History Of Rani Kamlapati: कैसे एक रानी ने अपनी आबरू बचाने के लिए ले ली जल समाधि, जानें भोपाल की अंतिम हिंदू रानी की कहानी
Rani Kamlapati Wiki In Hindi: भोपाल की अंतिम हिन्दू रानी कमलापति, जिनका इतिहास मध्य प्रदेश के भोपाल क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। रानी कमलापति बचपन से ही शिक्षा, घुड़सवारी, मलयुद्ध, और तीरंदाजी में निपुण थीं।;
Rani Kamlapati Ki Kahani Wikipedia: रानी कमलापति (Rani Kamalapati) जिन्हें भोपाल की अंतिम हिन्दू रानी (Bhopal Ki Antim Hindu Rani) भी कहा जाता है। रानी कमलापति की कहानी अतीत से लेकर वर्तमान तक उनकी वीरता, संघर्ष और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। वे गोंड राजवंश (Gond rajvansh) की अंतिम रानी थीं, जिनका इतिहास मध्य प्रदेश के भोपाल क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यह कहानी न केवल उनके समय की राजनीतिक उथल-पुथल को दर्शाती है, बल्कि उनकी अमिट छवि को भी संजोए हुए है, जो वर्तमान समय में एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रेरणा का स्रोत है।
सलकनपुर राज्य और राजा कृपाल सिंह सरौतिया
16वीं सदी में सलकनपुर, जिला सीहोर, मध्य प्रदेश की रियासत पर राजा कृपाल सिंह सरौतिया का शासन था। उनके शासन काल में प्रजा सुखी और संपन्न थी। इसी समय उनके घर एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम कमलापति रखा गया। रानी कमलापति बचपन से ही शिक्षा, घुड़सवारी, मलयुद्ध, और तीरंदाजी में निपुण थीं। राजकुमारी कमलापति अपने पिता के साथ राज्य की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाती थीं।
रानी का विवाह (Rani Kamlapati Ka Vivah)
16वीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य की स्थापना हुई। इसके राजा सूराज सिंह शाह (Suraj Singh Shah) के पुत्र निजाम शाह बहादुर और निडर योद्धा थे। राजा निजाम शाह (Nizam Shah) ने रानी कमलापति से विवाह किया। निजाम शाह (Nizam Shah) गोंड राजा थे और उनकी सात पत्नियां थीं। इनमें से एक रानी कमलापति थीं। परियों की तरह खूबसूरत रानी कमलापति राजा की सबसे प्रिय पत्नी थीं।
गोंड जनजाति का यह राजवंश मध्य भारत में अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध था। इस साम्राज्य का केंद्र भोपाल और इसके आसपास के क्षेत्र थे।रानी कमलापति ने जल प्रबंधन में गहरी रुचि ली। उन्होंने अपने शासनकाल में कई जलाशयों का निर्माण कराया। यह विवाह खुशहाल था। उन्हें एक पुत्र नवल शाह (Naval Shah) की प्राप्ति हुई। राजा निजाम शाह ने रानी के लिए ईस्वी 1700 में भोपाल में लखौरी ईंट और मिट्टी से सात मंजिला महल का निर्माण करवाया।
चाचा को दिया धोखा
उस समय निजाम शाह के भतीजे आलम शाह का बाड़ी पर शासन था। उसे अपने चाचा निजाम शाह से काफी ईर्ष्या थी। कहा जाता है कि आलम शाह को निजाम शाह की दौलत और संपत्ति के साथ कमलापति की खूबसूरती से भी ईर्ष्या थी। आलम शाह रानी कमलापति की खूबसूरती पर मोहित था। उसने रानी से अपने प्यार का इजहार भी किया था। लेकिन रानी ने उसे ठुकरा दिया था। निज़ाम शाह, को आलम शाह ने धोखे से मार दिया था। इस घटना ने रानी कमलापति के जीवन को संघर्षमय बना दिया।
रानी कमलापति अपने पुत्र नवल शाह के साथ गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गईं। रानी अपने पति की हत्या का बदला लेना चाहती थीं। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वह असमर्थ थीं। पति की हत्या के बाद रानी ने अपने बेटे को सिंहासन पर बिठाया और राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली। रानी ने मराठा और मुगल आक्रमणों का बहादुरी से मुकाबला किया।
