History of Golconda Fort: हीरों का गढ़ गोलकोंडा की अनकही कहानियाँ

Golconda Fort Ki Story in Hindi: क्या आप जानते हैं कि हीरों का गढ़ गोलकोंडा की अनकही कहानियाँ क्या है और क्या है इसका अर्थ आइये विस्तार से समझते हैं इसे।;

Report :  Shivani Jawanjal
Update:2025-01-04 14:19 IST

History of Golconda Fort Ki Kahani in Hindi (Photo - Social Media)

Golconda Fort Ki Story in Hindi: गोलकोंडा किला दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी, गोलकोंडा किला भारत के सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है। एक ज़माने में समस्त गोलकोंडा क्षेत्र हीरों के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था जिस करण यह क्षेत्र राजनीतिक और रणनीतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है|

गोलकोंडा नाम का अर्थ

‘गोलकोंडा’ यह शब्द ‘गोल्ला’ और ‘कोंडा’ ऐसे दो शब्दों से मिलकर बनता है जिसका तेलुगु में अर्थ ‘चरवाहों की पहाड़ी’ यह है।


गोलकोंडा का इतिहास

प्रारंभिक इतिहास और स्थापना (11वीं शताब्दी) :- यह किला जितना अद्भुत है उतना ही रोचक इसका इतिहास है।एक दिन, एक नौजवान चरवाहे को इस पहाड़ी पर एक मूर्ति मिली, जिसकी जानकारी क्षेत्र के तत्कालीन शासक काकतीय राजा को दी गई| राजा ने इसे एक पवित्र स्थल समझकर, मिट्टी से एक किले का निर्माण करवाया, जिसे हम आज गोलकोंडा किले के नाम से जानते है। इस किले का निर्माण मुख्य रूप से पश्चिमी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए किया गया था।बाद में रानी रुद्रमा देवी और उनके उत्तराधिकारी प्रतापरुद्र ने कोलकोंडा किले और मजबूत करने के उद्देश्य से कई परिवर्तन किये।

बहमनी सल्तनत का शासन (14वीं शताब्दी) :- काकतीय वंश के पतन के बाद 14वीं शताब्दी के मध्य में यह क्षेत्र बहमनी सल्तनत के अधीन आ गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। अपनी सामरिक गतिविधियों के लिए उपयोग करने के लिए बहमनी शासकों ने इसे सुदृढ़ बनाया।

कुतुब शाही वंश का युग (16वीं-17वीं शताब्दी) :-1538 बहमनी शासन धीरे-धीरे कमजोर लगा और कुतुबशाही शासकों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया। कोलकोंडा जो प्रारंभ में एक साधारण मिट्टी का किला था, कुतुब शाही राजवंश के पहले तीन सुल्तानों ने किले को वर्तमान भव्य संरचना में विस्तारित किया।जिसके तहत इसे ग्रेनाइट से निर्मित एक विशाल किले में बदल दिया गया।


सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में गोलकोंडा बड़े पैमाने पर कपास उत्पादित क्षेत्र बन गया, जिसका घरेलू इस्तेमाल तथा निर्यात के लिए उपयोग किया जाने लगा।

गोलकोंडा किले का पतन :- 1687 में आठ महीने की लंबी घेराबंदी के बाद औरंगज़ेब ने कुतुबशाही वंश को हराकर किले पर कब्जा कर लिया। मुगलों ने किले को लूट लिया और इसे धीरे-धीरे छोड़ दिया। इसके बाद, कोलकोंडा का महत्व कम हो गया और यह खंडहर में तब्दील हो गया।

गोलकोंडा की संरचना

  • भारतीय इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत प्रमाण, गोलकोंडा किले को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • गोलकोंडा किला 400 फीट ऊंची पहाड़ी स्थित है। जिसकी संरचना में 10 किमी लंबी बाहरी दीवार के साथ 87 अर्धवृत्ताकार बुर्ज, आठ प्रवेश द्वार चार ड्रॉब्रिज के साथ चार अलग-अलग किले मौजूद हैं। जिनमे शाही दरबार, मंदिर, मस्जिद और पत्रिकाएं जैसी विशेषताओं का समावेश हैं।

