लखनऊ: हिंदी की महान कवियत्री महादेवी वर्मा की शनिवार को बर्थ एनिवर्सरी है। उनका जन्म 26 मार्च 1907 में फर्रुखाबाद में हुआ था और निधन 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में। महादेवी वर्मा जब भी इलाहाबाद से दिल्ली जाती थी तो वे मैथिलीशरण गुप्त से जरूर मिलती थीं। इसकी जानकारी जब पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिली। तब एक बार उन्होंने शिकायती लहजे से महादेवीजी को कहा कि क्या मैं तुम्हारा भाई नहीं हूं ? मुझसे क्यों नहीं मिलती ?
इस शिकायत के बाद नेहरू से मिलने गईं
महादेवी वर्मा ,नेहरू से मिलने गईं, लेकिन लोगों की बड़ी भीड़ देख बिना मिले लौट गयी और आगे मिलने से मना कर दिया ।जब ये खबर नेहरू जी को मिली, तब उन्होंने कहा -तुम बता देती कि तुम आई हो। एक बार उन्हें कुछ कॉपी राइट का चक्कर हो गया सो वे नहरूजी के पास उनके दफ्तर में गई। जैसे उन्होंने अपने आने की सूचना नेहरूजी को भेजी, वे फौरन दौड़े-दौड़े आए। जब महादेवीजी ने अपनी समस्या नेहरूजी को बताई तो तुरंत उन्होने शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद को फोन किया कि महादेवी वर्मा जा रही हैं ।
जब शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद ने लगाई थी दौड़
महादेवी वर्मा शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद से मिलने उनके दफ्तर गईं थीं। उन्होंने उनके सहायकों को अपने आने की बात बताई। सहायक ने अबुल कलाम को जाकर ये सूचना दी तो उन्होंने चार घंटे बाद मिलने को कहा। महादेवीजी को जब ये बताया गया तो क्षुब्ध होकर उन्होंने नेहरूजी को फोन किया और कहा-मैं कहती थी कि तुम लोगों के पास नहीं आना चाहिए। मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं मौलाना से चार घंटे बाद मिल सकूं।' नेहरूजी ने महादेवीजी को वहीं रुकने को कहा और अपने दफ्तर से पैदल दौड़े -दौड़े मौलाना आज़ाद के पास आए । मौलाना आज़ाद को उन्होंने महादेवी के आने की बात बताई तो आज़ाद महादेवीजी के पास आए और बहुत खेद प्रकट किया। वे कहने लगे कि उनके सहायकों ने उन्हें गलत नाम बताया । उन्हें बताया गया कि कोई देवी वर्मा मिलने आई है महादेवी बताया ही नहीं,वरना मैं खुद दौड़ कर आपके पास आ जाता ।आपको तकलीफ हुई ।माफी चाहता हूं '।
महादेवी की कालजयी रचना में नीलकंठ, दीपशिखा यामा और स्कैचेज फ्रॉम माई लाईफ है। उन्हें ज्ञानपीठ ,पदमभूषण साहित्य अकादमी फेलोशिप और पदमविभूषण मिला था।