हिंदी दिवस विशेष: हिंदुस्तानियों रखो हिंदी की लाज, यही है देश का कल और आज
लखनऊ: मुझसे ही तुमने की थी बोलने की शुरुआत,
मुझसे ही जुड़े हैं तुम्हारे दिल के हर जज्बात,
मुझसे ही मिला है हर हिंदुस्तानी को दुनिया में नूर,
फिर किस बात को लेकर कर मुझसे आज अपने ही हो रहे दूर..
ये वो अल्फाज हैं, जिसकी टीस शायद हमारी मातृभाषा हिंदी के दिल में रह-रह कर उठती होगी। पर किसी को उससे कोई मतलब नहीं है। कहते हैं कि किसी भी देश के लोगों की पहचान उनकी बोली, उनकी भाषा से होती है। वैसे तो देश से बाहर विदेशों में ज्यादातर अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, लेकिन अगर कोई 'हिंदी' बोलता है, तो सबसे पहले लोग उससे यही पूछते हैं "क्या आप हिंदुस्तानी हैं?'
इस बात को सुनकर शायद हर हिंदुस्तानी के दिल में एक अजीब सी ख़ुशी उठती है। पर आज ना जाने क्यों वो ख़ुशी कम सी होती जा रही है। जिस भाषा को दुनिया में बोले जाने का चौथा स्थान मिला हुआ है, उसी देश के लोग उसे अपनाने में कतराने से लगे हैं। उनकी नजर में हिंदी बोलना किसी अनपढ़ का काम है। पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसी हिंदी भाषा के दम पर हमारे हिंदुस्तानी लोगों ने विदेश की धरती पर सफलताओं के झंडे गाड़े हैं।
हमारे देश भारत की मातृभाषा हिंदी है। इसी के सम्मान में हर साल 14 सितंबर को पूरे देश भर में 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है। हिंदी को मातृभाषा बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का था, जिन्होंने 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने की की बात कही थी। 1949 में यह फैसला लिया गया कि भारत की राजभाषा हिंदी होगी। इसके बाद 1953 से हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा। पर हैरानी की बात यह है कि आज भी कई लोग अपनी ही भाषा के महत्त्व से अनजान हैं।
सोचने वाली बात है कि जिस देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है, वहां के लोग क्यों इससे कतराते हैं? खासकर के पढ़े-लिखे और उच्च स्तर के लोग सभा हो या कोई बड़ा कार्यक्रम, लोगों को अंग्रेजी में भाषण देना अच्छा लगता है। जब से देश सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सऐप का प्रयोग बढ़ा है, तब से मातृभाषा हिंदी की इज्जत पर और आंच आ गई। सोशल मीडिया पर लोग ना तो ठीक से अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं और ना ही हिंदी का। दोनों का मिला-जुला रूप बना दिया है, जिसे आप 'हिंग्लिश' कह सकते हैं।
आज शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा बचा हो, जहां पर हिंदी भाषा को उसका वास्तविक सम्मान मिल रहा हो। प्राइवेट कार्यालयों में तो हिंदी भाषा को मेहमान समझा ही जाता है, लेकिन सरकारी कार्यालयों में भी इसे वह सम्मानजनक दर्जा नहीं प्राप्त है। जिस तरह से हिंदी की दुर्दशा हो रही है, वह वाकई सोचने वाला विषय है। एक समय था, जब लोगों को अपनी भाषा में लिखने-बोलने पर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, पर आजकल स्कूल, कार्यालयों, अस्पतालों सहित अन्य जगहों पर हिंदी भाषा का मजाक उड़ाया जा रहा है।
देश के तीन-चौथाई हिस्सों में हिंदी बोली जाती है हिंदुस्तान में जब बच्चा बोलना शुरू करता है, तो वह सबसे पहले हिंदी ही बोलता है। 3 साल बाद जैसे ही उसकी पढ़ाई-लिखाई की बात आती है, तो मां-बाप उसके लिए कोई अंग्रेजी विद्यालय ही खोजना शुरू कर देते हैं और तो और अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ते हुए अगर बच्चा हिंदी में बात भी कर ले, तो उसे उसका हर्जाना भरना पड़ता है। आखिर क्यों?
जब विद्यालय ही मातृभाषा बोलने पर हर्जाना लग रहे हैं, तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए? तकनीकी से लेकर बाजारों तक में अंग्रेजी भाषा का दबदबा बना हुआ है। जिधर भी निकल जाइए, अंग्रेजी भाषा को चाहने वाले ही मिलेंगे मातृभाषा को प्यार करने वाले मिलेंगे, पर सरेआम स्वीकार करने में हिचकते दिखेंगे।
आखिर क्यों अपनी मातृभाषा को लेकर लोगों का नजरिया उतना सम्मानजनक नहीं है, जितना होना चाहिए। किसी भी तरह के प्रचार-प्रसार के लिए बाजारों में लगे तख्तों पर भी हिंदी की बजाय ज्यादातर अंग्रेजी ही दिखती है। अगर हिंदी दिखती भी है, तो उसमें कई गलतियां होती हैं।
आगे की स्लाइड में देखिए किस तरह हिंदी के लिए प्रेरित कर रहे लोग
सौजन्य: यूट्यूब
एक तरफ जहां लोग हिंदी से दूर भाग रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी मातृभाषा हिंदी के लिए दूसरों को जागरूक कर रहे हैं। ऐसी ही सोच रखते हैं लखनऊ में रहने वाले रिजवान खान। जिनकी एक दोस्त क्रिस ट्रिनिटी स्पेन में रहती है। रिजवान खान बताते हैं कि क्रिस से अक्सर उनकी बात होती है। वह उन्हें सिखाते भी हैं, पर इस बार हिंदी दिवस पर जब क्रिस ने उन्हें हिंदी भाषा में बोलते हुए बधाई दी, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
इसमें क्रिस हिंदी में बोलते हुए बता रही हैं कि उन्हें हिंदी अच्छी लगती है।