मुश्किलों को पीछे छोड़ आए हम, 5 हजार मीटर ऊंची झील पर भी नहीं लड़खड़ाए कदम

Update:2017-01-05 15:14 IST

Govind Pant Raju

लखनऊ: छोड़ आए हम वो गलियां... एवरेस्ट यात्रा के बाद जब हम वापस आ रहे थे, तो हमारी टीम के मन में यही गाना आ रहा था। हम सब इसी गाने को गुनगुनाते हुए आगे बढ़े जा रहे थे। रास्ते ठंड से भरे थे। सनसनाती हवाएं हमारे क़दमों को रोकने की कोशिश में लगी हुई थी। पर हमारे मजबूत इरादे उन्हें भी टक्कर दे रहे थे। खैर आइए बताते हैं आगे की यात्रा के बारे में...

(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी। )

एवरेस्ट की ओर से आने वाली लोबचू या त्सोला नामक जलधारा की गति और प्रवाह थोड़ा मंद है। लेकिन इसे वास्तव में दूधकोसी बनाने वाले इमजा खोला का प्रवाह तेज है और इसका मार्ग भी ज्यादा ढाल वाला होने के कारण इसका कल्लोल भी ज्यादा तेज सुनाई देता है।

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जब हम ऊपर चढ़ते हुए दिंगबोचे पहुंचे थे। तब हमने इसका अनुभव स्वयं किया था, हालांकि इमजा घाटी में ऊपर चढ़ते हुए हमने इमजा खोला के पार कुछ लोगों को देखा था। जो संभवतः स्थानीय चरवाहे या जड़ी बूटी खोदने वाले स्थानीय लोग थे। अरूण के मन में ये जिज्ञासा थी कि ये लोग उस पार कैसे गए होंगे क्योंकि बहाव बहुत तेज था और दूर-दूर तक कोई पुल भी नहीं था।

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राजेंद्र और ताशी इसका जवाब तलाशने में जुटे। तो समस्या यह आई कि उन तक हमारी आवाज पहुंच ही नहीं पा रही थी। बहरहाल ऊपर चढ़ते हुए हमें एक ऐसी जगह दिखी, जहां इमजा खोला का प्रवाह काफी शांत था। पाट भी चौड़ा था और गहराई भी कम। संभवतः यहीं से नदी पार की जाती होगी।

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नवांग ने मुझे बताया कि कुछ वर्ष पहले यहां पर एक झील बन गई थी। झील के टूटने के के बाद यहां पर नदी बहुत शांत होकर बहने लगी है। इस इलाके में कुछ ग्लेशियर झीलें भी हैं। जिनमें सबसे बड़ी झील इमजा झील है।

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इसी इमजा झील के पानी से इमजा खोला निकलती है, जो समूचे इमजा ग्लेशियर का पानी लेकर आती है। जल प्रवाह की दृष्टि से यह थुकला की ओर से आने वाली धारा से बड़ी है। इमजा खोला की स्त्रोत इमजा झील पिछले कई वर्षों से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों और स्थानीय निवासियों तथा प्रशासन के लिए बहुत खतरा बनी हुई थी।

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इसका बढ़ता आकार और जल स्तर सारी दूधकोसी घाटी के लिए बहुत खतरनाक समस्या बनता जा रहा था। भारतीय सेना की मदद से नेपाल के वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसी वर्ष अक्टूबर में इस झील को विशेष तरीकों से सुखाने में कामयाबी हासिल करके खतरा अब टाल दिया है।

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इमजा झील को पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के एक खतरनाक प्रतीक के रूप में माना जाने लगा था। बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के अनियमित रूप से पिघलने के कारण हिमालय में अनेक स्थानों पर इस तरह की ग्लेशियर झीलें बनने लगी हैं, जिन्हें निचले इलाकों के लिए खतरनाक माना जाता है। 5000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बनी इमजा झील की अधिकतम गहराई 149 मीटर तक आंकी गई थी। 2015 में नेपाल के भूकंप ने इसे और भी खतरनाक बना दिया था।

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नेपाल को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की 30 लाख डाॅलर की विशेष मदद से नेपाली शेरपाओं ने 6 महीने तक प्रयास करके इमजा झील तक पहुंचने का मार्ग तैयार किया। फिर विशेष प्रकार के तरीकों से लगभग दो महीने में धीरे-धीरे लगभग 40 लाख क्यूसेक पानी झील से बहा कर झील का स्तर करीब 3.5 मीटर कम किया गया।

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इस पायलट प्रोजेक्ट की सफलता से उत्साहित हो कर अब इसी तरीके को अन्य हिमालयी ग्लेशियर झीलों के खतरों से बचाने के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रयोग किए जाने पर भी सोचा जाने लगा है।

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इमजा झील का जल स्तर कम कर खतरा खत्म करने का यह कारनामा तकनीक और साहस के साथ एवरेस्ट आरोहण जैसी चुनौतियों से भी भरा हुआ था। मगर अब इसे हिमालय पर आ रहे संकट से मुकाबला करने की भी एक सफल कोशिश भी माना जा सकता है।

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जब हमने फैरिचे के लिए चलना शुरू किया। तो कुछ आसान चढ़ाई के बाद ही हमारे सामने फैरिचे की चौड़ी घाटी आ गई थी। दूर नीचे घाटी में पत्थरों की बाढ़ से घिरे पशु बाड़े और आलू के खेत दिखने लगे थे और उससे कुछ दूरी पर तल्ला फैरिचे यानी फैरिचे की नई बस्ती भी हमारी आंखों के सामने थी।

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हम तेजी से नीचे उतर रहे थे। जूनिफर की झाड़ियां अब फिर दिखने लगी थीं और राजेंद्र व अरूण दनादन कैमरों के शटर खटखटाने लगे थे। कई दिनों बाद हम ऐसी जगह पहुंचने वाले थे।

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जहां हम अपने उपकरणों की बैट्री फिर से चार्ज कर सकते थे। पहाड़ियों के पीछे छिपते सूर्य की किरणों में नवांग की गंभीरता और ताशी की मुस्कराहटों को कैमरे में कैद करते हुए मैं सोचने लगा था कि यहां प्रकृति की कारीगरी में सबसे सुंदर चीज क्या है? शायद यहां की असीम नीरवता और प्रकृति के अपने मूल रूप में मौजूद रहने का अहसास। शाम बहुत सुंदर हो गई थी और एवरेस्ट यात्रा के सबसे कठिन हिस्से से अनंत अविस्मरणीय स्मृतियां लेकर हम खतरों से बाहर निकल कर फैरिचे पहुंच रहे थे।

गोविंद पंत राजू

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