मुजफ्फरनगर: सरे राह पर चलते लोगों की नजरें अक्सर उस पर आकर ठहर जाती हैं। कुछ लोग देखकर उसका मजाक उड़ाते हैं, तो कुछ लोग उसे पागल कहकर बुलाते हैं। ज्यादा लोगों को देखकर वो अक्सर काबू से बाहर हो जाता है और हमला करने की कोशिश करता है। इसी मजबूरी के चलते उसके पिता ने 12 साल से जंजीरों में बांध रखा है। मानसिक रूप से कमजाेर बेटे का गरीबी की वजह से इलाज ना करा पाने के कारण लाचार बाप का बेटे को लोहे की जंजीरों में बांधना मजबूरी बन गई है। सड़क पर जंजीरों में बंधे युवक को देखने के लिए लोगों की भीड़ तो जमा जरूर होती है, लेकिन किसी भी सामाजिक संस्था या जिला प्रशासन ने, ना तो युवक को बेड़ियों से आजाद कराने की कोशिश की और ना ही इस गरीब परिवार की कोई मदद।
कुदरत ने दी है बेरहम जिंदगी
जिस उम्र में घर का होनहार युवा कमाई कर अपने परिवार का हाथ बंटाता है, उस परिवार की रौनक कुछ अलग होती है । हर माँ-बाप का सपना अपने लाडले को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाकर उसे जीवन की मुख्य धारा से जोड़ना होता है । लेकिन जंजीरों में कैद शवरेज आलम एक ऐसा अभागा युवा है, जिसे कुदरत ने एक अलग ही तरह की जिंदगी दी है । शवरेज आलम बचपन से ही दिमागी तौर पर कमजोर है । जिससे ना चाहते हुए भी शवरेज आलम के परिजनों को उसे जंजीरों में कैद कर रखना पड़ रहा है।
गरीबी बन गई है अभिशाप
मामला मुजफ्फरनगर के शहर कोतवाली क्षेत्र के मीनाक्षी चौराहे का है । जहां खालापार निवासी शाह आलम की पान की एक छोटी सी दुकान है । शाह आलम के परिवार में 6 बच्चे हैं। पान की दुकान से होने वाली आमदनी से वह बहुत मुश्किल से अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है । शाह आलम के 6 बच्चों में एक बेटा शवरेज आलम बचपन से ही मानसिक रूप से कमजोर है। शाह आलम की मानें, तो उसने बड़े से बड़े डॉक्टर से अपने बेटे शवरेज आलम का इलाज कराया, लेकिन किस्मत को शायद शवरेज आलम का स्वस्थ होना मंजूर नहीं था ।
समय के साथ-साथ शवरेज आलम हमलावर होने लगा। आते-जाते लोगों को मारना या हमला करना उसका स्वभाव बन गया था । लिहाजा समाज के तानों को बर्दाश्त करते हुए मजबूरी में शाह आलम ने दिमागी रूप से कमजोर बेटे को अपनी दुकान के बाहर जंजीरों में कैद करना ही उचित समझा । शाह आलम का कहना है कि कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों को बांधकर नहीं रख सकता । मेरी मजबूरी है क्योंकि ये बचपन से ही मानसिक रूप से कमजोर है । उनका कहना है कि कभी-कभी ये आक्रामक हो जाता है । आर्थिक तंगी के कारण इसका इलाज भी नहीं करा पा रहा हूँ ।
प्रशासन क्यों नहीं कर रहा मदद
शवरेज आलम की इस हालत को देखते हुए समाजसेवी दिलशाद पहलवान का कहना है कि वह 12 साल से शवरेज आलम को जंजीरों में बंधा हुआ देख रहे हैं। इसके पिता शाह आलम की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है । उनका कहना है कि जिला प्रशासन को उस मंद की मदद करनी चाहिए। प्रशासन को दिमागी तौर पर कमजोर शावेज का इलाज करवाना चाहिए ताकि आने वाले समय में वह ठीक होकर अपनी जिंदगी को सुधार सके।