Maa Tarapeeth West Bengal: 51 शक्तिपीठ में से प्रमुख हैं ये तारापीठ जाने मंदिर का रहस्य और इतिहास
Maa Tarapeeth West Bengal History : तारापीठ का मुख्य मंदिर अत्यंत भव्य और आकर्षक है तथा बंगाल की पारंपरिक चाला रीति में निर्मित है। इस मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों अंकित हैं।
Maa Tarapeeth West Bengal History : भारत में कुल 51 शक्ति पीठ स्थित हैं जिसमें से 5 शक्ति पीठ वेस्ट बंगाल में है। जो कि बर्केश्वर, नालहाटी, बंदीकेश्वरी, फूलोरा देवी, और तारापीठ बंगाल में स्थित है। तारापीठ यहां सबसे प्रमुख शक्तिपीठ में से एक है। आज हम आपको तारापीठ के बारे में बताने जा रहें हैं। तारापीठ एक सिद्ध शक्तिपीठ है। यहां पर सिद्ध पुरुष वामाखेपा का जन्म भी हुआ था। वामाखेपा का पैतृक गांव अटाला है, जो तारापीठ मंदिर से 2 किलोमीटर दूर है।
वामाखेपा को हुए थें मां तारापीठ के दर्शन (Vamakhepa Had Darshan of Maa Tarapeeth)
कहा जाता है की वामाखेपा को मां तारापीठ के दर्शन प्राप्त हुए थे। मंदिर के सामने महाश्मशान में उन्हें मां के दर्शन की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद वामाखेपा सिद्ध पुरुष कहलाए। तारापीठ माता का ही एक रूप मां काली का रूप है। इस मंदिर में काली मां की प्रतिमा को पूजा की जाती है, तारापीठ मां के रूप में।
तारापीठ मंदिर का इतिहास (History of Tarapith Temple)
तारापीठ में स्थित तारा मंदिर बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित एक मध्यम आकार का मंदिर है। यह मंदिर एक तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि इसमें तारा देवी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का आधार लाल ईंटों से बनी मोटी दीवारों से बना है। अधिरचना में कई मेहराबों वाले ढके हुए मार्ग हैं जो शिखर ( शिकार ) तक जाते हैं। गर्भगृह में छत के नीचे देवता की छवि स्थापित है। गर्भगृह में तारा की दो प्रतिमाएँ हैं। शिव को दूध पिलाती हुई माँ के रूप में दर्शाई गई तारा की पत्थर की प्रतिमा - "आदिम प्रतिमा" (तारा की प्रतिमा के भयंकर रूप के इनसेट में दिखाई देती है) को तीन फीट की धातु की प्रतिमा द्वारा छिपाया गया है, जिसे भक्त सामान्य रूप से देखते हैं। यह चार भुजाओं वाली तारा के उग्र रूप को दर्शाती है, जो खोपड़ियों की माला और उभरी हुई जीभ पहने हुए हैं। चांदी के मुकुट और लहराते बालों के साथ, बाहरी प्रतिमा को साड़ी में लपेटा गया है और उसके सिर पर चांदी की छतरी के साथ गेंदे की माला से सजाया गया है। धातु की प्रतिमा के माथे को लाल कुमकुम (सिंदूर) से सजाया गया है। पुजारी इस कुमकुम का एक छींटा लेते हैं और इसे तारा के आशीर्वाद के रूप में भक्तों के माथे पर लगाते हैं। भक्त नारियल, केले और रेशमी साड़ियाँ और असामान्य रूप से व्हिस्की की बोतलें चढ़ाते हैं । तारा की आदिम छवि को "तारा के सौम्य पहलू की नाटकीय हिंदू छवि" के रूप में वर्णित किया गया है।
मां सती के आंखों के तारे गिरे थे यहां। (Stars of Mother Sati Had Fallen Here)
तारापीठ में देवी की आंखों के तारे गिरे थे, इस कारण इसकी प्रसिद्धि तारापीठ के नाम से हुई। ऐसे एक मान्यता यह भी है कि यह स्थल बिहार के महेशी में है। देवी तारा की गणना दश महाविद्याओं में होती है जो शक्ति के रूप में देवी का तांत्रिक अवतार मानी जाती हैं जिनका निवास-स्थान श्मशान होता है। अपने भक्तों की आराधना एवं तंत्र साधकों की साधना से देवी शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं।
बकरों की रक्त बलि दी जाती है यहां। (Blood Sacrifice of Goats Done here)
मां तारापीठ मंदिर में बकरों की रक्त बलि प्रतिदिन दी जाती है। इस तरह की बलि चढ़ाने वाले भक्त देवता से आशीर्वाद मांगते हैं। बलि चढ़ाने से पहले वे मंदिर के पास स्थित पवित्र तालाब में बकरों को नहलाते हैं। देवता की पूजा करने से पहले वे पवित्र तालाब में स्नान करके खुद को शुद्ध भी करते हैं। फिर बकरे को एक खूंटे से बांध दिया जाता है, रेत के गड्ढे में एक निर्दिष्ट खंभे पर रख दिया जाता है, और एक विशेष तलवार से एक ही वार में बकरे की गर्दन काट दी जाती है। फिर बकरे के खून की थोड़ी मात्रा एक बर्तन में एकत्र की जाती है और मंदिर में देवता को अर्पित की जाती है। देवता के प्रति श्रद्धा के प्रतीक के रूप में भक्त गड्ढे से थोड़ा खून अपने माथे पर भी लगाते हैं।
मंदिर के कुंड में स्नान करने से दूर हो जातें हैं सारे रोग और कष्ट ((Diseases Go By Taking Bath In This Kund))
भक्त मंदिर परिसर में पूजा करने से पहले और पूजा के बाद भी मंदिर के समीप स्थित पवित्र तालाब (जीवित कुंड) में पवित्र स्नान करते हैं। कहा जाता है कि तालाब के पानी में उपचार करने की शक्ति होती है और यह मृतकों को भी जीवन प्रदान करता है।
मां तारा को जवा, कमल और नीले फूल पसंद है (Maa Tara Likes Jawa, Lotus Flowers)
शिव शंकर सिंह पारिजात के आगे कहा कि मां तारा को जवा, कमल और नीले फूल अत्यंत प्रिय हैं, इस कारण श्रद्धालुगण इन्हें आवश्यक रूप से मां को अर्पित करते हैं। ऐसे तो यहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है, किंतु शनिवार और रविवार-सोमवार को मां तारा का दर्शन-पूजन परम आनंददायक तथा फलदायी माना जाता है।