Religious Tourism in India: धार्मिक पर्यटन -बढ़ती भीड़ की आवश्यकताएं और मुश्किलें
Religious Tourism in India: हमारा पर्यटन उद्योग हमारी संस्कृति और विरासत से समृद्ध है और पर्यटकों को आकर्षित करने की बहुत बड़ी ताकत भी रखता है
Religious Tourism in India: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भौगोलिक विविधता पर्यटकों के अनुभवों को एक विस्तृत श्रृंखला का आधार प्रदान करती है। जिसमें विविध धर्म, संस्कृति, नदियां ,पहाड़, ट्रैक्स, आध्यात्मिक वातावरण, ऐतिहासिक स्थल, बड़े-बड़े मंदिर आदि शामिल हैं। पर्यटन इस समय पूरी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है और भारत में भी पर्यटन देश की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देता है और तेजी से बढ़ रहा है। यूं एन डब्ल्यू टी ओ के अनुसार भारत में सकल घरेलू उत्पाद 2018 के अनुसार 42,67 3 मिलियन नौकरियां और कुल रोजगार का 8.1% पर्यटन से आता है, जिसका 15.6% भाग धार्मिक पर्यटन से संबंधित है।
भारत विभिन्न धर्मों का परिक्षेत्र है, यहां धार्मिक दृष्टिकोण से पृष्ठभूमि अत्यधिक वृहद भी है और व्यापक भी है तथा यहां पर विविध प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी बड़ी संख्या में है विशेषकर हिंदू धर्म के। इस प्रकार हमारा देश धार्मिक पर्यटन के लिए उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। हमारा पर्यटन उद्योग हमारी संस्कृति और विरासत से समृद्ध है और पर्यटकों को आकर्षित करने की बहुत बड़ी ताकत भी रखता है लेकिन हम अब तक उसे संगठित और प्रभावित तरीकों से प्रयोग करने में सफल नहीं हुए हैं। पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार सन् 2014 में 1,28,280 करोड़ भारतीय पर्यटकों ने और 2 233 करोड़ विदेशी पर्यटकों ने भारत के विभिन्न पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया, जबकि 2018 में यह संख्या बढ़ गई। सन् 2018 के आंकड़ों के अनुसार 1,85,931 करोड़ भारतीय पर्यटकों और 2,903 करोड़ विदेशी पर्यटकों ने भारत में विभिन्न पर्यटक स्थलों का भ्रमण किया।
अब 2 दिन पूर्व अक्षय तृतीया के दिन चार धाम यात्रा प्रारंभ हो गई है तो एक बार फिर अगले 6 महीने तक उत्तराखंड पर्यटकों से गुलजार रहेगा। बाबा केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री में विधिवत पारंपरिक पूजन के बाद भगवान के दर्शनों के लिए मंदिर के पट भक्तों के लिए खोल दिए गए, जबकि बद्री विशाल के कपाट भी आज से विधिवत पूजा- अर्चना के बाद खोल दिए जाएंगे। खबरों के अनुसार पंचकेदार में प्रमुख केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही धाम में 32,000 श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के 'हर-हर महादेव’ के जयकारों के साथ दर्शन किए। पिछले साल पहले दिन 21,000 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए थे, जो रिकॉर्ड था। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कपाटोद्घाटन के मौके पर इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।
पहले दिन जिस तरह से श्रद्धालुओं से का उत्साह देखने को मिला है, उससे यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या और भी अधिक हो सकती है। इन चारों धामों पर दिन का तापमान 0 से 3 डिग्री दर्ज किया जा रहा है। वहीं, रात में पारा माइनस में पहुंच रहा है। इसके बावजूद केदारनाथ धाम से 16 किमी पहले गौरीकुंड में करीब 10 हजार श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 7 से 8 हजार के बीच था। चार धाम यात्रा के लिए अब तक 22.15 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पंजीकरण करा चुके हैं। पिछले साल रिकॉर्ड 55 लाख लोगों ने दर्शन किए थे। यहां पहले ही दिन हजारों लोगों की भीड़ के कारण अव्यवस्था भी देखने को मिल रही है।
