Chhattisgarh Bastar Dussehra: छत्तीसगढ़ के इस शहर में 75 दिनों तक चलता है दशहरा का उत्सव
Chhattisgarh Bastar Dussehra History: दसहरा नौ या दस दिनों का नहीं बल्कि लगभग 75 दिनों तक चलने वाला एक उत्सव है। यह आमतौर पर जुलाई या अगस्त में शुरू होता है और अक्टूबर तक जारी रहता है। यह त्यौहार स्थानीय देवता देवी माओली को समर्पित है और इसे बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
Chhattisgarh Bastar Dussehra History: बस्तर दशहरा एक अनोखा और जीवंत उत्सव है जो छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाता है। यह दसहरा नौ या दस दिनों का नहीं बल्कि लगभग 75 दिनों तक चलने वाला एक उत्सव है। यह आमतौर पर जुलाई या अगस्त में शुरू होता है और अक्टूबर तक जारी रहता है। यह त्यौहार स्थानीय देवता देवी माओली को समर्पित है और इसे बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
बस्तर दशहरा न केवल एक धार्मिक त्योहार है बल्कि बस्तर क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव भी है। यह छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं और मान्यताओं की एक झलक प्रदान करता है।
दंतेश्वरी देवी की होती है पूजा
दंतेश्वरी देवी की पूजा आदिवासी समुदायों के लिए बहुत महत्व रखती है। वे उन्हें अपनी भूमि की संरक्षक देवी मानते हैं, और दशहरा आदिवासी लोगों के लिए अपनी भक्ति व्यक्त करने का समय है। वह बस्तर के राजपरिवार की कुल देवी भी हैं।
दी जाती है जानवरों की बलि
बस्तर के दशहरा में जानवरों की बलि देने की अनोखी प्रथा है। यहाँ अन्य जगहों के विपरीत जहाँ रावण का पुतला दहन किया जाता है, बस्तर में जानवरों की बलि देने की अनोखी परंपरा है। माना जाता है कि स्थानीय देवता इस प्रसाद की मांग करते हैं।
इसमें होते हैं अनोखे अनुष्ठान
यह त्यौहार अपने विशिष्ट अनुष्ठानों और परंपराओं के लिए जाना जाता है। मुख्य आकर्षणों में से एक पारंपरिक "पाटा जात्रा" है, जहां स्थानीय देवताओं को जुलूस में निकाला जाता है। बस्तर दशहरा की विशेषता देवी-देवताओं की लकड़ी की मूर्तियाँ बनाना और उनका विसर्जन करना है। मूर्तियों को देखभाल के साथ तैयार किया जाता है, और उनका विसर्जन त्योहार की समाप्ति का प्रतीक है।
जनजातीय भागीदारी
बस्तर दशहरा क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति में गहराई से निहित है। विभिन्न जनजातियाँ उत्सव में अपने अनूठे सांस्कृतिक तत्वों को जोड़ते हुए, उत्सव में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। यह उत्सव पारंपरिक संगीत और नृत्य प्रदर्शन के साथ होता है। उत्सव के दौरान जनजातीय समूह अपने जीवंत नृत्य रूपों और संगीत परंपराओं का प्रदर्शन करते हैं।
स्थानीय मेले
बस्तर दशहरा के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ स्थानीय मेले और बाज़ार भी लगते हैं। ये मेले क्षेत्र की समृद्ध कला, शिल्प और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हैं। बस्तर दशहरा अक्सर उन पर्यटकों और आगंतुकों को आकर्षित करता है जो बस्तर क्षेत्र की अनूठी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं का अनुभव करने में रुचि रखते हैं। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
पंथी और रावत नाचा जैसे नृत्य
त्योहार के दौरान पंथी और रावत नाचा जैसे पारंपरिक नृत्य रूपों का प्रदर्शन किया जाता है। ये नृत्य बस्तर दशहरा के दौरान सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक अभिन्न अंग हैं। यह त्यौहार दशहरे के दिन समाप्त होता है, जहां बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं।