Grishneshwar Jyotirlinga: घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का करें दर्शन, पूरे होंगे सकल मनोरथ

Grishneshwar Jyotirlinga : महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के करीब दौलताबाद से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।

Written By :  Sarojini Sriharsha
Update:2023-02-22 21:32 IST

Grishneshwar Jyotirlinga : महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के करीब दौलताबाद से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। 18 वीं सदी में इस मंदिर का पुनरुद्धार देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। एकांत जगह में बने इस मंदिर में हर साल दुनिया के कोने- कोने से दर्शन के लिए श्रद्धालु आकर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यहां आकर दर्शन करने से सब प्रकार के मनोरथ पूरे होते हैं और नि:संतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार शिवभक्त निसंतान दंपति सुधर्मा की पत्नी सुदेहा ने अपने पति को मनाकर अपनी बहन घुष्मा से विवाह करा दिया। घुष्मा भी भगवान शिव की अनन्य भक्त थी । उनकी कृपा से उसे एक पुत्र हुआ। कुछ वर्ष बाद ईर्ष्या वश सुदेहा ने अपनी बहन घुष्मा के सोते हुए पुत्र की हत्या कर शव को पास के एक तालाब में फेंक दिया। सुबह उठने के बाद शिवभक्त घुष्मा ने अपने पुत्र को न पाकर उसी तालाब के पास जाकर एक सौ एक शिवलिंग बना कर प्रतिदिन शिव की पूजा कर उसे विसर्जन करने लगी।

घुष्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके समक्ष भगवान शिव ने उसके जीवित पुत्र को खड़ा कर दिया। फिर भगवान शिव त्रिशूल से सुदेहा का वध करने जाने लगे तो घुष्मा ने शिवजी से अपनी बहन सुदेहा का अपराध क्षमा करने के लिए प्रार्थना की । साथ ही उसी जगह भगवान को निवास करने की विनती की । ताकि उस इलाके के लोगों का भला हो सके। उसकी प्रार्थना स्वीकार कर भगवान शिव वहीं घुष्मेश नामक ज्योतिर्लिग के रूप में विराजमान हो गए।

21 गणेश पीठों में से एक पीठ 'लक्षविनायक' भी इसी मंदिर में मौजूद है। श्रावण सोमवार, महाशिवरात्रि जैसे त्योहार पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है । जिसे देखने के लिए भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है। प्रतिदिन सुबह 5:30 से रात 9:30 बजे तक मंदिर में भगवान घृष्णेश्वर के ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर सकते हैं। श्रावण महीने में मंदिर सुबह 3 बजे से रात 11 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पालकी निकाली जाती है।

लाल पत्थरों से बने इस मंदिर के दीवारों पर भगवान शिव और विष्णु के दस अवतारों की आकृति बनी हुई है। इस ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त यहां अन्य मशहूर दर्शनीय स्थल भी हैं जिनका आप आनंद उठा सकते हैं। इनमें मुख्य हैं:


अजंता की गुफाएं:

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजंता की गुफाएं विश्व प्रसिद्ध हैं , जिन्हें देखने दुनिया भर से लोग आते हैं। घोड़े की नाल के आकार की चट्टानी क्षेत्र में वाघुर नदी के किनारे काटकर बनाई गई इस गुफा में 26 गुफाओं का एक संग्रह है।


एलोरा की गुफाएं:

यूनेस्को की यह एक विश्व विरासत ऐतिहासिक स्थल है। औरंगाबाद के उत्तर-पश्चिम में लगभग 29 किलोमीटर की दूरी पर एलोरा की गुफाएं स्थित हैं। इस गुफा में बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म से जुड़ी हुई कलाकृति देखने को मिलती है।


बीबी का मकबरा :

इसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी पत्नी की याद में कराया था। इस मकबरे को राबिया-उद-दौरानी या दिलरास बानो बेगम के संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है। यह मकबरा ताजमहल से मिलता जुलता दिखाई देता है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है।


पंचाकी :

