना भी पानी डाला जाए, यह कभी पूरा नहीं भरता। भक्तों की मान्यता के अनुसार, अब तक इसमें 50 लाख लीटर से भी अधिक पानी अर्पित किया जा चुका है, लेकिन यह आज भी खाली का खाली ही बना हुआ है।