Nathdwara: नाथद्वारा का है ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व, वैष्णव धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में सर्वोपरि

Shri Nath Ji Temple: श्रीनाथजी मंदिर में भगवान श्रीनाथजी का विग्रह भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप को दर्शाता है, जिसकी अवस्था सात वर्ष के बालक की है।

Update:2022-12-21 14:21 IST

Rajasthan Shrinath ji temple (photo: social media )

Shri Nath Ji Temple: भारत का राजस्थान राज्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और परंपरागत रूप से बहुत ज्यादा मायने रखता है। यहां के मुख्य आकर्षण विशाल किेले, मंदिर, हवेलियां और अन्य प्राचीन सरंचनाएं हैं, जिन्हें देखने के लिए विश्व भर से पर्यटक यहां तक का सफर तय करते हैं।

ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थल है नाथद्वारा, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से काफी ज्यादा महत्व रखता है। यह खूबसूरत स्थल अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित है। वैष्णव धर्म के वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थानों में नाथद्वारा धाम सर्वोपरि माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के स्वरुप श्री नाथजी का भव्य रूप इस नाथद्वारा मंदिर में स्थित है।

श्रीनाथ जी की मूर्ति पहले मथुरा के निकट गोकुल में स्थित थी।परंतु जब औरंगजेब ने इसे तोडना चाहा, तो वल्लभ गोस्वामी जी ने इसे राजपूताना (राजस्थान) ले गए। जिस स्थान पर मूर्ति की पुनः स्थापना हुई, उस स्थान को नाथद्वारा कहा जाने लगा।

नाथद्वारा शब्द दो शब्दों को मिलाकर बनता है नाथ+द्वार, जिसमे नाथ का अर्थ भगवान से है।द्वार का अर्थ चौखट या आम भाषा मे कहा जाए तो गेट से है। तो इस प्रकार नाथद्वारा का अर्थ "भगवान का द्वार हुआ।

श्रीनाथजी मंदिर में भगवान श्रीनाथजी का विग्रह भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप को दर्शाता है, जिसकी अवस्था सात वर्ष के बालक की है।

कृष्ण जन्माष्ठमी के त्यौहार को श्रीनाथजी मंदिर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्ठमी के अलावा मंदिर में होली और दिवाली के त्यौहार को भी बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।

श्रीनाथजी का मंदिर बहुत बड़ा है, परंतु मंदिर मैं किसी विशिष्ट स्थापत्य कला शैली के दर्शन नहीं होते। वल्लभ संप्रदाय के लोग अपने मंदिर को नांदरायजी का घर मानते है। मंदिर पर कोई शिखर नहीं है। मंदिर बहुत ही साधारण तरीके से बना हुआ है। जहाँ श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित है, वहां की छत भी साधारण खपरैलों से बनी हुई हैं।

नाथद्वारा के श्रीनाथ जी मंदिर में स्थापित श्रीनाथजी के विग्रह को भगवान कृष्ण का ही दूसरा रूप माना जाता है। मंदिर में स्थित भगवान श्रीनाथजी का विग्रह दुर्लभ काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। विग्रह का बायाँ हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। भगवान के होंठों के नीचे एक हीरा भी लगा हुआ है। श्रीनाथजी के विग्रह के साथ में एक शेर, दो गाय, एक सांप, दो तोता और दो मोर भी दिखाई देते हैं। इन सब के अलावा तीन ऋषि मुनियों की चित्र भी विग्रह के पास रखे हुए हैं।

नाथद्वारा दर्शन समय और तरीका

नाथद्वारा दर्शन करने का स्थान अत्यधिक संकरा है। इसलिए दर्शनार्थियों को बारी बारी से दर्शन कराया जाता है। नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी के मंदिर में भगवान श्रीनाथजी के विग्रह के विषय में श्रद्धालुओं और पुजारियों में यह विश्वास है की श्रीनाथजी का विग्रह जीवित है। इसलिए श्रीनाथजी के मंदिर में होने वाली भगवान की पूजा अन्य मंदिरों से अलग होती है। श्रीनाथजी मंदिर में भगवान श्रीनाथजी की दिनचर्या (पूजा) एक छोटे बालक की ही तरह रहती है।

भगवान श्रीनाथजी की दिनचर्या में उन्हें सुबह जल्दी उठाने से लेकर भगवान को नहलाने, भोजन कराने, आराम कराने और भगवान को रात के समय सुलाना यह सभी कार्य पूर्व निर्धारित होते हैं। श्रीनाथजी भगवान के भोजन के समय चढ़ाये जाने वाले प्रसाद को भोग कहा जाता है।

श्रीनाथजी के दर्शन (दिनचर्या) को दिन के आठ भागों में बाँटा गया है और इन सभी भागों को अलग-अलग नाम से बुलाया जाता है जिन्हे – मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उथापन, भोग, आरती और शयन नाम से बुलाया जाता है। इन सभी दर्शनों में भगवान श्रीनाथजी को हर बार अलग -अलग रूप में तैयार किया जाता है। वैसे तो श्रद्धालु दिन के समय होने वाली किसी भी आरती में दर्शन करने के लिए जा सकते है।

