लखनऊ: इस रिश्ते पर हर किसी को होता है ऐतबार, जिसमें खत्म नहीं होता है कभी प्यार
वो हर किसी के नसीब में नहीं होती है। पर जिन्हें मिलती है, उनकी जिंदगी में कभी खुशियों की कमी नहीं होती। बड़े ही खुशनसीब होते हैं वे लोग, जिन्हें घर में तो पापा की डांट से बचाने वाली बहन मिलती ही मिलती है, घर के बाहर भी इन्हें फ्रेंड के रूप में बहन मिल जाती है।
जब इन्होनें पहली बार भाई की कलाई पर वो रेशम का धागा बांधा होगा, तो कभी नहीं सोचा होगा कि ये रिश्ता इतना मजबूत होगा। कौन कहता है कि सिर्फ सगे-भाई-बहन ही इस रिश्ते को मानते हैं या फिर यह राखी का धागा किसी धर्म में बंटा होता है। ये राखी का धागा कोई दिखावा नहीं होता है, जिसे लोग यूं ही फैशन में बांध लेते हैं। ये तो वो प्यार है, जिसे जब एक बहन भाई के हाथ में बांधती है, तो वो उसकी जिंदगी में आने वाले हर गम को अपने ऊपर के लेता है। फिर वह चाहे अपनी सगी बहन हो या फिर मुंह बोली अपनी बहन की रक्षा तो हर कोई करता है। लेकिन जो किसी और का भाई बनकर उसके चेहरे पर ख़ुशी लाने का काम करे, ऐसे लोग बहुत ही कम मिलते हैं। एक तरफ जहां राखी के दिन लोग अपनी-अपनी बहनों से राखी बंधवाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपनी कलाई पर मुंहबोली बहन का प्यार उस रेशम के धागे के रूप में बांधते हैं, जिनकी रक्षा का वह प्रण लेते हैं। ये लोग समाज में न सिर्फ एक मिसाल कायम करते हैं बल्कि इस पवित्र रिश्ते की मान्यता को फैलाने का काम भी करते हैं।
मिलवाते हैं आपको लखनऊ की कुछ ऐसे ही मुंहबोली बहनों से, जिनका रेशम का धागा दूर रहकर भी अपने भाइयों की रक्षा करता है-
हॉस्टल में मिले मुंहबोले भैया: प्रियंका तिवारी और गौतम
प्राइवेट जॉब करने वाली प्रियंका और गौतम के जैसा भाई-बहन का प्यार न सिर्फ दूसरों के लिए मिसाल है बल्कि प्रेरणा भी है। प्रियंका बताती हैं कि जब वह अपना पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी, तब उनकी मुलाकात गौतम से हुई पूरा कॉलेज उन्हें भैया कहकर बुलाता था। एक बार गलती से किसी ने कह दिया कि कहता तो पूरा कॉलेज ही उन्हें भैया है, पर राखी कोई नहीं बांधता? बस फिर क्या था उसी साल रक्षाबंधन से प्रियंका ने गौतम को राखी बांधना शुरू कर दिया। तब से लेकर आज तक गौतम प्रियंका को बहन मानते आ रहे हैं। वह दूसरे शहर में रहकर भी प्रियंका की हर संभव मदद करने को तैयार रहते हैं।
मजहब का मोहताज नहीं भाई-बहन का प्यार: रिजवान खान और परवीन
न ये मजहब देखता है, न ये धर्म देखता है,
ये तो वो प्यार है, जो भाई की ख़ुशी उसकी बहन में देखता है।
केकेसी कॉलेज से पढ़ाई करने वाले रिजवान को कहने को भले ही मुस्लिम हैं। लेकिन वह इस बात को नहीं मानते हैं। उनकी नजरों में भाई-बहन का प्यार मजहबों में नहीं बांटा जा सकता है। वह कहते हैं कि बचपन से ही उन्हें राखी का त्योहार काफी पसंद था और यही कारण था कि उनकी स्कूल फ्रेंड परवीन उन्हें स्कूल टाइम से ही राखी बांधती आई हैं। रिजवान बताते हैं कि इस बार परवीन की जॉब लग गई और वह शहर से बाहर हैं लेकिन फिर भी उन्होंने राखी भेज दी है और रक्षाबंधन पर उनकी कलाई पर राखी जरुर होगी।
स्कूल प्ले में मिली मुंहबोली बहन: विपिन यादव और आकांक्षा शर्मा
शकुंतला यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले विपिन यादव बताते हैं कि जब वे 11वेंथ क्लास में पढ़ते थे, तो उनके स्कूल में एक प्ले हुआ था। जिसमें उन्होंने और आकांक्षा ने भाई-बहन का रोल प्ले किया था। वह बताते हैं कि उन दोनों का एक्ट इतना ज्यादा अच्छा गया था कि ऑडियंस ने खड़े होकर काफी देर तक तालियां बजाई थी और उन्हें स्कूल में प्राइज भी मिला था। तब से लेकर आज तक दोनों भाई-बहन के उस रिश्ते को निभाते आए हैं। विपिन का कहना है कि उस प्ले को भले ही 6 साल बीत गए हों, लेकिन उनकी बहन आकांक्षा का प्यार जरा भी कम नहीं हुआ है। हर रक्षाबंधन पर विपिन खुद ही आकांक्षा से राखी बंधवाने जाते हैं।
मौली पर टिकता है भाई-बहन का प्यार: असीम कालरा और इकरा सिद्दीकी
वैसे तो असीम पंजाबी हैं लेकिन उनके दिलों में हर धर्म के लिए उतना ही प्यार और सम्मान है, जितना उनके खुद के लिए। वह बताते हैं कि इकरा उनकी क्लासमेट थी। जब-जब रक्षाबंधन आता था, तो वे सबसे पूछती थी कि इस धागे में ऐसा क्या ख़ास होता है? तब असीम ने उन्हें इस मौली के धागे की वैल्यू बताते हुए कहा कि ये सिर्फ एक धागा नहीं होता है। यह भाई-बहन के प्यार की वो डोर है, जो एक बार बंध जाती है, उसके बाद जल्दी नहीं टूटती है। तब से इकरा ने असीम को राखी बांधनी शुरू की। इतना ही नहीं इकरा के कई फ्रेंड भी इस फेस्टिवल को बड़े ही प्यार से मनाते हैं।