किडनी के अलावा शरीर के इस अंग में भी होती है पथरी, पिएं खूब पानी

Update:2017-12-03 10:11 IST

जयपुर: डॉक्टरों का कहना है कि व्यक्ति के मुंह में भी पथरी होती है। किडनी, गालब्लैडर और पैंक्रियाज की तरह ही मुंह में भी पथरी होती है जो धीरे-धीरे घातक बन जाती है। हालांकि मुंह में पथरी काफी रेयर होती है। शहर में ही एक महीने में एक प्लॉस्टिक सर्जन समेत दो मरीजों का ऑपरेशन कर उनके मुंह की पथरी निकाली गई।

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एक खबर के अनुसार महानगर के नामी प्लास्टिक सर्जन को करीब दो महीने से खाना खाने के दौरान गले में सूजन और दर्द की शिकायत थी। जांच के बाद बताया गया कि उनकी लार ग्रंथि में आठ मिलीमीटर की पथरी हो गई है। इसका इलाज सिर्फ ऑपरेशन है। करीब दस दिन पहले ऑपरेशन कर डॉक्टरों ने पथरी निकाल दी। उनकी लार ग्रंथि को भी निकालना पड़ा।

कान के नीचे पेरोटिड ग्रंथि और जबड़े के नीचे सबमेंडुलर लार ग्रंथि होती है। इन ग्रंथियों में कैल्शियम फास्फेट व दूसरे पदार्थ जमा होने लगते हैं। इससे पथरी बनने लगती है। पथरी की साइज बड़ी होने पर ग्रंथि से लार का प्रवाह बंद हो जाता है। मुंह में पथरी से लार ग्रंथि में सूजन आ जाती है। इससे कान और जबड़े में दर्द होने लगता है। सबसे ज्यादा दिक्कत भोजन चबाते समय होती है। सुबह-शाम खाना खाने के बाद गले, जबड़े व कान के आसपास कुछ घंटे के लिए सूजन हो जाती है। इससे लार ग्रंथि और गले में संक्रमण हो सकता है। इसके कारण कैंसर होने का भी खतरा होता है।

मुंह में पथरी हो जाने पर मरीज के दिमाग में बैठ जाता है कि उसके मुंह में सूजन है। इसका दिमाग पर नकारात्मक असर होता है। इलाज हो जाने के बाद भी मरीज के दिमाग से यह बात जल्दी निकलती नहीं है और वह काफी दिनों तक भोजन के दौरान दर्द महसूस करता रहता है। इसे मील टाइम सिंड्रोम भी कहते हैं। यह बीमारी काफी रेयर है। करीब 50 हजार लोगों में किसी एक को होती है। इस बीमारी के कारणों की जानकारी नहीं है। माना जाता है कि कम पानी पीने वालों और खाना कम चबाकर खाने वालों को यह बीमारी होती है। इसका पता एक्सरे व सीटी स्कैन से चलता है।

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लार ग्रंथि से जीभ तक के रास्ते में हो सकती है। जीभ के रास्ते में पथरी है तो ऑपरेशन कर पथरी निकाल दी जाती है। ग्रंथि के अंदर पथरी है और उसका साइज छह मिलीमीटर से बड़ा है तो ऑपरेशन कर लार ग्रंथि को ही निकालना पड़ता है। मुंह में होने वाली पथरी में से 85 फीसदी सबमेंडिबुलर ग्रंथि में होती है। 10 फीसदी मामलों में पैरोटिड ग्रंथि में होती है। करीब पांच फीसदी मामलों में सबलिंग्वल ग्रंथि या छोटी लार ग्रंथि में होती है।

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