Gorakhpur Famous Food: लगभग आधे दशक से पूर्वांचल के 'बुढ़ऊ चाचा' की बर्फी का स्वाद के कायल हैं लोग, हमेशा लगी रहती है भीड़
Gorakhpur Famous Food: पहले की तरह आज भी बुढ़ऊ चाचा की बर्फी अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए लोगों के दिल और जुबां पर राज कर रही है। हालाँकि बुढ़ऊ चाचा तो अब इस दुनिया में नहीं रहे उनके नाती राकेश चौधरी अपने नाना की बनाई साख को बचाए रखने में कसर नहीं छोड़ी है ।
Gorakhpur Famous Food: बढ़ते पूर्वांचल में आज मिठाई की सैकड़ों दुकाने मौजूद हैं लेकिन जब बर्फी और उसकी शुद्धता की बात आती है, तो आज भी बरगदवां में बनने वाली बुढ़ऊ चाचा की बर्फी का नाम लोगों के जहन में आ जाता है। बता दें कि ये साख दो-चार वर्ष की नहीं बल्कि पांच दशक की कड़ी मेहनत और काम के प्रति ईमानदारी से बनाई है। पहले की तरह आज भी बुढ़ऊ चाचा की बर्फी अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए लोगों के दिल और जुबां पर राज कर रही है। हालाँकि बुढ़ऊ चाचा तो अब इस दुनिया में नहीं रहे उनके नाती राकेश चौधरी अपने नाना की बनाई साख को बचाए रखने में कसर नहीं छोड़ी है ।
यहाँ माल के गुणवत्ता से नहीं किया जाता है समझौता
तिलक चौधरी उर्फ़ बुढ़ऊ चाचा ने बर्फी बनाने का काम साल 1968 में शुरू किया। बता दें कि कहा जंगल के रहने वाले बुढ़ऊ चाचा पहले दूध बेचते थे। इस कार्य में जब उन्हें देर हो जाती थी तो लूटपाट से बचने के लिए अक्सर वे अपनी बेटी सावित्री के घर बरगदवां आ जाया करते थे। उन दिनों बरगदवां में फर्टिलाइजर के कारण चाय और बर्फी के व्यवसाय की काफी संभावना बन रही थी। ऐसे में जब भी बुढ़ऊ चाचा यहाँ आते बिकने से बचे दूध की बर्फी और चाय बनाकर बेचते थे । ख़ास बात यह थी कि बर्फी को बनाने में चाचा ने कभी भी गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं किया , इसलिए बतौर बर्फी विक्रेता उनकी ख्याति आसपास के क्षेत्रों में बहुत तेज़ी से फैलने लगी।
बुढ़ऊ चाचा के बाद उनके दामाद रामप्यारे ने संभाल ली बागडोर
बुढ़ऊ चाचा के बर्फी की ख्याति और प्रशंसक इस कदर बढे कि स्थिति यह हो गई कि झोपड़ी में चलने वाली दुकान में दिन -रात ग्राहकों की लम्बी कतारें लगने लगी। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि वे लोग ग्राहकों की डिमांड को भी पूरा नहीं कर पाने में असमर्थ भी हो गये । लेकिन खासियत यह थी कि इस स्थिति में भी कभी भी बुढ़ऊ चाचा ने बर्फी की गुणवत्ता को कम नहीं किया भले ही उन्होंने ग्राहकों को अगले दिन बुला लिया। जब तिलक चौधरी उर्फ़ बुढ़ऊ चाचा बूढ़े होने लगे तो ज्यादातर लोग उनके नाम को नहीं जानते थे ऐसे में लोगों ने प्यार से उन्हें बुढ़ऊ चाचा बुलाना शुरू कर दिया। धीरे -धीरे उनकी ख्याति बुढ़ऊ चाचा के नाम से प्रसिद्ध हो गई। और देखते ही देखते बुढ़ऊ चाचा की बर्फी एक अच्छी -खासी ब्रांड बन गई।
साल 2001 में जब बुढ़ऊ चाचा का निधन हो गया तो उनके दुकान की कमान दामाद रामप्यारे चौधरी ने संभाली। बुढ़ऊ चाचा की तरह उन्होंने भी आज तक बर्फी की गुणवत्ता को लेकर अपने ससुर की साख को बेहतरीन तरीके से बरकरार रखा है । समय के साथ अब जब रामप्यारे भी काफी बूढ़े हो गए हैं तो दुकान की कमान तिलक चौधरी उर्फ़ बुढ़ऊ चाचा के नाती और रामप्यारे के पुत्र राकेश चौधरी ने संभाल ली है। वे भी अपने पुरखों की विरासत को उसी तन्मयता और ईमानदारी से सँभालने की अच्छी कोशिश कर रहे हैं।