Mewar Eklingji Mandir History: मेवाड़ का एक ऐसा मंदिर जिससे जुड़ी है, महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा

Mewar Eklingji Mandir History: मेवाड़ राजघराने की एकलिंगजी महादेव मंदिर में गहरी आस्‍था है। परंपरा के अनुसार, एकलिंगजी महादेव के दर्शन किए बिना कोई महाराणा नहीं बनता।;

Written By :  Jyotsna Singh
Update:2025-01-05 17:38 IST

Mewar Eklingji Mandir History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Mewar Eklingji Mandir History: मेवाड़ के एकलिंग जी से जुड़ी महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की आस्था इतनी अधिक थी कि वे युद्ध में जाने से पहले इस मंदिर में जाकर आशीर्वाद जरूर लेते थे। महाराणा प्रताप, एकलिंग जी की पूजा करते थे और आशीर्वाद लेते थे। यह सिर्फ उनकी ही नहीं बल्कि उनके पूर्वजों की भी परंपरा थी। महाराणा प्रताप, जब भी युद्ध के लिए निकलते थे तो एकलिंग जी को धूप लगाकर ही युद्ध में जाते थे।

इसके अलावा मेवाड़ राजघराने की एकलिंगजी महादेव मंदिर (Eklingji Mahadev Mandir) में गहरी आस्‍था है। परंपरा के अनुसार, एकलिंग महादेव के दर्शन किए बिना कोई महाराणा नहीं बनता। इस मंदिर को लेकर महाराणा प्रताप द्वारा ली गई एक प्रतिज्ञा बेहद लोकप्रिय है। वैसे तो एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। जिसमें महाराणा प्रताप को लेकर जो उल्लेख मिलता है उसमें एक बार विपत्तियों से घिरे पृथ्वीराज का जब धैर्य जवाब दे रहा था, तब अकबर के दरबार में रहकर राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज के लिखे पत्र के उत्तर में महाराणा प्रताप ने जो वीरतापूर्ण शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं, जो इस प्रकार हैं-

तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग।

इस संदेश का अर्थ है कि, प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर के लिए मेरे मुख से सदैव तुर्क ही निकलेगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा। यानी वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे। अकबर ने उन्हें समझाने के लिए चार बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था। लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था।

इस जगह स्थित है श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर (Mewar Eklingji Mandir Kaha Hai)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर उदयपुर से लगभग 22 किमी और नाथद्वारा से लगभग 26 कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर कैलाशपुरी नाम के स्थान पर स्थित है। पूर्वी भारत में जहां त्रिकलिंग की मान्यता रही है, वहीं पश्चिमी भारत में एकलिंग की मान्यता है।

मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश के लिए वहाँ के ट्रस्ट से लेनी होती है आज्ञा

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल (Bappa Rawal) ने 8वीं शताब्दी में करवाया और उन्होंने ही श्री एकलिंग जी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। इस मंदिर को कई बार आक्रांताओं द्वारा क्षति भी पहुंचाई गई। वर्तमान समय में मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराणा रायमल ने करवाया था। मुख्य मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्ति स्थापित है। मंदिर परिसर में 108 देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं, और इन मंदिरों के बीच में ही श्री एकलिंग जी मंदिर भी स्थापित हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में आम दर्शनार्थियों का प्रवेश वर्जित हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश वहाँ के ट्रस्ट से आज्ञा लेकर ही हो सकता है। उदयपुर से यहाँ जाने के लिए बसें मिलती हैं।

चतुर्मुखी शिवलिंग की क्या है विशेषता (Chaturmukhi Shivalinga Ka Mahatva)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एकलिंगजी के चार चेहरे भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं। पूर्व दिशा की तरफ का चेहरा सूर्य देव के रूप में पहचाना जाता है। पश्चिम दिशा के तरफ का चेहरा भगवान ब्रह्मा को दर्शाता है। उत्तर दिशा की तरफ का चेहरा भगवान विष्णु को दर्शाता है। दक्षिण की तरफ का चेहरा रूद्र है जो स्वयं भगवान शिव का है।

पौराणिक ग्रंथों में है एकलिंगजी महादेव की महिमा का बखान (Eklingji Mandir)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

महाराणा कुंभा और महाराणा रायमल के शासनकाल के समय रचित दो महत्वपूर्ण पौराणिक ग्रंथों के माध्यम से एकलिंग महादेव की महिमा का बखान साहित्य के माध्यम से आज भी विद्दमान है। इन कृतियों में मंदिर की पवित्रता का गुणगान किया गया और एकलिंगजी के दिव्य विधान में शासकों की आस्था को लेकर बखान किया गया है।

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