हमारे यहां धार्मिक यात्राओं को अत्यधिक महत्व हमेशा से ही दिया जाता रहा है। इसलिए कुछ वर्षों में इन धार्मिक यात्राओं का स्वरूप बदल गया है और इन्हें अब धार्मिक पर्यटन के रूप में अधिक देखा जाता है। पहले जहां अपने घर -संसार की जिम्मेदारियां को पूरा करने के बाद महिलाएं और पुरुष इन तीर्थ यात्राओं पर निकलते थे लेकिन अब इन तीर्थ यात्रा पर युवा अधिक जाते हैं। कारण की वे चाहते हैं कि एक तो सही उम्र में उनको भगवान के मंदिरों के दर्शनों का लाभ मिल जाए और दूसरा तीर्थ यात्रा के साथ-साथ पर्यटन भी हो जाए। इसलिए धार्मिक यात्राएं अब धार्मिक पर्यटन का रूप ले चुकी हैं। पहले भी विभिन्न जातियों और समाज के लोग चाहे वह देश के किसी भी हिस्से में या विदेश में भी रहते हैं , शादी के बाद अपने कुल देवता या कुलदेवी के यहां आशीर्वाद लेने जाते थे और बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए भी जाते रहते थे, इसके अलावा किसी भी मान्यता को पूरी होने के बाद भी वह अपने कुलदेवता या कुलदेवी या किसी अन्य भगवान जहां की मनौती मांगी गई हुई थी वहां दर्शनों के लिए जाते ही थे।
पर अब ऐसा कोई विशेष कारण या आयोजन हो या नहीं हो लोग स्वत: ही इन धार्मिक स्थलों पर जाते ही रहते हैं। भगवान बद्री विशाल के दर्शनों के लिए कहते हैं - "जो जाए बद्री,वो न आए ओदरी"यानि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। तो लोग जन्म मरण के बंधन की मुक्ति के लिए भी बद्री विशाल के दर्शनों को जाते रहे हैं। कोविड महामारी के बाद धार्मिक पर्यटन को लेकर लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। अब बहु-पीढ़ी वाले परिवारों, जोड़ों/हनीमूनर्स, दोस्तों के समूह, मिलेनियल्स और जेन जेड भी धार्मिक पर्यटन यात्राओं पर जा रहें हैं । इसी साल जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद अयोध्या भारतीयों के साथ-साथ विदेशों में रहने वाले एनआरआई के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन चुका है और अंततः विदेशी यात्रियों के यात्रा कार्यक्रम का हिस्सा बन रहा है।
EaseMyTrip और Cleartrip जैसे ट्रैवल पोर्टल्स में भुवनेश्वर, तिरूपति, देहरादून और तिरुवनंतपुरम जैसे धार्मिक केंद्रों के लिए यात्रा बुकिंग में बढ़ोतरी देखी जा रही है। देखा जा रहा है कि आध्यात्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध स्थानों में खंडों में उल्लेखनीय 1.6 गुना वृद्धि हुई है। पिछले दो वर्षों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आध्यात्मिक स्थलों की खोज में 97 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और विशेष करअयोध्या की खोज में 1,800 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
मार्च 2023 में पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, धार्मिक पर्यटन स्थलों ने 2022 में 1,34,543 करोड़ रुपये कमाए, जो 2021 में 65,070 करोड़ रुपये थे। 2014-15 में, सरकार ने 'तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान' (प्रसाद) शुरू किया। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, यह योजना धार्मिक पर्यटन अनुभव को समृद्ध करने के लिए पूरे भारत में तीर्थ स्थलों के विकास और पहचान पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य संपूर्ण धार्मिक पर्यटन अनुभव प्रदान करने के लिए तीर्थ स्थलों को प्राथमिकता, योजनाबद्ध और टिकाऊ तरीके से एकीकृत करना है। जब इसे लॉन्च किया गया, तो सरकार ने प्रसाद योजना के तहत देश में विकास के लिए 25 राज्यों के 41 धार्मिक स्थलों की पहचान की। इस योजना के तहत काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, केदारनाथ और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जैसी कुछ परियोजनाएं पिछले दशक में सफलतापूर्वक पूरी की गई हैं।
