जयपुर: कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता हैं। दिवाली से ठीक दो दिन पहले यह त्योहार मनाया जाता हैं। आज ही के दिन से घरों में दीपक जलाए जाते हैं और सकारात्मकता की रौशनी फैलाई जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता हैं और कभी भी डर नहीं सताता हैं। इसलिए धनतेरस के दिन दीपदान करने का बड़ा महत्व माना जाता हैं। दीपदान की पूर्ण पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। तो जानते है इसके बारे में।
इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करना चाहिए। दीपदान करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-
"मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।"
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रात्रि को घर की स्त्रियां इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं और जल, रोली, चावल, फूल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करती हैं। हल जूती मिट्टी को दूध में भिगोकर सेमर वृक्ष की डाली में लगाएं और उसको तीन बार अपने शरीर पर फेर कर कुंकुम का टीका लगाएं और दीप प्रज्जवलित करें। इस प्रकार यमराज की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। दीपदान का महत्व धर्मशास्त्रों में भी उल्लेखित है-
"कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।" अर्थात- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यमराज के निमित्त दीपदान करने से मृत्यु का भय समाप्त होता है।