Aliganj Hanuman Mandir: इस नवाब से जुड़ा अलीगंज हनुमान मंदिर का इतिहास, आइए जाने इसके पीछे को कहानी

Aliganj Hanuman Mandir Lucknow: अलीगंज हनुमान मंदिर हनुमान जयंती, नवरात्रि और दिवाली सहित हिंदू त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को मनाने में सक्रिय भूमिका निभाता है। इन अवसरों के दौरान, मंदिर परिसर को सजाया जाता है, और विशेष अनुष्ठान, भजन (भक्ति गीत), और आरती (भक्ति अनुष्ठान) किए जाते हैं।अलीगंज हनुमान मंदिर अलीगंज में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बना हुआ है, जो भगवान हनुमान के भक्तों के लिए पूजा स्थल, आध्यात्मिक सांत्वना और सामुदायिक सभा के रूप में कार्य करता है।

Update:2023-06-24 08:52 IST
Aliganj Hanuman Mandir Lucknow (Image credit: social media)

Aliganj Hanuman Mandir Lucknow : अलीगंज हनुमान मंदिर, लखनऊ के अलीगंज में स्थित, एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है जो भगवान हनुमान को समर्पित है, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में शक्ति, भक्ति और सुरक्षा का अवतार माना जाता है। मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है, खासकर मंगलवार और शनिवार को, जो भगवान हनुमान की पूजा के लिए शुभ दिन माने जाते हैं। मंदिर में भगवान हनुमान की एक मूर्ति है, और भक्त प्रार्थना करते हैं, भजन गाते हैं और देवता से आशीर्वाद मांगते हैं।

अलीगंज हनुमान मंदिर हनुमान जयंती, नवरात्रि और दिवाली सहित हिंदू त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को मनाने में सक्रिय भूमिका निभाता है। इन अवसरों के दौरान, मंदिर परिसर को सजाया जाता है, और विशेष अनुष्ठान, भजन (भक्ति गीत), और आरती (भक्ति अनुष्ठान) किए जाते हैं।अलीगंज हनुमान मंदिर अलीगंज में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बना हुआ है, जो भगवान हनुमान के भक्तों के लिए पूजा स्थल, आध्यात्मिक सांत्वना और सामुदायिक सभा के रूप में कार्य करता है।

अलीगंज हनुमान मंदिर का इतिहास

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में अलीगंज हनुमान मंदिर, भगवान हनुमान के भक्तों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। भगवान हनुमान को समर्पित यह मंदिर पूरे भारत में सदियों से बनाए गए हैं, जो देवता के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाते हैं। भगवान हनुमान हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख व्यक्ति हैं और शक्ति, भक्ति और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं।

अलीगंज हनुमान मंदिर संभवतः एक मामूली मंदिर या एक छोटी संरचना के रूप में शुरू हुआ जो धीरे-धीरे लोकप्रियता और महत्व में बढ़ता गया। भक्तों की बढ़ती संख्या और मंदिर की बढ़ती प्रमुखता के साथ, भक्तों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समय के साथ इसका विस्तार और नवीनीकरण किया गया होगा।

अगर इतिहास के पन्नों को पलटा जाये तो पता चलता है कि लखनऊ कभी लक्ष्मणपुर के नाम से जाना जाता था। इस नगरी से प्रवाहित होती हुई गोमती इसके स्वर्णिम इतिहास की साक्षी है। बता दें कि 19वीं शताब्दी के आरम्भ में नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी, नवाब वाजिद अली शाह की दादी तथा दिल्ली के मुगलिया खानदान की बेटी आलिया बेगम ने अलीगंज मोहल्ले को बसाया था। इसी मोहल्ले में एक हनुमान मंदिर भी स्थापित किया गया था है जहाँ ज्येष्ठ मास के प्रत्येक मंगलवार को मुख्यत: हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की ओर से श्रद्धा पूर्वक मनौतियां मानकर चढ़ावा चढ़ाया जाता था। जिसे प्रसाद के रूप में बाँट कर ग्रहण किया जाता था।

मंदिर का महत्व और मान्यता

राजधानी लखनऊ में मोर्हरम और अलीगंज का महावीर मेला ये ही दो सबसे बड़े मेले लगते हैं। इस मेले में लगभग एक सप्ताह पहले से ही दूर-दराज़ से हजारों लोग आकर केवल एक लाल लंगोट पहने सड़क पर पेट के बल लेट-लेट कर दण्डवती परिक्रमा करते हुए मंदिर की ओर जाते है। अलीगंज हनुमान जी के इस मंदिर का विशेष महत्व और मान्यताये हैं। बता दें कि यहाँ आने वाले श्रद्धालु सिर्फ लखनऊ से ही नहीं बल्कि दूर-दराज़ इलाकों से भी आते हैं। इतना ही नहीं जहां कहीं भी हनुमान जी के किसी भी नये मंदिर की स्थापना होती है तो वहां की मूर्ति के लिये पोशाक, सिंदूर, लंगोटा, घण्टा और छत्र आदि अलीगंज के इसी हनुमान मंदिर से बिना मूल्य लिए दिये जाते है जिसके तत्पश्ताप वहां की मूर्ति स्थापना पूरी तरह से प्रमाणित मानी जाती है।

रामायण काल से भी है इसका संबंध

पौराणिक तथ्यों के अनुसार अयोध्या से लौटने के बाद श्री रामचन्द्र जी ने जब सीता जी को त्यागने का निश्चय कर लिया था , और दूसरी तरफ श्री लक्ष्मण जी श्री हनुमान जी के साथ माता सीता जी को लेकर वन में छोड़ने जा रहे थे, तब वर्तमान के अलीगंज के पास आते-आते काफी अंधेरा हो गया था जिसके कारण रातभर रास्ते में ही विश्राम करने के लिए वे लोग रुक गए । पौराणिक काल में जिस स्थान पर वे लोग रूके थे, वहाँ एक बड़ा सा बाग था। सीता जी उसी बाग में रूक गयीं, जहॉ हनुमान जी रात भर उनका पहरा देते रहे। बाद में दूसरे दिने में सभी लोग वहाँ से बिठूर के लिये प्रस्थान कर गए।

बाद में उसी बाग में एक मन्दिर बन गया, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गयी। और उस बाग को हनुमान बाड़ी कहा जाने लगा। यह मन्दिर शताब्दियों तक यूँ ही बना रहा। लेकिन 14वीं शताब्दी के शुरुआत में बख्तियार खिलजी ने इसी बाड़ी का नाम बदलते हुए इस्लामबाड़ी कर दिया जो आज तक चला आ रहा है।

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