Odisha Sun Temple History: यहां साल में दो बार मूर्ति पर पड़ती है सूर्य की किरणें
Konark Sun Mandir History: उड़ीसा का कोणार्क मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं। वह भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है।
Odisha Sun Temple History: उत्तराखंड भारत का एक बहुत ही खूबसूरत इलाका है और यहां के अल्मोड़ा में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर मौजूद है। देश का सबसे बड़ा सूर्य मंदिर कोणार्क में मौजूद है। अल्मोड़ा से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन कटारमल सूर्य मंदिर मौजूद है। नवी शताब्दी में इस मंदिर को कत्यूर शासक कटारमल देव द्वारा बनाया गया था। ऐसा बताया जाता है कि यहां पर कॉलोनी में नामक राक्षस का आतंक था। जिसके लिए सूर्य देव की आराधना की गई थी। इसके बाद वो यहां बरगद के पेड़ पर विराजित हुए जिस वजह से उसे बड़ आदित्य के नाम से पहचाना जाता है। उड़ीसा के कोणार्क मंदिर के बाद इस देश का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर माना जाता है। यहां पर भगवान बढ़ आदित्य की जो मूर्ति है वह किसी धातु की नहीं बनाई गई है बल्कि बरगद के पेड़ की लकड़ी की बनी है। इसे गर्भगृह में ढक कर रखा जाता है।
कटारमल सूर्य मंदिर इतिहास (Katarmal Sun Temple History)
कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर है। यह पूर्वाभिमुखी है तथा उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में स्थित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है।इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है।
कटारमल सूर्य मंदिर में है 45 छोटे बड़े मंदिर
सूर्य मंदिर के इस परिसर में तकरीबन 45 छोटे-बड़े मंदिर मौजूद है। पहले इन मंदिरों में मूर्तियां रखी हुई थी जो अब गर्भगृह में रखी गई है। बताया जाता है कि यहां पर चोरी हो गई थी जिस वजह से निर्णय लिया गया। यहां पर चंदन की लकड़ी का दरवाजा भी हुआ करता था जो अब दिल्ली के म्यूजियम में रखा हुआ है। साल में दो बार ऐसा होता है जब यहां की मूर्ति पर सूर्य की किरणें पड़ती है। ये नजारा 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को देखने को मिलता है। इस मंदिर को बहुत प्राचीन बताया जाता है और लोगों ने खुद यहां भगवान शुरू की मूर्ति पर सूर्य की किरणें पड़ते हुए देखने का दावा किया है। जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण जाते हैं तब 22 फरवरी को यह नजारा देखने को मिलता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।