Jaipur Nahargarh Fort: आज भी इतिहास को समेटे हुए है नाहरगढ़ का किला, ये दुश्मनों से करता था जयपुर की रक्षा
Jaipur Famous Nahargarh Fort: नाहरगढ़, जिसका अर्थ है बाघों का निवास, ये एक ऐसी जगह थी, जो हमलावर दुश्मनों से जयपुर की रक्षा करती थी।
Jaipur Famous Nahargarh Fort: राजस्थान का नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन १७३४ में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यवधान भी उपस्थित किया करती थी। अतः तांत्रिकों से सलाह ली गई और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी।
कब हुआ नाहरगढ़ किला का निर्माण
अरावली पहाड़ियों के बीच और जयपुर के पास नाहरगढ़ का किला राजा जय सिंह ने 1734 में बनवाया था। 1868 में ये किला बनकर तैयार हुआ था। नाहरगढ़ का मतलब बाघों का निवास होता है। इस किले का पहले नाम सुदर्शनगढ़ था। इस किले में रानियों के लिए 12 खास कमरे बनवाए गए थे और राजा के लिए शानदार कमरा बनाया गया था। आज भी ये महल लोगों का एक पसंदीदा स्थान है।
नाहरगढ़ किला में आधुनिक रेस्तरा
19 वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं। यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं। इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी। किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है। यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है।
नाहरगढ़ किले का इतिहास
मुख्य रूप से 1734 में जयपुर के राजा महाराजा सवाई जय सिंह द्वारा निर्मित इस किले का निर्माण शहर के ऊपर रिज के शिखर पर विश्राम स्थल के रूप में किया गया था। दीवारें आसपास की पहाड़ियों पर फैली हुई थीं, जिससे किलेबंदी का निर्माण हुआ जो इस किले को अंबर की पुरानी राजधानी के ऊपर स्थित किले जयगढ़ से जोड़ता था। हालाँकि अपने इतिहास के दौरान किले पर कभी भी हमला नहीं हुआ, लेकिन इसमें कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ देखी गईं, विशेष रूप से, मराठा सेनाओं के साथ संधियाँ, जिन्होंने 18 वीं शताब्दी में जयपुर के साथ युद्ध किया था। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान जयपुर के राजा सवाई राम सिंह द्वारा ब्रिटिश रेजिडेंट की पत्नी सहित क्षेत्र के यूरोपीय लोगों को उनकी सुरक्षा के लिए नाहरगढ़ किले में ले जाया गया था।
किले का विस्तार 1868 में सवाई राम सिंह के शासनकाल के दौरान किया गया था। 1883-92 में दीर्घ पटेल द्वारा नाहरगढ़ में लगभग साढ़े तीन लाख रुपये की लागत से कई प्रकार के महलों का निर्माण कराया गया था। सवाई माधो सिंह द्वारा निर्मित माधवेंद्र भवन में जयपुर की रानियों के लिए सुइट्स थे और सबसे ऊपर राजा के लिए एक सुइट्स थे। कमरे गलियारों से जुड़े हुए हैं और उनमें अभी भी कुछ नाजुक भित्तिचित्र हैं। नाहरगढ़ महाराजाओं का शिकार निवास भी था। अप्रैल 1944 तक, जयपुर राज्य सरकार अपने आधिकारिक उद्देश्यों के लिए जंतर मंतर वेधशाला में सम्राट यंत्र से पढ़े जाने वाले सौर समय का उपयोग करती थी , जिसमें समय संकेत के रूप में नाहरगढ़ किले से दागी गई बंदूक होती थी।