Naina Devi Temple: इस मंदिर में दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं नेत्र रोग, दूर दूर से आते है भक्त
Naina Devi Temple: नैनीताल में मौजूद नैना देवी मंदिर ना सिर्फ देश बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। चलिए इस मंदिर के बारे में जानते हैं।
Naina Devi Temple : नैना झील के उत्तरी किनारे पर स्थित नैनादेवी का मंदिर भक्त जनों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। 1880 के भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था, जिसे दोबारा बनवाया गया है। यहां दो नेत्रों की छवि अंकित है, जो नैना देवी को दर्शाती है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप धारण कर लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार पर पीपल का एक विशाल वृक्ष है। यहां माता पार्वती को नंदा देवी कहा जाता है।
दूर होते हैं नेत्र रोग
इस मंदिर में सालों भर नेत्र रोग से पीड़ति श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मनचाही मुराद पूरी होने के बाद श्रद्धालु सोने या चांदी की आंखें मंदिर में चढ़ाते हैं। नेतुला महारानी मंदिर में हर मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा का इंतजाम किया जाता है। इस दिन भक्तों की काफी भीड़ होती है। यहां पर लोग संतान प्राप्ति के लिए भी मन्नत मांगते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में श्रद्धापूर्वक पूजा करने से कई नि:संतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति हो चुकी है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष प्रजापति की बेटी उमा का विवाह महादेव के साथ हुआ। दक्ष प्रजापति शिव को पसंद नहीं करते थे। देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने उमा का विवाह शिव के साथ कर दिया। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया और शिव व उमा को आमंत्रित नहीं किया। देवी उमा जिद के कारण बिना बुलाए यज्ञ आयोजन में पहुंची। प्रजापति ने उन्हें व शिव को अपमानित किया तो उमा यज्ञ अग्नि में कूद गईं। तब शिव ने सती उमा के जले हुए शरीर को कंधे पर लादकर आकाश में विचरना शुरू कर दिया। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनीताल में सती का एक नयन गिरा था, दूसरा नयन हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में गिरा। तभी से नैनीताल में मां के इस रूप को नयना या नैना देवी के रूप में पूजा जाता है।