Rajasthan Famous Place: राजस्थान के इस जगह पर मिलता है श्री कृष्ण की लीला का प्रमाण
Rajasthan Famous Place: राजस्थान का संबंध द्वापर युग से भी है इसका एक साक्षात प्रमाण यह प्रसिद्ध मंदिर है।
Rajasthan Famous Tourist Place: राजस्थान में एक बहुत पुरानी विरासत संरचना है, जो हिंदू मंदिर के रूप में विख्यात है, हम बात कर रहे है, अरावली के पहाड़ियों में बसी प्रसिद्ध श्री कृष्ण भूमि की। जहाँ श्री कृष्ण के चरणों की पूजा की जाती है। जयपुर की अरावली पहाड़ियों के मध्य स्थित 'चरण मंदिर' भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा एक प्राचीन स्थल है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के दाहिने चरण चिन्ह और गायों के पांच खुरों के दर्शन होते हैं। यह देशभर में अकेला ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नहीं बल्कि उनके चरण चिन्ह की पूजा की जाती है।
ऐसे पड़ा मंदिर का नाम
मंदिर का यह नाम 'चरण मंदिर' इसलिए रखा गया है क्योंकि यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के दाहिने चरण का अद्भुत और चमत्कारिक चिन्ह एक सफेद पत्थर पर उकेरा गया है। जयगढ़ किले से नाहरगढ़ किले पर जाने वाले पहाड़ी रास्ते पर यह मंदिर आता है।
कहा है यह श्रीकृष्ण चरण मंदिर
भगवान कृष्ण का यह मंदिर नाहरगढ़ किले के रास्ते में स्थित है। यह मंदिर नाहरगढ़ किले के रास्ते में स्थित है। उल्लेखनीय है कि यह नाहरगढ़ रिजर्व वन के बीच में स्थित है। इसे शहर के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली केवल एक सड़क है। मंदिर की वास्तुकला अन्य मंदिरों से अलग है।
मन्दिर में जानें का समय
मंदिर सूर्योदय के समय भक्तों के लिए खुलता है और सूर्यास्त के समय बंद हो जाता है। चूंकि मंदिर वन क्षेत्रों के बीच स्थित है, इसलिए अंधेरे के दौरान मंदिर में जाने से बचने की सलाह दी जाती है।
रखरखाव के लिए पुजारी भी
बहुत ही शांत मंदिर है, प्रभु के चरण कमल के साक्षात दर्शन मिलते हैं, चरण कमल के बगल में 05 या 06 पत्थर हैं जिनमे प्रभु के गाय और शीला के पैरो \ खुरों के निशान हैं। इस मंदिर के पुजारी पारिक खानदान के लोग हैं।
अंबिका वन से है उल्लेखित
कहा जाता द्वापर युग में जयपुर जिले में विराट नगर तब विराट जनपद था। पांडवों ने यहीं पर एक साल का अज्ञातवास बिताया था। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण उसी कालखंड में तब अंबिका वन कहलाए जाने वाले आमेर में आए थे।
ऐसे पड़े थे श्री कृष्ण के पदचिन्ह
मंदिर में लिखे इतिहास के मुताबिक द्वापरयुग में नन्द बाबा, श्री कृष्ण और ग्वाल बालों ने अम्बिका वन (आमेर पहाड़ी) की यात्रा की। वहां एक बड़ा अजगर नन्द बाबा का पैर पकड़ लिया। नन्द बाबा ने श्री कृष्ण को पुकारा और श्री कृष्ण वहां दौड़कर पहुंचे। उन्होंने उस अजगर को दाहिने चरण से दबाकर नंदबाबा को छुड़ाया। अजगर ने अपनी देह छोड़ दी और वह पुरुष बन गया। उसने खुद को इन्द्र का पौत्र बताते हुए अपना नाम सुदर्शन बताया। श्राप के प्रभाव से अजगर बनकर अम्बिका वन में विचरण कर रहा था। तभी से भगवान श्रीकृष्ण के दाहिने चरण का चिन्ह पत्थर पर बन गया।
कब बना मंदिर?
जयपुर की स्थापना से भी पहले इस छोटे किले जैसे मंदिर का निर्माण हुआ था। आमेर के मिर्जा राजा मान सिंह प्रथम ने 16 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि करीब 400 वर्ष पहले, महाराजा मानसिंह प्रथम ने भगवान श्री कृष्ण के स्वप्न में दर्शन के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया। द्वापर युग में, श्रीकृष्ण ने अपने चरण से एक अजगर को मुक्त किया था, जिसके बाद उनके चरण का चिन्ह एक सफेद पत्थर पर उभर आया।
नाहरगढ़ किले के जंगल में श्री कृष्ण चरण मंदिर जयपुर में किसी के लिए भी अवश्य जाना चाहिए। यह आध्यात्मिक शांति, प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक साज़िश का एक अनूठा मिश्रण प्रदान करता है, जो इसे वहां आने वाले सभी लोगों के लिए एक यादगार अनुभव बनाता है।