पंचाकी औरंगाबाद में बीबी का मकबरा के करीब स्थित एक जल परिसर है जो नीले-हरे रंग से भरा हुआ है और पर्यटकों का खास पसंदीदा जगह है।


दौलताबाद किला :

12 वीं सदी में बने इस किले को महाराष्ट्र राज्य के सात अजूबों में से एक माना जाता है। यह किला औरंगाबाद शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है।


बौद्ध गुफाएं :

यहां12 बौद्ध गुफाओं में ज्यादातर विहार या मठ शामिल हैं जिनमें बुद्ध, बोधिसत्व, संतों के चित्रों और मूर्तियों को देख सकते हैं। गुफा के बीच में 15 फीट ऊँची भगवान बौद्ध की प्रतिमा है।


सिद्धार्थ गार्डन :

इस सिद्धार्थ गार्डन में कई तरह के पेड़-पौधे के अलावा एक चिड़ियाघर भी है।


बानी बेगम गार्डन :

शहर से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर मुगल वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए यह गार्डन बहुत ही खुबसूरत है। इस गार्डन में फब्बारे पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र हैं।


जैन गुफाएं :

एलोरा की गुफा संख्या 34 जैन धर्म से संबंधित गुफा है जिसमें एक अधूरा चार-स्तंभ वाला हॉल है। इस मंदिर की यात्रा पर आने वाले यात्री इस गुफा को भी देखने आते हैं।

खुल्दाबाद :

14वीं सदी में सूफी संतो के द्वारा बसाया गया यह पर्यटन स्थल औरंगाबाद से करीब13 किलोमीटर दूर है और अजंता-एलोरा गुफाओं के निकट है।

कैलाश मंदिर :

एलोरा की गुफाओं में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर भी एक दर्शनीय स्थल है। ये गुफाएं विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्मारकों के रूप में विख्यात हैं।

जामा मस्जिद :

अरक किला के पास स्थित जामा मस्जिद बौद्धिक तरीके से बनी संरचना है। इसके भीतर 5 पंक्तियों में बने10 बड़े खंभे मेहराब की एक प्रणाली से जुड़े देखे जा सकते हैं। जामा मस्जिद के सामने एक विशाल दरबार भी बना है।

भद्र मारुति मंदिर :

यह मंदिर भारत के दो अन्य मंदिर इलाहाबाद और मध्य प्रदेश में शयन मुद्रा वाले हनुमान मंदिर के रूप में देखा जा सकता है। एलोरा गुफा से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर भद्र मारुति मंदिर में महावीर हनुमान के दर्शन कर सकते हैं।

सोनेरी महल :

राजपूताना शैली और पारंपरिक भारतीय वास्तुकला के इस नमूने महल में कभी सुंदर जटिल स्वर्ण चित्र लगे होते थे जिस कारण इस का नाम सोनेरी पैलेस पड़ा। अब यह महल चूने और पत्थरों से बने संग्रहालय का रूप ले चुका है जिसमें मिट्टी के बर्तन, कला चित्र, कपड़े आदि को देख सकते हैं।

कैसे पहुंचे?

इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आप हवाई, रेल और सड़क मार्ग का चुनाव कर सकते हैं। इसका निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद शहर का हवाई अड्डा है। यहां से मंदिर करीब 30किमी की दूरी पर स्थित है । बस या टैक्सी की मदद से मंदिर पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग से आप औरंगाबाद रेलवे स्टेशन आकर मंदिर तक लोकल यातायात के साधन यानी टैक्सी या बस से जा सकते हैं। यह स्टेशन देश के प्रमुख रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से यह मंदिर मुंबई से 422 किमी की दूरी पर है जबकि पुणे से 250 किमी की दूरी पर स्थित है। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का सफर घने पेड़ों से भरे सह्याद्री पर्वत के रास्ते बड़ा ही रमणीय होता है।

अक्टूबर से फरवरी तक का मौसम घूमने लायक होता है उस समय आप सर्दी का मजा भी ले सकते हैं। ठहरने के लिए होटल गेस्ट हाउस पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं जिन्हें आप ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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