  • किले का फतेह दरवाजा मुख्य प्रवेश द्वार है, जो 13 फीट चौड़ा और 25 फीट लंबा है। इसमें हाथियों से संरक्षण के लिए लोहे की कीलें लगाई गई हैं। ध्वनिक प्रणाली यह भी फतेह दरवाजे की विशेषता में शामिल है। यहाँ ताली बजाने से उत्पन्न ध्वनि बाला हिसार मंडप तक पहुंचती थी। जो हमले की चेतावनी देने के लिए उपयोग की जाती थी । इस कारण किले की सुरक्षा को और अधिक मजबूत बनाया गया। इसके अलावा किले के अन्य दरवाजों में बाहमनी दरवाजा, मोती दरवाजा, बंजारा दरवाजा, पाटनचेरु दरवाजा, जमनी दरवाजा, बोदली दरवाजा तथा मक्का दरवाजा शामिल है।
  • गोलकोंडा किले में तीन प्रमुख किलेबंदी की दीवारें हैं , जो इसे एक सुरक्षित और मजबूत संरचना प्रदान करती हैं। पहली दीवार किले के भीतर स्थित है जो शहर को घेरती थी। जहा किले का मुख्य गढ़ स्थित था, दूसरी दीवार उस पहाड़ी को घेरती थीं। तथा तीसरी दीवार, दूसरी दीवार के बाहर और प्राकृतिक शिलाखंडों के बीच बनाई गई थी।

  • किले का दरबार कक्ष मुख्य संरचनाओं में से एक है, जो बाला हिसार बारादरी के नाम से लोकप्रिय है। इस कक्ष तक पहुंचने के लिए एक हज़ार सीढ़ियों को पार करना पड़ता है । ऊपर पहुँचने पर कक्ष से हैदराबाद और सिकंदराबाद शहर का अद्भुत नजारा देखते ही बनता है।
  • ऐसा कहा जाता है, किले में एक रहस्यमय सुरंग भी मौजूद है जो ‘दरबार हॉल’ से निकलती है और पहाड़ी की तलहटी में एक महल में समाप्त होती है। तथा किले में कुतुब शाही राजाओं के मकबरें भी मौजूद हैं, जिन पर इस्लामी वास्तुकला की छवि दिखती है, जो गोलकोंडा की बाहरी दीवार से लगभग 1 किमी की दूरी पर उत्तर में स्थित हैं।

हीरों का गढ़ गोलकोंडा

गोलकोंडा क्षेत्र विशेष रूप से हीरे की खदानों के लिए प्रसिद्ध था, जिसमें कोल्लूर खदान प्रमुख थी ।इस खदान ने दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध और मूल्यवान हीरों का उत्पादन किया, जिसमे कोह-ए-नूर हीरा शामिल है । 1668 में टैवर्नियर ने ‘द होप डायमंड’ नाम का अनोखा नीला हीरा भी गोलकोंडा से प्राप्त किया गया था ।


गोलकोंडा से प्राप्त हीरों में ब्लू होप, डारिया-ए-नूर, रीजेंट,ड्रेसडेन ग्रीन, ओर्लोव, निज़ाम और जैकब , नसक हीरा, दरिया-ए-नूर, व्हाइट रीजेंट, ड्रेसडेन ग्रीन डायमंड जैसे हिरे शामिल हैं।

मुगलों द्वारा घेराबंदी और अधिग्रहण

17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने गोलकोंडा किले पर आठ महीने लंबी घेराबंदी की थी। लेकिन ‘फ़तेह रहबर’ और ‘अज़दहा पैकर’ जैसी शक्तिशाली तोपों का इस्तेमाल करने बाद भी इसे भेदा नहीं जा सका। अंत में एक कुतुब शाही अधिकारी, सरंदाज़ खान को रिश्वत देकर तथा हथगोलों, तोड़ेदार बंदूकों और संयुक्त प्रहार की सहायता से मुगलों ने किले पर कब्ज़ा किया ।

  • औरंगज़ेब के विजय के बाद, वह अपने समय के सबसे अमीर और शक्तिशाली शासकों में से एक बन गया, क्योंकि गोलकोंडा किला न केवल एक सैन्य और प्रशासनिक केंद्र था, बल्कि यह एक समृद्ध व्यापारिक स्थल भी था, विशेष रूप से हीरे के व्यापार के लिए।
  • 2014 में यूनेस्को द्वारा इस परिसर को विश्व धरोहर स्थल बनने के लिए अपनी ‘अस्थायी सूची’ में रखा गया था, हालांकि गोलकोंडा आज भी यूनेस्को की मान्यता की प्रतीक्षा कर रहा है।
  • गोलकोंडा किले में लाईट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है, जो किले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को अत्यधिक आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करता है। तथा पर्यटकों को किले के इतिहास, घटनाओं और शाही परिवारों के जीवन से परिचित कराता है।
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