Kumbhalgarh Fort History: द ग्रेट वॉल आफ भारत, राजा महाराणा कुंभा से जुड़ा इसका इतिहास

Kumbhalgarh Fort History: एक दीवार ऐसी भी है जिसे दुनिया की सबसे लम्बी दूसरी दीवार के रूप में जाना जाता है ।आज इस दीवार के निर्माण से जुड़ी एक बेहद ही रहस्यमय कहानी आपको जानने को मिलेगी ।

Written By :  Akshita
Update: 2023-09-26 02:50 GMT

Kumbhalgarh Fort History (Photo - Social Media)

Kumbhalgarh Fort History: आज हम ऐसी दीवार की बात करेंगें जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है ।जो इतिहास के पन्नों में अभी भी दबी हुई है ।हम में से अधिकतर लोगों को ग्रेट वॉल ओफ़ चाइना के बारे में पता होगा , जिसे दुनिया की सबसे लम्बी दीवार कहते हैं ।यह विश्व भर में फ़ेमस है ।पर एक दीवार ऐसी भी है जिसे दुनिया की सबसे लम्बी दूसरी दीवार के रूप में जाना जाता है ।आज इस दीवार के निर्माण से जुड़ी एक बेहद ही रहस्यमय कहानी आपको जानने को मिलेगी ।जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएँगें ।

इसे कुंभलगढ़ की दीवार के नाम से जाना जाता है, जो राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। असल में कुंभलगढ़ एक किला है,जिसकी चारों तरफ़ की दिवार है । इस क़िले को 'अजेयगढ़' भी कहा जाता है , क्योंकि इस क़िले पर एक युद्ध छोड़कर किसी ने भी विजय प्राप्त नहीं की थी।यहाँ तक कि मुगल शासक अकबर भी इस दिवार का सामना नहीं कर पाए थे ।

राजा महाराणा कुंभा के नाम पर रखा गया किले का नाम 

इस क़िले का नाम इसे बनवाने वाले राजा महाराणा कुंभा के नाम पर रखा गया है ।सन 1443 में इसे बनाने के बारे में सोचा गया था ।इतने मज़बूत क़िले को बनाने में 15 साल का लंबा समय लगा था। इसे मेवाड़ की संकट क़ालीन राजधानी भी कहते हैं ।महाराणा सांगा और पृथ्वीराज चौहान का बचपन बीता था ,महाराणा उदय सिंह का पालन पोषण भी पन्ना धाय द्वारा छिपा कर इसी क़िले में किया गया था ।


हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप काफ़ी समय तक इसी दुर्ग में थे ।उनका जन्म भी इसी क़िले में हुआ था ।इस क़िले के अंदर ही एक और क़िला है जिसे 'कटारगढ़' के नाम से जाना जाता है।इस किले के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं, जिनमें से 300 प्राचीन जैन मंदिर और बाक़ी हिंदू मंदिर हैं। हालांकि इनमें से अब बहुत सारे मंदिर खंडहर हो गए हैं। कुंभलगढ़ किला सात विशाल द्वारों से सुरक्षित है। किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल और विजयपाल आदि दरवाजे हैं।


इस क़िले की ऊँचाई इतनी है कि इसे पूरा देखने के लिए सिर से पगड़ी गिर जाती है । 'इस की दीवार की चौड़ाई 15 मीटर है, जिस पर एक साथ करीब 10 घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं।

आज भी दीवार कहीं से क्षतिग्रस्त नही हुई

क़िला की दीवार इतनी लम्बी है कि चोटी से घाटियों तक फैली हुई है। इसमें खेती , जलाशय ज़रूरत की सभी चीजें मौजूद थीं। ताकि क़िले के लोगों को मुश्किलों का सामना न करना पड़े और युद्ध की स्थिति में आसानी से विजय प्राप्त की जा सके ।इतना साल पुरानी होने के बाद भी यह दीवार कहीं से क्षतिग्रस्त नही हुई है ।

कुंभलगढ़ किले की दीवार बनाने में अलग अलग घटनायें हुई ।कहा जाता है जब सन् 1443 में महाराणा कुंभा ने जब इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया, तो इसमें बहुत सारी अड़चनें आने लगीं। इससे चिंतित होकर राणा कुंभा ने एक संत को बुलवाया और अपनी सारी परेशानियां बताई।संत के अनुसार दीवार इस जगह पर किसी इंसान की बलि देने के बाद यहाँ सब ठीक हो जाएगा ।इसके लिए वे संत खुद की बलि देने के लिए तैयार थे।इसके बाद उन्होंने एक तरकीब बतायी जिसमें कहा था उन्हें पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां भी वह रुकें, उन्हें मार दिया जाए और वहां देवी का एक मंदिर बनाया जाए। कहते हैं कि वह संत 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गए। इसके बाद वहीं पर उनकी बलि दे दी गई। कहते हैं इसके बाद निर्माण कार्य किया जा सका था।इस दीवार में दिए और मशालें जलाने के लिए इस मंदिर के सामने ही एक कुंड में सेंकडों किलो का घी तैयार किया जाता था ।रात में दीवार के चारों तरफ मशालें जलाई जाती थीं, जिसकी रौशनी से पूरी दीवार जगमगा उठती थी । आज भी इन दीवारों को रोशन किया जाता है ।

इसके सबसे ऊपर बादल महल है ।कहते हैं ये महल इतने ऊँचाई में रहता है कि कभी कभी बादल भी इसे छू कर गुजरते हैं ।यहाँ पर महाराणा कुंभा पूजा करते थे ।कहते हैं सत्ता के लालच में महाराणा कुंभा के बेटे ने इसी जगह पर ही उनकी जान ली थी ।

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