Varanasi Namo Ghat: जानें क्यों खास है वाराणसी का ये नया घाट, कारण जान आप भी जायेंगे चौक
Varanasi Namo Ghat: ये घाट पर भी अच्छी खासी चहल पहल देखने को मिलती है। यदि आप बनारस आने का प्लान कर रहे है तो, इस घाट को भी अपने घूमने की लिस्ट में जरूर शामिल करें।
Varanasi Namo Ghat: बनारस में लगभग 84 घाट हैं, जो काफी प्रसिद्ध है। उन्हीं 84 घाटों में से एक नमो घाट है। जिसकी स्थापना हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने की है। काशी स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बसे इस घाट की सुंदरता देखते नहीं बनती है। इस घाट का कायाकल्प पीएम और राज्य के सीएम के नेतृत्व में हुआ है। पहले इस घाट को खिड़किया घाट के नाम से जाना जाता था। लेकिन रेनोवेशन के बाद इस घाट का सौंदर्यकरण पर्यटक को खूब आकर्षण करता है। जिससे ये घाट पर भी अच्छी खासी चहल पहल देखने को मिलती है। यदि आप बनारस आने का प्लान कर रहे है तो, इस घाट को भी अपने घूमने की लिस्ट में जरूर शामिल करें। इस घाट की कई विशेषता भी है। जिसे हम आपको यहां बताने जा रहें है।
पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
यह घाट नरेंद्र मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जो अब पूरा हो चुका है। नमो घाट बनाने का दो मुख्य उद्देश्य था, पहला - तीर्थयात्री बिना ट्रैफिक में फंसे काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंच सकें और दूसरा - दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट में भारी पर्यटकों को और भी नई पर्यटक केंद्र मिल सके।"
ऐसे पहुंच सकते है यहां?
नमो घाट उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राजघाट के पास स्थित है। यह परिवहन के विभिन्न साधनों के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सकता है। वाराणसी या बाहरी शहरों के लोग आसानी से वहां पहुंच सकते हैं। यह घाट राजघाट पुल के नजदीक है।
जीर्णोद्धार से बना घाट का नया स्वरुप
खिड़किया घाट का जीर्णोद्धार आधिकारिक तौर पर 2019 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आधारशिला रखने के साथ शुरू हुआ था। हाथ जोड़कर मूर्तियां बनाने के बाद घाट का नाम बदलकर "नमस्ते" कर दिया गया। यह घाट, जो लगभग 21,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र को कवर करता है। पुनर्निर्मित 'खिड़किया घाट', जो 'नमस्ते' में मुड़े हुए हाथों के रूप में तीन बड़ी मूर्तियों के कारण 'नमो घाट' के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में उभरा। दो मूर्तियाँ, एक 25 फीट ऊँची और दूसरी छोटी 15 फीट ऊँची, गंगा को नमस्कार कर रही थीं।
आध्यात्म और सांस्कृतिक महत्व
अपने प्राकृतिक आकर्षण से परे, नमो घाट अत्यधिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। कई संस्कृतियों में, नदी तटों को पवित्र स्थान माना जाता है, और नमो घाट भी इसका अपवाद नहीं है। यह आध्यात्मिक चिंतन, ध्यान और प्रार्थना के लिए एक स्थान के रूप में कार्य करता है। घाट जटिल मूर्तियों, सुंदर पत्थर की नक्काशी और जीवंत भित्तिचित्रों से सजा हुआ है जो प्राचीन ग्रंथों से पौराणिक कहानियों और दृश्यों को दर्शाते हैं। ये कलात्मक अभिव्यक्तियाँ न केवल सौंदर्य अपील को बढ़ाती हैं बल्कि क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक भी पेश करती हैं।
नमो घाट पर बहुत कुछ है करने को
नमो घाट पर आने वाले पर्यटक कई प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। जो विभिन्न रुचियों को पूरा करती हैं। शांति चाहने वालों के लिए, सुबह-सुबह शांत पानी के ऊपर सूर्योदय देखने का एक अनूठा अवसर मिलता है, जो आसपास के वातावरण पर एक सुनहरी चमक बिखेरता है। योग और ध्यान के शौकीन लोगों के लिए भी यह जगह सुखदायी हो सकती है। प्राकृतिक सुंदरता के बीच योग का अभ्यास करके सद्भाव की भावना पा सकते हैं। प्रकृति प्रेमी नदी के किनारे रास्ते पर इत्मीनान से टहल सकते हैं, जहाँ वे विभिन्न पक्षी प्रजातियों को देख सकते हैं और स्थानीय वन्य जीवन की झलक पा सकते हैं।
अलग ही सुकून है यहां
नमो घाट एक ऐसा आश्रय स्थल है जहाँ समय ठहर सा जाता है। जैसे ही आप नदी के किनारे खड़े होते हैं, झिलमिलाते पानी को देखते हैं और अपनी त्वचा पर हल्की हवा को महसूस करते हैं, तो दुनिया की चिंताएं और तनाव दूर होने लगते हैं। नमो घाट आपको रुकने, सांस लेने और अपने चारों ओर मौजूद गहन सौंदर्य को अपनाने के लिए प्रेरित करता है - जो हमारी प्राकृतिक दुनिया की भव्यता और मानव रचनात्मकता की अदम्य भावना का एक सच्चा प्रमाण है। सूर्य को नमस्कार करते हाथ जोड़े मूर्तियां घाट की नई पहचान बन गई थीं।
तीनों मार्गों से पहुंच सकते है यहां
नमो घाट काशी का पहला घाट है जहां जल, थल और वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यह शहर बिल्कुल नए काशी जैसा दिखता है, जो कई पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसकी न्यूनतम आंतरिक डिजाइन और पारंपरिक काशी दीवार पेंटिंग आधुनिकता और विरासत दोनों की झलक दिखाती है। वाराणसी आने वाले पर्यटकों को यहां हमारी संस्कृति और उनके प्रति सम्मान का दृश्य प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा।
विकलांग और बुजुर्ग के लिए खास इंतजाम
बुजुर्गों और विकलांग लोगों के लाभ के लिए, नदी तक पूरे रास्ते में एक रैंप का निर्माण किया गया है। दिव्यांगजन अपनी व्हीलचेयर को सड़क से इस घाट पर माँ गंगा के ठीक बगल में रखकर चल सकते हैं या घुमा सकते हैं। यह इस मायने में अनोखा है कि किसी भी अन्य घाट पर विकलांग लोगों पर समान ध्यान नहीं दिया जाता है।