तो इस वजह से नवरात्रि में महाश्मशान घाट पर जलती चिताओं के बीच नाचती हैं बार बालाएं

Update:2017-04-04 10:58 IST

वाराणसी: वाराणसी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं ने जलती चिताओं के बीच नृत्य कर काशी विश्वनाथ के रूप बाबा मसान नाथ के दरबार में नगर वधुओं ने हाजिरी लगाई। कहते हैं कि काशी के मंदिरों में देवताओं के सामने संगीत पेश करने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। चार सौ साल पहले राजा मान सिंह ने बाबा मसान नाथ के दरबार में काशी के कलाकारों को बुलाया था।

तब शमशान होने के कारण कलाकारों ने आने से इंकार कर दिया था। तब समाज के सबसे निचले तबके की इन नगर वधुओं ने आगे बढ़कर इस परंपरा का निर्वहन किया और आज तक अपने नाच और संगीत से इसे निभा रही हैं। पर इस बार पहली बार नगर वधुओं ने शास्त्रीय संगीत की धुन पर नृत्य किया।

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धार्मिक नगरी काशी का मोक्ष तीर्थ, यहां वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया जाता है। कहते हैं कि यहां अंतिम संस्कार होने पर जीव को स्वयं भगवान शिव तारक मंत्र देते हैं। लेकिन नवरात्रि में यहां काशी की बदनाम गलियों के अंधेरे से निकली नगर वधुओं यानी सेक्स वर्कर्स डांस करती हैं। लेकिन ऐसा क्यों है? यह बहुत ही कम लोग जानते होंगे।

ऐसा क्यों होता है बताए हैं आपको इससे जुड़े इतिहास के बारे में दरअसल सत्रहवीं शताब्दी में काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान शिव (जो मसान नाथ के नाम से श्मशान के स्वामी हैं) के मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही उन्होंने यहां एक संगीत कार्यक्रम करने का मन बनाया। लेकिन ऐसा स्थान जहां चिताए ज़लती हों, संगीत के सुरों को छेड़ने के लिए कौन तैयार होता?

ज़ाहिर है कोई कलाकार नहीं गया। लेकिन राजा का मां रखते हुए जलती चिताओं के बीच डांस के लिए तवायफें तैयार हो गईं। इसी के चलते इस साल इस साल पद्म श्री सोमा घोष ने शास्त्रीय संगीत की धारा यह बहाई और उनकी धुन पर नगर वधुओं ने ठुमके लगाए।

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लेकिन ऐसा नहीं कि इस आयोजन की यही सिर्फ एक वज़ह है। धीरे धीरे ये धारणा भी आम हो गई कि बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म में ऐसे तिरस्कृत जीवन से मुक्ति मिलती है। गंगा-जमुनी संस्कृति की मिसाल इस धरती पर सभी धर्मो की सेक्स वर्कर्स आती है। सबकी जुबां पे बस एक ही ख्वाहिश होती है कि उन्हें अगले जन्म में मुक्ति मिले।

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शमशान पर सेक्स वर्कर्स का डांस, धर्म की नगरी काशी में वर्षों पुरानी इस परंपरा के इस बात को साबित करती है कि अड्भंगी भूतभावन शिव सबके हैं। इसीलिए साल में एक बार ही नवरात्रि में इनको बाबा के दरबार में अपनी कला के माध्यम से अपनी व्यथा कथा सुनाने का मौक़ा तो मिल जाता है और समाज भी देख लेता है कि वो भी किसी से कम नहीं हैं। उनमें भी प्रतिभा है।

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16वीं शताब्दी के आस-पास राजा महराजा नगर वधुओं को शहर के एक छोर पर स्थान देकर नृत्य संगीत देखने सुनने जाते थे। उस समय नगर वधुओं के यहां संगीत की महफ़िल लगा करती थी। राजा मान सिंह के समय इस परंपरा की शुरुआत हुई थी, जो आज भी निभाई जा रही है।

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