जयपुर: हम में से ज्यादातर लोग पुराने लेकिन गैरजरूरी सामान फेंक नहीं पाते! पुरानी चीजों से लगाव सभी को होता है लेकिन ये लगाव जब इतना बढ़ जाए कि मामूली सामान घर के बाहर फेंक न सकें और पूरा घर कबाड़खाना बन जाए तो हो सकता है कि आप होर्डिंग की बीमारी के शिकार हों। यह एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है, जिसका मरीज गैरजरूरी चीजों को भी सहेजकर रखना चाहता है। इसके मरीज की लाइफस्टाइल काफी प्रभावित रहती है। घर चाहे कितना ही छोटा या बड़ा हो, वे इस हद तक कबाड़ जमा करते हैं कि चलने-फिरने की भी जगह न बचे। घर की अलमारियों से लेकर, प्लेटफॉर्म और सीढ़ियों तक में कबाड़ जमा हो जाता है। घर की बालकनी या आंगन भी सामान से पटे रहते हैं. ये बीमारी माइल्ड से लेकर सीवियर हो सकती है। मर्ज के गंभीर होने पर होर्डर का रुटीन बदल जाता है. वो सारे वक्त सामानों की रखवाली करने लगता है कि कहीं घरवाले या दोस्त उसका सामान हटा न दें। इससे रिश्तों पर विपरीत असर होता है। छोटी-मोटी बातों पर नोकझोंक मरीज को डिप्रेशन में भी ला सकती है. वक्त के साथ इसका इलाज मुश्किल होता जाता है।
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चीजों के लिए ये इंसानों को भी छोड़ने को तैयार हो जाते हैं. इन्हें लगता है कि हर चीज का अपना महत्व है, और फेंकने या खो जाने पर वे खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं. होर्डर अमूमन गैरजरूरी मैगजीन्स, अखबार, कागज की कतरनें, प्लास्टिक बैग, तरह-तरह के डिब्बे, टूटे-फूटे सजावटी सामान, यहां तक कि फटे हुए कपड़े भी जमा करते हैं. बेड पर भी इनका सामान रहने लगता है।
कई लोगों को जानवरों के संग्रह का मर्ज हो जाता है। वे घर के भीतर तरह-तरह के जीव-जंतु रखते हैं, यहां तक कि घर पर उनके रहने की जगह नहीं बचती, उनकी देखभाल ठीक तरह से हो नहीं पाती, वे बीमार पड़ने लगते हैं लेकिन होर्डर फिर भी और जानवर लाते जाते हैं।
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11 से 15 की उम्र के बीच इसके लक्षण सामने आते हैं और अनदेखी करने पर वक्त के साथ गंभीर होते जाते हैं। इस मनोवैज्ञानिक बीमारी के कई कारण हो सकते हैं। किसी बड़ी तकलीफ के बाद ऐसा हो सका है या फिर ये बीमारी हेरेडिटी में भी आ सकती है। होर्डिंग बीमारी के मरीज के साथ समस्या ये होती है कि वो इसे कोई समस्या मानने को तैयार ही नहीं होता। यही कारण है कि इलाज बहुत मुश्किल होता है।