Shahjahanpur Jutamar Holi: शाहजहांपुर की जूतामार होली, देशभर के लोग बनते हैं हिस्सा, जानिए क्या है परंपरा
Shahjahanpur Jutamar Holi: जिस तरह रंग-पिचकारी, लाठी-डंडों और कीचड़ से होली खेली जाती है, उसी तरह यूपी के शाहजहांपुर में लेकर जूतों से होली का त्योहार मनाने का रिवाज है। हालांकि यहां यह त्योहार मनाने का तरीका काफी अलग है
Shahjahanpur Jutamar Holi: देश के हर राज्य हर शहर में होली मनाने का अपना अलग तरीका है, कहीं फुलों की होली होती है, तो कहीं लट्ठमार होली का रिवाज चलता है। वैसे तो यह रंगों का त्योहार है लेकिन अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से इस अनूठे त्योहार को मनाते हैं। जिस तरह रंग-पिचकारी, लाठी-डंडों और कीचड़ से होली खेली जाती है, उसी तरह यूपी के शाहजहांपुर में लेकर जूतों से होली का त्योहार मनाने का रिवाज है। हालांकि यहां यह त्योहार मनाने का तरीका काफी अलग है, लेकिन इससे त्योहार के उल्लास पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि उसका आनंद और बढ़ाता ही जाता है। वहीं शाहजहांपुर में मनाई जाने वाली इस होली की चर्चा पूरे देश में होती है.
बेहद पुरानी है परंपरा
बता दें कि शाहजहांपुर में मनाई जाने वाली यह जूतामार होली कोई नई परंपरा नहीं है, बल्कि 18वीं सदी में नवाबों ने जुलूस निकालकर होली मनाने की प्रथा शुरू की। लेकिन साल 1947 के बाद इस जुलूस का रूप बदल गया और यहां की होली 'जूता मार होली' की परंपरा शुरू हो गई। यहां रहने वाले लोगों को इस दिन का खासतौर से इंतेजाक रहता है। इस दिन 'लाट साहब' का जुलूस लेकर निकलते हैं जिसमें भारी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। स्थानीय पुलिस-प्रशासन को सुरक्षा के लिए खास इंतजाम करने पड़ते हैं क्योंकि उन्हें इस दौरान माहौल बिगड़ने की आशंका रहती है।
भैंसा गाड़ी निकलते हैं लाट साहब
लाट साहब का यह जुलूस भैंसा गाड़ी पर निकाला जाता है। जुलूस शुरू होने से पहले भैंसे पर सवार लाट साहब को हेलमेट पहनाया जाता है। और उनके सेवक बने दो होरियारे झाड़ू से हवा करते हैं। तो वहीं लाट साहब पर जूते बरसाए जाते हैं। इतना ही नहीं उन्हे जूतों की माला भी पहनाई जाती है। इस जुलूस को शाहजहांपुर की कई गलियों से होकर निकाला जाता है। सबसे पहले यह जूलूस कोतवाली पहुंचता है जहां के कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं। जहां कई जगह लाट साहब पर जूते-चप्पलों की मार पड़ती है, तो वहीं कुछ स्थानों पर फूल-मालाओं से भी स्वागत किया जाता है।
आखिर क्या है यह परंपरा
शाहजहांपुर में निभाई जाने वाली यह परंपरा काफी पूरानी है। बताया जाता है नवाबों के वंशज और आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक झगड़ा करके फर्रुखाबाद चले गए थे। वह हिंदू-मुस्लिम दोनों के बीच लोकप्रिय थे। वह साल 1729 वह शाहजहांपुर लौटे. उस वक्त उनकी उम्र 21 साल थी। उनकी वापसी के बाद जब पहली होली आई तो दोनों समुदायों के लोग उनसे मिलने के लिए महल के पास खड़े हो गए। जब नवाब साहब बाहर आए तब जाकर उन लोगों ने होली खेली। उनके साथ होली खेलकर उत्साहित हुए लोगों ने नवाब को ऊंट पर बैठाकर शहर के चक्कर लगावाए। जिसके बाद से यह शाहजहांपुर की होली का हिस्सा बन गया। लेकिन कुछ समय बाद अंग्रेजी शासक ने यहां साप्रदायिक हमले करवा दिए जिसमें कई लोगों की जान चली गई। इससे गुस्साए लोगों ने देश की आजादी के बाद इस परंपरा में बदलाव कर दिए जिसके मुताबिक लोगों ने नवाब साहब का नाम बदलकर 'लाट साहब' कर दिया और जुलूस घोड़े या ऊंट की जगह भैंसा गाड़ी पर निकाली जाने लगी और लाट साहब को जूता मारने की परंपरा शुरू हो गई।