मोहम्मद खान ने पूरा किया बदला
दोस्त मोहम्मद खान (Mohammad Khan), एक पूर्व मुगल सेनापति, लूटी गई संपत्तियों की गड़बड़ी के बाद मुगलों से अलग हो गया था। उसने भोपाल के पास जगदीशपुर पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। रानी कमलापति ने पति की हत्या का बदला लेने के लिए दोस्त मोहम्मद से सहायता मांगी।
पति की हत्या का बदला लेने के लिए कमलापति ने दोस्त मोहम्मद खान के साथ बाड़ी के राजा आलम शाह पर हमला बोल दिया। जिसमें दोनों गुटों की ओर से युद्ध हुआ। लेकिन इसमें आलम शाह की मौत हो गई। कमलापति का बदला पूरा हुआ। इस घटना के बाद रानी को मोहम्मद खान को एक लाख रूपये देने थे। लेकिन उनके पास नहीं थे। ऐसे में रानी ने भोपाल का एक हिस्सा खान को सौंप दिया।
दोस्त मोहम्मद के साथ गठबंधन ने रानी के संघर्ष को और कठिन बना दिया। मोहम्मद खान यही नहीं ठहरा उसकी नजर अब रानी पर भी थी। जिसके लिए रानी के पुत्र नवल शाह और मोहम्मद खान के बीच युद्ध हुआ। जिसमें नवल शाह की मौत हो गई। रानी समझ गई उसने दोस्त के रूप में अपनी मौत को महल में बुला लिया है। रानी किसी भी कीमत में खुद को और महल को मोहम्मद खान के हवाले नहीं करना चाहती थीं।
बेटे की मौत की सूचना मिलते ही रानी ने महल की तरफ बांध का सकरा रास्ता खुलवा दिया, जिससे तालाब का पानी महल में समाने लगा। ऐसा रानी ने खुद को बचाने के लिए किया था। थोड़ी दी देर में पूरे महल में पानी भर गया और इमारतें डूबने लगीं। रानी कमलापति ने इसी पानी में समाधि ले ली। रानी ने अपने साथ पांच मंजिल महल को भी डूबा लिया। सन् 1989 में कमलापति महल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को सौंपा दिया गया था।
रानी कमलापति के बलिदान के बाद दोस्त मोहम्मद ने उनके महल और संपत्ति पर कब्जा कर लिया। दोस्त मोहम्मद ने गोंड शासकों के क्षेत्र जगदीशपुर का नाम बदलकर ‘इस्लाम नगर’ रखा। अफगानों के रक्तरंजित इतिहास के प्रतीक स्वरूप हलाली और हलालपुरा जैसे नाम आज भी भोपाल की पहचान का हिस्सा हैं।
विरासत और ऐतिहासिक धरोहर
भोपाल में स्थित कमलापति महल (Rani Kamlapati Palace), उनकी वीरता और वास्तुशिल्प प्रतिभा का प्रतीक है। यह महल उनके जल प्रबंधन कौशल और स्थापत्य शैली को दर्शाता है। महल के पास बने तालाब इस क्षेत्र के जल प्रबंधन में उनकी रुचि को दर्शाते हैं। आज यह महल मध्य प्रदेश के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों (Historical Places Of Madhya Pradesh) में से एक है। रानी कमलापति द्वारा निर्मित जलाशय पर्यावरणीय संरक्षण और समाज के प्रति उनकी दूरदृष्टि का प्रमाण हैं।
रानी कमलापति की स्मृति का सम्मान
2021 में, भारत सरकार ने भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन (Habibganj Railway Station) का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन (Kamlapati Railway Station) रखा। यह कदम गोंड समुदाय और रानी की स्मृति को सम्मानित करने के लिए उठाया गया। यह स्टेशन भारत का पहला वर्ल्ड-क्लास रेलवे स्टेशन है, जिसमें आधुनिक सुविधाओं के साथ ऐतिहासिक महत्ता का भी ध्यान रखा गया है।
रानी कमलापति की कहानी आज भी साहस, सम्मान और जल संरक्षण के महत्व का संदेश देती है। रानी कमलापति का जीवन संघर्ष, वीरता और बलिदान का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मसम्मान और समाज के प्रति समर्पण कैसे बनाए रखा जाए। उनकी स्मृति न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे भारत में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जीवित है। वर्तमान में उनके नाम पर रेलवे स्टेशन और महल उनकी विरासत को संजोए रखने का प्रयास है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।