इसके अलावा, आगंतुकों की आध्यात्मिक यात्राओं की मांग अब पारंपरिक तीर्थयात्राओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अनूठे स्थानीय अनुभवों और वैष्णो देवी में व्हाइट-वॉटर राफ्टिंग और नाइट ट्रैकिंग, ऋषिकेश में बंजी जंपिंग, गंगा में नौकायन जैसे आउटडोर रोमांच के साथ आध्यात्मिक ब्रेक का संयोजन है। नदी, पुरी में एक विरासत शिल्प गांव का दौरा करना या केरल में कलायारीपयट्टू जैसी स्थानीय कला सीखना।अब यहां धार्मिक स्थलों पर हुई कुछ दुघर्टनाओं पर नजर डालते हैं। 11 फरवरी, 2013 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 37 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।
श्रद्धालु कुंभ मेले से घर जा रहे थे। 19 नवंबर, 2012 को बिहार के पटना में छठ पूजा के दौरान गंगा नदी पर एक पुल पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। 14 जनवरी, 2011 को केरल के सबरीमाला में मकर संक्रांति पर 104 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। । 4 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक मंदिर में भगदड़ में 63 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। 16 जून , 2013 में रुद्र प्रयाग ज़िले में केदारनाथ मंदिर में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ ने कई शहरों और गांवों को तबाह कर दिया।
इस बाढ़ में हज़ारों की संख्या में लोग बह गए जिनमें से कई लोगों के शव कभी मिले ही नहीं। बाबा बर्फानी की गुफा के पास बादल फटने की घटनाएं होती रहीं हैं। पहलगाम में वर्ष 1969 में बादल फटने से आए सैलाब में 40 अमरनाथ यात्रियों की मौत हो गई थी। वहीं, अगस्त 1996 की त्रासदी में 250 यात्रियों की जान चली गई थी। 1996 की घटना अमरनाथ यात्रा इतिहास की सबसे खौफनाक और बड़ी त्रासदी है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के शुरुआती दिनों में अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमलों का भी खतरा था। इसके अतिरिक्त धार्मिक स्थलों पर आते -जाते समय भी अनेक दुर्घटनाएं होती हैं।
अंत में यह धात्वय है कि पर्यटन के लिए बढ़ती भीड़ के कारण सभी धार्मिक पर्यटक स्थलों पर परिवहन, आवास, भोजन, पेयजल और स्वच्छता आदि मूलभूत आवश्यकताओं और सुविधाओं की कमी होती जा रही है। सरकार को भी धार्मिक पर्यटकों के यात्रा पैटर्न की पहचान करना आवश्यक है , जिससे मंदिरों के दर्शनों ,परिवहन, आवास, खरीदारी सुरक्षा , भोजन जैसी सुविधाओं से संबंधित आवश्यकताओं के लिए धार्मिक पर्यटकों को संतुष्टि और कठिनाइयों की पहचान की जा सके। पर्यटन के विकास ने भारी पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा करी हैं और ऐसी पर्यावरणीय समस्याओं और परिस्थितिकी असंतुलन ने भी पर्यटन उद्योग की आर्थिक स्थिरता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, इसके लिए भारत सरकार को ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहिए।
पर्यटकों को भी चाहिए कि वह जिस जगह पर जा रहे हैं, वहां की आध्यात्मिकता का और उसकी पवित्रता का ध्यान रखें और उसको बनाए रखें , अपने पहनावे और खान -पीने का विशेष ध्यान रखें जिससे धार्मिक पर्यटन करने वाले अन्य लोगों को भी असुविधा न हो और धार्मिक पर्यटन के नाम पर पिकनिक या मस्ती टूर जैसे टूर न लगें। ऐसी जगह पर बढ़ती भीड़ के कारण स्थानीय लोगों की और पंडे- पंडितों की भी मनमानियां शुरू हो जाती हैं। अगर देश की सरकार को धार्मिक पर्यटन से एक अच्छा खासा राजस्व उठाना है तो धार्मिक पर्यटन के लिए जाने वाले यात्रियों का विशेष ध्यान रखना होगा और यात्रियों को भी एक मर्यादा का पालन करना आवश्यक है।