Rishikesh Famous Temple: ऋषिकेश के नीलकंठ मंदिर में जल चढाने का है विशेष महत्व, दर्शन मात्र से होती है मोक्ष की प्राप्ति
Rishikesh Famous Temple: सावन मास में भक्त भगवान् शिव के ख़ास स्थानों पर जाकर उनका पूजन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसे ही एक बेहद ख़ास बभगवान भोलेनाथ का मंदिर हिमालय पर्वतों के तल में बसा हुआ है।
Rishikesh Famous Temple: सावन का महीना भगवान् शिव को समर्पित माना जाता है। हिन्दू धर्म में या मास में भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इस पुरे महीने में देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। शिव भक्त भोलेनाथ से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शिव मंदिर जरूर जाते हैं। हालाँकि भगवान् शिव की पूजा साल के 365 दिन की जाती है लेकिन सावन का महीना पूरा ही भोलेनाथ को समर्पित माना गया है।
मान्यता है कि जो भी भक्त सावन के महीने में भगवान् शिव की साफ़ दिल और सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा -अर्चना करता है भगवान् भोलेशंकर उनकी मनोकामनााओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। सावन मास में भक्त भगवान् शिव के ख़ास स्थानों पर जाकर उनका पूजन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसे ही एक बेहद ख़ास बभगवान भोलेनाथ का मंदिर हिमालय पर्वतों के तल में बसा हुआ है।
एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होने के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद भी मिलता है। बता दें कि यह मंदिर है ऋषिकेश में स्थित नीलकंठ महादेव का मंदिर। जी हाँ , इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकले विष को ग्रहण किया गया था। उल्लेखनीय है कि इस मंदिर को बेहद प्रभावशाली ज्योतिर्लिंग माना जाता है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर से जुडी खास बातें:
सावन के महीने में प्रत्येक वर्ष लाखों कांवड़िए करते हैं जलाभिषेक
ऋषिकेश में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठ मंदिरों में से एक माना जाता है। यहाँ सैलून भर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है लेकिन ख़ास तौर पर सावन के महीने में यहाँ लाखों की संख्या में भक्त शिव पूजन करने आते हैं। बता दें कि यह मंदिर बेहद खूबसूरत है यहाँ की नक्काशी देखते ही बनती है। उल्लेखीनय है कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को कई तरह के पहाड़ और नदियों से होकर गुजरना पड़ता है। बता दें कि इस मंदिर को काफी जाग्रत माना जाता है। सैलून भर यहाँ आने वाले भक्तो की भीड़ लगी रहती है। इस मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। गौरतलब है कि पौड़ी गढ़वाल जिले के मणिकूट पर्वत पर स्थित, मधुमती और पंकजा नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर में हर साल सावन मास में लाखों की संख्या में शिवभक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता भी यह है कि सावन सोमवार के दिन नीलकंठ महादेव के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
पौराणिक कथा
बता दें कि इस मंदिर से जुडी पौराणिक कथा भी काफी प्रचलित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकली चीजें देवताओं और असुरों में बंटती गईं लेकिन तभी हलाहल नाम का विष समुद्र मंथन से निकला। इस विष को ना तो देवता लेना चाहते थे और ना ही असुर। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह विष इतना ज्यादा खतरनाक था कि संपूर्ण सृष्टि का विनाश एक झटके में कर सकता था। इतना ही नहीं इस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, जिससे सारे संसार में हाहाकार मच गया। सभी लोग देवता - असुर सभी त्राहि माम करने लगे। और देवों के देव महादेव से सृष्टि बचाने की गुहार करने लगे। भगवान शिव ने पूरे ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिए स्वयं विष का पान किया। लेकिन जब भगवान शिव विष का पान कर रहे थे, तभी माता पार्वती ने उनका गला पकड़ लिया, जिससे विष ना तो गले से बाहर निकल सका और ना ही शरीर के अंदर गया। वो विष भगवान् शिव के गले में ही रह गया। जिस वजह से उनका गला नीला पड़ गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस घटना के फलस्वसरूप भगवान भोलेनाथ नीलकंठ कहलायें।
मान्यता यह भी है कि विष की उष्णता (गर्मी) से बेचैन होकर भगवान शिव शीतलता की खोज में हिमालय की तरफ बढ़ चले गए और वह मणिकूट पर्वत पर पंकजा और मधुमती नदी की शीतलता को देखते हुए नदियों के संगम पर एक वृक्ष के नीचे बैठ गए थे। कहा जाता है कि यहाँ भगवान् शिव समाधि में पूरी तरह लीन होकर वर्षों तक समाधि में ही रहे, जिसके कारण माता पार्वती परेशान भी हो गईं।
इस जगह का नाम पड़ा क्यों पड़ा नीलकंठ महादेव
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती भी पर्वत पर बैठकर भगवान शिव की समाधि खत्म होने का इंतजार करने लगीं। लेकिन जब कई वर्षों के बाद भी भगवान शिव समाधि में लीन ही रहे। सभी देवी-देवताओं की लगातार प्रार्थना करने के बाद भगवान् शिव ने आंख खोली और कैलाश पर जाने से पहले इस जगह को नीलकंठ महादेव का नाम से शुशोभित किया। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को नीलकंठ महादेव के नाम से ही जाना जाता है। गौरतलब है कि कहा जाता है कि जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधि में लीन हुए थे, आज उसी जगह पर एक विशालकाय मंदिर स्थित है। हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं। ख़ास तौर पर सावन के महीने में इस जगह और इस मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है।