जयपुर:गोवत्स द्वादशी कथा कर गौ माता की सेवा करने का महत्व बहुत अधिक हैं। इस साल गोवत्स द्वादशी 4 नवंबर, रविवार की है। इस दिन गाय माता की सेवा करने का बहुत अधिक महत्व होता है। इस गोवत्स द्वादशी 2018 की स्पेशल रिपोर्ट में गोवत्स द्वादशी की प्राचीन कथा-
गोवत्स द्वादशी कथा
प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा था। देवदानी के पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम सीता और दूसरी का नाम गीता था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था।वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और उसे अपनी सखी के समान प्यार करती थी। राजा की दूसरी रानी गीता गाय से सहेलियों के समान और बछडे से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। यह देख भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। सीता ने कहा- ऐसी बात है, तो मैं सब ठीक कर लूंगी।
4 नवंबर: किसका बढ़ेगा सम्मान, किसका होगा अपमान, बताएगा राशिफल
सीता ने उसी दिन गाय के बछडे को काट कर गेहूं की बोरी में दबा दिया। इस घटना के विषय में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। उसके अगले दिन जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की बारिश होने लगी। महल में चारों ओर रक्त और मांस दिखाई देने लगा। राजा के भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई। तभी आकाशवाणी हुई - 'हे राजा! तेरी रानी सीता ने गाय के बछडे को काटकर गेहूं की बोरी में दबा दिया है। इसी कारण आपके घर में रक्त और मास की बारिश हो रही है। तभी राजा ने हाथ जोड कर आग्रह किया कि कृप्या मुझे इसके पश्चाताप का उपाय बताएं। तभी आकाशवाणी ने उपाय बताया कि कल गोवत्स द्वादशी है। गाय और बछडे की पूजा कीजिए।
गोवत्स द्वादशी के दिन आप गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें। इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा। गाय और बछडा़ भी जिंदा हो जाऐंगे। तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। इस दिन गौशाला आदि जगह जाकर गाय माता की सेवा करनी चाहिए। इस दिन को गोवत्स द्वादशी के साथ ही बछ बारस भी कहा जाता है।