Bijnor History: बिजनौर से मिला भारत को नाम, राजा दुष्यंत और शकुंतला से जुड़ी है कहानी
Bijnor History: भारत का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन क्या आप कभी आपने सोचा है कि इससे भारत नाम कहां से मिला। आज हम आपको इसके बारे में जानकारी देते हैं।
Bijnor History : भारत को हम इंडिया, हिंदुस्तान, भारतवर्ष जैसे नाम से पहचानते हैं। लेकिन क्या आपको पता है भारत का नाम बिजनौर की धरती से मिला। हालांकि यह बात अलग है कि कितने सालों बाद भी देश को नाम देने वाले जनपद को उसकी असली पहचान नहीं मिल पाई है। चलिए आज हम आपको इस बारे में जानकारी देते हैं।
ऋग्वेद में है उल्लेख बिजनौर का (Bijnor is Mentioned in Rigveda)
यह ऐसी जगह है जहां महाराज भारत और कण्व ऋषि जैसे महान लोग हुआ करते थे। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। प्राचीन ग्रंथो और जानकारी की माने तो जिन महाराज भारत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष हुआ उनका जन्म बिजनौर जनपद में गंगा और मलिन नदी के संगम स्थल पर महर्षि कण्व के आश्रम में हुआ था।
शकुंतला कि संतान थे राजा भरत (King Bharat Was The Child of Shakuntala)
महाराज दुष्यंत और शकुंतला का गंधर्व विवाह हुआ था। महाराज द्वारा शकुंतला को पहचान के लिए दी गई अंगूठी खो जाने की कहानी हम सभी ने बचपन में स्कूलों की किताब में पड़ी है। यह घटना किस स्थान पर हुई यह लोग बहुत कम लोग जानते हैं। आपको बता दें कि दोनों का गंधर्व विवाह यहीं पर हुआ था। शकुंतला ने यही ऋषि के आश्रम में महाराज भारत को जन्म दिया था। कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम में इसका उल्लेख किया है। इतिहासकार हेमंत कुमार के मुताबिक देश सबसे पहले ब्रह्मावर्त और बाद में आर्यावर्त कहलाया और बाद में भारतवर्त कहा गया। ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है कि बाहर राजा भारत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा।
नहीं मिली बिजनौर को पहचान (Bijnor Did Not Get Recognition)
साल दर साल की बाढ़ से यहां से ऋषि का आश्रम नष्ट हो गया था और उसके बाद किसी ने आश्रम और महाराज भारत को जिले से जोड़कर इसे पहचान दिलाने की कोशिश नहीं की। प्रशासन द्वारा यहां पर कण्व ऋषि आश्रम प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया है।
ऐसी है कथा (Such Is The Story)
महाराज दुष्यंत और शकुंतला की भेंट मालिनी के तट पर बसे महर्षि कण्व ऋषि आश्रम में हुई थी। उन्होंने शकुंतला से प्रेम विवाह किया। महाराजा दुष्यंत कुछ दिन बाद शकुंतला को साथ ले जाने का वचन देकर अपने राज्य को चले गए। एक दिन शकुंतला महाराजा दुष्यंत के बारे में सोच रहीं थी तभी महर्षि दुर्वासा वहां आ गया। शकुंतला द्वारा ध्यान न दिए जाने पर उन्होंने श्राप दिया कि जिसके बारे में वे सोच रहीं थे वह उन्हें भूल जाएगा। क्षमा मांगने पर उन्होंने कहा कि कोई स्मृति चिन्ह दिखने पर शकुंतला उसे फिर याद आए जाएंगी। शकुंतला महाराजा दुष्यंत के महल में गईं तो वे उन्हें पहचान नहीं सके। शकुंतला महर्षि कण्व के आश्रम में भरत को जन्म दिया। कहा जाता है कि राजा भरत ने यहीं पर बचपन में शेरों के दांत गिने। दुष्यंत द्वारा शकुंतला को दी गई अंगूठी एक मछली ने निगल ली थी। वह जब राजा के सामने ले जाई गई तो राजा को शकुंतला का ध्यान आया।