UP के इस मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना, चढ़ाते है नारियल और चुनरी

गोरखपुर जिला मुख्यालय से 51 किलोमीटर उत्तर सोनौली रोड पर तराई में फरेंदा तहसील से 9 किलोमीटर की दूरी पर पवह नदी (नाला) के तट पर स्थित शक्तिपीठ माता आद्रवासिनी लेहड़ादेवी का यह मंदिर वनों से आच्छादित क्षेत्र में स्थित है। यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने पर देवी मां को नारियल और चुनरी चढ़ाते है।

Update:2016-10-08 19:08 IST

गोरखपुर : पूर्वांचल के शक्तिपीठों में प्रसिद्ध आद्रवासिनी माता लेहड़ा मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। मां के दरबार में श्रद्धालु दूर दूर से पहुंचते है। यहां पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के दिनों में श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है।

गोरखपुर जिला मुख्यालय से 51 किलोमीटर उत्तर सोनौली रोड पर तराई में फरेंदा तहसील से 9 किलोमीटर की दूरी पर पवह नदी (नाला) के तट पर स्थित शक्तिपीठ माता आद्रवासिनी लेहड़ादेवी का यह मंदिर वनों से आच्छादित क्षेत्र में स्थित है। यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने पर देवी मां को नारियल और चुनरी चढ़ाते है।

मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी स्थान पर यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देकर अपने चारों भाइयों को पुनर्जीवित किया था। बाद में पांचों भाइयों ने यहां पीठ की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू की। पाण्डव पुत्र महाबली भीम द्वारा मंदिर में स्थित पिण्डी की स्थापना की गई थी। जबकि इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हुए गुप्त काल में भारत भ्रमण पर आए चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में भारत प्रवास के दौरान इस मंदिर के बारे में लिखा है। उपलब्ध बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार गौतम बुद्ध की माता माया देवी कोलिय गणराज्य की कन्या थीं। बुद्ध का बाल्यकाल इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ।

जबकि यहां की मान्यताओं और लोक कथाओं के अनुसार बरतानिया शासन में एक दिन लेहड़ा स्थित सैन्य छावनी के अधिकारी (लगड़ा साहब) शिकार खेलते हुए मंदिर परिसर में पहुंच गए। यहां पर भक्तों की भीड़ देख कर उन्होंने देवी की पिण्डी पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कुछ ही देर में वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर भयभीत अंग्रेज अफसर वापस कोठी की तरफ आ रहे थे कि घोड़े सहित उनकी मृत्यु हो गई। उस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर के एक किमी पश्चिम में स्थित है। इस घटना के बाद लोगों की आस्था लेहड़ा देवी के प्रति और बढ़ गई।

यहां इस मंदिर से जुडी दंतकथाओं की मानें तो एक बार देवी सुन्दर कन्या के रूप में नाव से नदी को पार कर रही थीं। उनकी सुन्दरता देखकर नाविक के मन में दुर्भावना आ गई और उसने मां को छूने का प्रयास किया। उसी समय देवी अपने विलक्षण रूप में आ गई। यह देख नाविक घबराकर उनके पैरो में गिर गया और क्षमा मांगने लगा। मां ने उसे क्षमा कर वरदान दिया कि जब भी श्रद्धालु उनके दर्शन हेतु शक्तिपीठ आएंगे तो नाविक को भी याद करेंगे। जिसकी प्रमाणिकता में मंदिर के पूरब दिशा में एक नाव पर देवी की प्रतिमा मौजूद है। लेहड़ा मंदिर के महंत के अनुसार दर्शनार्थियों के लिए मंदिर का कपाट भोर में 4 बजे ही खोल कर भोर 4 बजे, दोपहर 12 बजे और रात्रि के 8 बजे आरती का समय निर्धारित है।

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