लेकिन भगवान की श्रीनाथजी श्रृंगार आरती को देखना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है। श्रृंगार आरती में भगवान श्रीनाथजी को बहुत ही सुन्दर और हाथ से बने हुए रेशम के कपड़ों से सजाया जाता है। भगवान के सभी वस्त्रों पर जरी और कढ़ाई का बहुत महीन काम होता है। कपड़ो के अलावा भगवान श्रीनाथजी को पहनाए जाने वाले सभी गहने असली सोने के बने हुए होते है।

श्रीनाथजी के दर्शन के अतिरिक्त मंदिर में कुछ ऐसे भी स्थल है, जिनमें कोई विशेष मूर्ति नहीं है। फिर भी वह भक्तों के आकर्षण का केंद्र हैं। उन विशेष स्थानों के नाम इस प्रकार है—

1- फूलघर, 2- पानघर, 3- शाकघर, 4- घी घर, 5- दूध घर, 6 मेवाघर आदि।

इन स्थानों की विशेषता यह है, कि फूलघर में इतने अधिक फूल होते है , कि हर प्रकार के फूलों के छोटे बड़े पहाड़ से बन जाते हैं। यही बात पान, शाक, घी, मेवा, आदि स्थानों के संबंध मे भी देखी जाती है।

नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर एक किलेनुमा महल के भीतरी भाग में स्थित है। मंदिर के बाहरी भाग में स्थित महल का निर्माण सिसोदिया वंश के राजपूत राजाओं द्वारा करवाया गया था। मुख्य मंदिर का वास्तु वृंदावन में स्थित भगवान कृष्ण के पिता नंद बाबा को समर्पित मंदिर के वास्तु से प्रभावित है।

मंदिर के शीर्ष भाग पर एक कलश स्थापित किया गया है, कलश के साथ भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र को भी स्थापित किया गया है। कलश और सुदर्शन चक्र के अलावा मंदिर के शिखर पर सात पताकाएं भी फहराई गई है। ये सातों पताकाएं पुष्य मार्ग वैष्णव सम्प्रदाय (वल्लभ सम्प्रदाय) का प्रतिनिधित्व करती है। श्रीनाथजी के मंदिर को "श्रीनाथजी की हवेली" के नाम से भी जाना जाता है। पुष्य मार्ग वैष्णव सम्प्रदाय में श्रीनाथजी को एक व्यक्ति मान करके पूजा जाता है इस वजह से श्रीनाथजी के मंदिर को "श्रीनाथजी की हवेली" कह कर बुलाया जाता है। सामान्य भाषा में यह कहा जाता जा सकता है की नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी का मंदिर भगवान श्रीनाथजी घर है। इसलिए मंदिर में श्रीनाथजी की पूजा भी और मंदिरों से अलग प्रकार से होती है।

इसीलिए एक घर में जैसे अलग-अलग उपयोग के लिए कक्ष बने हुए होते है। वैसे ही मंदिर में दूध के लिए एक कक्ष, मिठाई के लिए एक कक्ष, सुपारी के लिए एक कक्ष, रसोई घर, फूलों के लिए अलग कक्ष, बैठक, घुड़साल, ड्रॉइंगरूम, आभूषण कक्ष, सोने और चांदी को पीसने की चक्की और लॉकर रूम बना हुआ है।

इन सभी कक्षों के अलावा जिस रथ पर भगवान श्रीनाथजी के विग्रह को लाया गया था उसको भी घर के मुख्य वाहन की तरह प्रदर्शित किया गया है। नाथद्वारा मंदिर के मुख्य परिसर में भगवान मदन मोहन और नवीन प्रिया को समर्पित दो मंदिर और बने हुए है।

नाथद्वारा कैसे पहुंचे

पश्चिम रेलवे की अहमदाबाद दिल्ली लाइन पर मारवाड़ जंक्शन है। मारवाड़ से एक लाइन मावली तक जाती है। मावली से 15 किलोमीटर पहले नाथद्वारा है। नाथद्वारा से 15 किलोमीटर की दूरी पर कांकरोली रेलवे सटेशन है। नाथद्वारा स्टेशन से नगर लगभग 6 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से नगर तक बसे चलती हैं। उदयपुर से नाथद्वारा की दूरी 48 किलोमीटर है। हवाई , रेल या सड़क मार्ग से उदयपुर पहुंचकर नाथद्वारा जाया जा सकता है। उदयपुर से बस, टैक्सी द्वारा नाथद्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

ठहरने के लिए नाथद्वारा मैं अनेक सुंदर व अच्छी व्यवस्था वाली कई धर्मशालाएं है। इसके अलावा यहा अच्छे होटल भी हैं। मंदिर में भी ठहरने की ऑनलाइन बुकिंग व्यवस्था भी है।

अक्टूबर से मार्च तक का मौसम इस जगह की यात्रा करने के लिए सबसे अनुकूल है। इस जगह पर आकर लोगों को एक अलग अनुभूति होती है। जिंदगी में एकबार इस जगह की यात्रा कर श्रीनाथ भगवान के दर्शन का लाभ जरूर उठाना चाहिए। जय श्री कृष्णा।

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