Bihar Dakini Temple : शाम 6 बजे के बाद इस मंदिर में वर्जित है प्रवेश, सुनें यहां के किस्से
Bihar Dakini Temple : भारत में एक से बढ़कर एक धार्मिक और ऐतिहासिक जगह मौजूद है जो पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां 6:00 बजे के बाद किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता है।
Bihar Dakini Temple : भारत एक ऐसा देश है जहां पर एक से बढ़कर एक पर्यटक स्थल मौजूद है। यहां पर प्राकृतिक स्थान से लेकर ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी मौजूद है जो लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। अगर आप भी कहीं घूमने जाने के बारे में सोच रहे हैं और धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थल आपको पसंद आते हैं तो आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां पर शाम की 6:00 बजे के बाद प्रवेश करना वर्जित है। हमारे देश में जितने भी मंदिर हैं उनकी अपनी-अपनी परंपराएं और मान्यताएं हैं। इनके खोलने और बंद होने का समय से लेकर पूजन अर्जुन सभी चीज अलग-अलग तरीके से की जाती है। तो चलिए आज इस खास मंदिर के बारे में जानते हैं जहां 6:00 बजे के बाद किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता है।
कहां हैं मंदिर
हम जी मंदिर की बात कर रहे हैं वह बिहार के मधेपुरा जिले के आलमनगर तालुका गांव में मौजूद है। डाकिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध है प्राचीन जगह लोगों के बीच काफी पहचानी जाती है। यहां पर दिन भर में पांच बार भगवान की आरती की जाती है। दिन भर यहां भक्तों का सैलाब मरता है लेकिन शाम 6:00 बजे के बाद किसी को भी एंट्री नहीं दी जाती है। इस मंदिर के दरवाजे सुबह 6:00 बजे खुलते हैं और शाम 6:00 बजे बंद हो जाते हैं।
क्यों नहीं दिया जाता प्रवेश
स्थानीय लोगों के बीच जो मानता है उसके मुताबिक शाम 6:00 बजे के बाद यहां विराजित डाक कि नहीं माता स्वयं मंदिर के पूरे परिसर का भ्रमण करती हैं। अगर माता तो कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जाएगा क्योंकि यह समय उनके अकेले व्यतीत करने का है। यही कारण है कि इस मंदिर में शाम 6:00 बजे के बाद जाना माना होता है। आखरी आरती की जाने के बाद पुजारी भी इस मंदिर को अकेला छोड़कर चले जाते हैं। आरती के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो 1348 में इसकी स्थापना की गई थी और इसे दुर्गा माता मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। यहां के लोग इस मंदिर को डाकिनी माता मंदिर, जंगल वाली माता और छिन्नमस्तिका के नाम से बुलाते हैं। स्थानीय लोगों के बीच यहां माता को लड्डू का भोग लगाए जाने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि अगर माता का लड्डू का भोग लगाया जाता है तो वह प्रसन्न होती हैं।