लखनऊ: जिंदगी गुजर जाती है एक छोटा सा आशियाना बनाने में, लेकिन कभी-कभी एक चिंगारी सब कुछ छीन लेती है। पीछे छूट जाते हैं आंसुओं में डूबे ख्वाब, तबाह हो चुके आशियाने की याद और कभी कम न होने वाला गम। आलम बाग में आग की लपटें इतनी तेज उठीं कि 50 परिवार की आंखों से बहते आंसू भी मिलकर उसे बुझा नहीं पाए। दर्द और खौफ की इतनी कहानियां एक साथ और हर कहानी आंसुओं के न थमने वाले सैलाब के साथ। कुछ के पास फटे-पुराने ख़्वाब बच गए हैं तो न जाने कितने ऐसे हैं जिनके पास कोई ख़्वाब भी नहीं है। आलमबाग के 50 परिवारों की ज़िंदगी का शीशा कुछ इस तरह टूटा कि मानो हर टुकड़ा चीख चीख कर कह रहा हो कि अब हम कभी नही जुड़ेंगे।
सबके जेहन में सिर्फ एक सवाल था कि ये क्या हो गया, लेकिन जवाब खुद भगवान के पास भी नहीं था, क्योंकि वो खुद को भी उस आग से बच नहीं पाए थे। बीच-बीच में उठती चीखें सवालों का भूलने पर मजबूर कर रही थीं। सभी लोग बची हुई राख के मलबे में अपने जानने वालों को तलाश कर थे और वो तलाश एक मौत पर जाकर ख़त्म हुई।
पिछले 10 सालों से एक साथ रहने वाले दोस्त भी आज उसे पहचान नहीं पा रहे थे। अचानक भीड़ से आई एक चीख ने सबको ये समझा दिया कि कोई है जो उसे पहचान गया है। चेहरे पर दर्द इतना ज्यादा था कि आंसुओं को जरूरत महसूस नही हुई आंखों में आने की। सच कहूं तो मैं चाहकर भी उस मंजर को अपने शब्दों में बयां नहीं सकता क्यों कि ये तो वही बता सकता है जिसने लाशों के बीच बैठकर जिंदगी ढूंढी हो।
नीचे की स्लाइड्स में देखिए, खाक हो चुके आशियाने के बीच ख्वाबों को ढूंढते परिवारों की तस्वीर...