गंगा-जमुनी तहजीब: एक नवाब ने शुरू की थी होली बारात, खुद मुस्लिम बरसाते हैं इत्र और फूल
लखनऊ: पूरा देश होली के रंग में रंगने के लिए तैयार है। तरह तरह के आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं। भले ही लखनऊ में हुई आतंकी घटना ने माहौल को खराब करने की कोशिश की, लेकिन यहां की हिंदू-मुस्लिम एकता दूर-दूर तक मिसाल बनी हुई है। वैसे तो पुराने लखनऊ को मुस्लिम इलाका कहा जाता है। लेकिन प्यार और सौहार्द के त्योहार होली में कोई मजहबी दीवार नहीं दिखती है।
राजधानी के चौक में जो होली मनाई जाती है, वह कई मायनों में बेहद खास है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस होली बारात की परंपरा की शुरूआत एक मुस्लिम राजा ने शुरु की थी। यह अवध की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है, तो वहीं सैकड़ों साल से चली आ रही इस परंपरा को आज चलाने के लिए कोई आयोजन समिति नहीं हैं। पर फिर भी लोग आते हैं और कारवां बनता जाता है।
नवाब ने शुरू करवाया था होली मेला
पुराने लखनऊ के चौक का अपना अलग इतिहास रहा है। यहां की ठंडाई, चिकन और रेवडी दूर-दराज तक मशहूर है। लेकिन यहां होली के दिन लगने वाले ऐतिहासिक होली मेले में गंगा-जमुनी तहजीब आज भी नजर आती है। स्थानीय निवासी रमेश कहते हैं कि वक्त बदला माहौल बदला, लेकिन नहीं बदली, तो नवाब गाजीउद्दीन हैदर द्वारा शुरू की गई होली मेले की परंपरा। पुराने लखनऊ के रहने वाले मनोज गुप्ता कहते हैं कि यह मेला ढेर सारी ऐतिहासिक यादें समेटे हुए है। इस मेले को शुरू करने का उद्देश्य सभी धर्मों के लोगों में भाईचारा बढ़ाना था।
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चौक के कोनेश्वर मंदिर से लगने वाले इस विशाल ऐतिहासिक मेले की खास बात यह है कि इसकी कोई आयोजन समिति नहीं है। लोग आते रहे और मेला लगता गया। वह बताते हैं कि इस मेले में शुरू से ही होली मिलन का दौर चलता रहा है। यही नहीं, मेले में घूमने आने वालों पर गुलाल और इत्र छिड़क कर होली मिलन का सिलसिला बस्तूर आज भी जारी है। मेले की खासियत यह भी रही है कि यहां हिंदी के मशहूर साहित्यकार अमृत लाल नागर भी जीवित रहने तक मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।
हिन्दू मुस्लिम का नहीं है कोई भेद
इसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि जब जुलूस निकलता है, तो मुसलमान लोगों पर फूल डालते हैं और इत्र छिड़कने के साथ माला पहनाते हैं। जुलूस में हाथी, घोड़ा ढोल-नगाड़े वाले सब रहते हैं। इस जुलूस ने लोगों के प्रति विश्वास और एकता के भाव भरे जाते हैं।
उस दौरान जुलूस में भांग का स्वांग, महफिले, मुजरा और तरह-तरह के पकवान होते थे। लोग पान खिलाते और एक दूसरे का स्वागत करते नजर आते थे। यह जुलूस कोनश्वर चौक से होते हुए अकबरी गेट, मेडिकल चौराहा होते हुए वापस कोनश्वर चौक पर खत्म होता था।