Gondeshwar Mahadev Temple: बहुत चमत्कारी है गोंडेश्वर मंदिर, जहां सूर्य की किरणें करती है शिवलिंग का अभिषेक
Gondeshwar Mahadev Mandir Ka Itihas: गोंडेश्वर मंदिर का इतिहास 11वीं-12वीं शताब्दी से जुड़ा है। इस मंदिर का निर्माण सेउना राजवंश के शासन के दौरान यादवों और उनके सामंतों द्वारा किया गया था।
History Of Gondeshwar Mahadev Mandir: गोंडेश्वर महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले के सिन्नर तालुका में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। जो अपनी अद्वितीय वास्तुकला और अद्भुत बनावट के साथ - साथ सूर्य अभिषेक से जुड़ी विशेष घटना के लिए जाना जाता है | भारतीय संस्कृति और परंपरा में आध्यात्म का विशेष स्थान है। तथा भारत में आध्यात्म और आध्यात्मिकता को लेकर लोगों का उत्साह भी उतना ही गहरा है, जो यहाँ की पवित्र स्थलों, मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र का नासिक जिला आध्यात्मिकता का ऐसा ही एक अद्वितीय केंद्र है। यह स्थान भारतीय इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है।
नासिक में हर मोड़ पर आध्यात्म की अनूठी छाप देखने को मिलती है। जिनमें त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचवटी और गोदावरी नदी और कालाराम मंदिर जैसी जगहों का समावेश है।और इन अद्वितीय स्थलों में से एक है नासिक जिले के सिन्नर में स्थित गोंडेश्वर मंदिर जो प्राचीन भारत की धार्मिक परंपरा और वास्तुकला को दर्शाता है।
गोंडेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र के नासिक जिले से 26 किमी की दूरी पर सिन्नर में स्थित एक हिंदू प्राचीन मंदिर है ।जो अपनी अद्भुत वास्तुकला और अद्वितीय बनावट शैली के लिए प्रसिद्ध है । यह मंदिर पंचायतन योजना के तहत बना है, जिसमें भगवान शिव को समर्पित एक मुख्य मंदिर तथा भगवान विष्णु, पार्वती, गणेश तथा सूर्य को समर्पित 4 सहायक मंदिर हैं।
गोंडेश्वर मंदिर का इतिहास
गोंडेश्वर मंदिर का इतिहास 11वीं-12वीं शताब्दी से जुड़ा है । इस मंदिर का निर्माण सेउना राजवंश के शासन के दौरान यादवों और उनके सामंतों द्वारा किया गया था। सिन्नर पूर्व-शाही काल के दौरान राजवंशियों का गढ़ हुआ करता था । तथा आधुनिक इतिहासकार इसकी पहचान सेउनापुरा के तौर पर करते हैं, जो यादव राजा सेउंचद्र द्वारा स्थापित एक शहर था।
स्थानीय परंपरा के अनुसार, सिन्नर शहर की स्थापना गवली (यानी, यादव) प्रमुख राव सिंघुनी ने की थी और गोंडेश्वर मंदिर का निर्माण उनके बेटे राव गोविंदा ने 200,000 रुपये की लागत से करवाया था। इस मंदिर का निर्माण स्थानीय रूप से उपलब्ध काले बेसाल्ट पत्थर से किया गया है।
गोंडेश्वर मंदिर की वास्तुकला
गोंडेश्वर मंदिर का निर्माण भूमिजा और हेमाडपंती वास्तुकला शैली में किया गया है। भूमिजा शैली में मंदिर की ऊँचाई और शिखर को जटिल और सममितीय रूप में डिजाइन किया जाता है। तथा ऊर्ध्वाधर रेखाओं और स्तंभों का संयोजन होता है, जो मंदिर को एक भव्य और संतुलित रूप देता है।तथा हेमाडपंती शैली के तहत पत्थरों को आपस में फिट करके बनाया जाता है ।
गोंडेश्वर मंदिर एक आयताकार मंच पर स्थित है ।पंचायतन योजना के तहत बने गोंडेश्वर मंदिर में मुख्य मंदिर के साथ - साथ 4 अन्य मंदिर भी शामिल हैं।मुख्य मंदिर में शिवलिंग स्थापित है।मंदिर के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर नंदी स्थित हैं। अन्य सहायक मंदिर भगवान विष्णु, पार्वती, गणेश तथा सूर्य को समर्पित है ।
मंदिर की दीवारों पर रामायण, महाभारत और पुराणों से संबंधित दृश्यों की नक्काशी की गई है। इसके अलावा देवताओं, नृत्यरत अप्सराओं और युगों के राजाओं की मूर्तियाँ भी उकेरी गई हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार एक पत्थर की संरचना की तरह बनाया गया है, जिस पर कुछ नक्काशी की गई है।गोंडेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है।
सूरज की किरणें करती है शिवलिंग का अभिषेक
संपूर्ण महाराष्ट्र में भगवान सूर्य के केवल दो मंदिर हैं और उनमें से एक गोंडेश्वर मंदिर है। इस मंदिर में विशेष रूप से एक अद्भुत दृश्य देखा जाता है।जब सूरज उत्तरायण और दक्षिणायन की स्थिति में होता है। तब सूरज की किरणें नंदी मंदिर से होते हुए मुख्य मंदिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं। और उसकी छवि सामने की दीवार पर बनती है। यह घटना लगभग 3-4 मिनट तक होती है, जब सूर्य की किरणें शिवलिंग का अभिषेक करती हैं। यह एक दिव्य और अनूठा दृश्य है।
सिन्नर में गोंडेश्वर मंदिर भारत के मध्यकालीन युग की महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक है। यह प्राचीन मंदिर भारत की धार्मिक परंपरा और वास्तुकला को दर्शाता है।यहाँ पर श्रद्धालु आध्यात्म तथा प्राचीन संरचना की भव्यता का अनुभव करते हैं। तथा गोंडेश्वर मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को शांतिपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव प्रदान कराता है।
इस मंदिर को भारत सरकार द्वारा 4 मार्च, 1909 राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित किया गया था। वर्तमान समय में गोंडेश्वर मंदिर परिसर की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग की औरंगाबाद शाखा द्वारा की जाती है|