लखनऊ: आजकल हर तरफ तीन तलाक का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि तलाक से सबसे ज्यादा महिलाओं पर असर होता है और इसका पुरुषों पर कोई असर नहीं होता, लेकिन ये बहुत हद तक सच नहीं है। तलाक पुरुषों को भी प्रभावित करता है। पार्टनर से अलगाव उन्हें भी अकेला करता है, उन्हें भी तकलीफ देता है। तलाक़ का पुरुषों पर और क्या असर होता है जानते हैं...
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पुरुषों को समाज में गलत समझा जाने लगता है
तलाक के ज्यादातर केस में सबकी सहानुभूति व तवज्जो पत्नी के साथ होती है और माना जाता है कि किसी भी महिला के लिए तलाक की प्रक्रिया तकलीफदेह होती है, लेकिन शायद ही किसी ने इस बात पर गौर किया हो कि तलाक पुरुषों के लिए भी उतना ही मुश्किलभरा व चुनौतीपूर्ण होता है। कई पुरुष इसके बाद डिप्रेशन में चले जाते हैं। साथ ही दोस्तों, परिवार, समाज की नज़रों में विलेन भी।
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शोध में भी पुरुषों के साथ सहानुभूति
मनोवैज्ञानिक शोध में य बात साफ हो गई है कि सिर्फ महिलाएं ही अपने पति से बहुत प्यार करती हैं व उनसे दिल से जुड़ी रहती हैं सच नहीं हैं, जबकि पुरुष भी अपनी पत्नी से भावनात्मक लगाव रखते हैं और डिवोर्स के बाद भी उस लगाव, संवेदनाओं व चाह को तोड़ नहीं पाते व बेचैन रहते हैं।
तलाक़ पुरुषों को भावनात्मक रूप से अस्थिर कर देता है। कई बार मानसिक अवसाद इतना बढ़ जाता है कि उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति पनपनेे लगती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, पुरुष एक स्त्री की तुलना में अपने दुख को 1% भी व्यक्त नहीं करते, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि उनका दुख-दर्द पत्नी की तुलना में कम है। तलाक़ के बाद पुरुष किस-किस तरह से प्रभावित होते हैं।
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समाज के ताने
पुरुष शारीरिक रूप से नारी की तुलना में बेहद ताक़तवर होते हैं, लेकिन मानसिक मज़बूती में वे औरत की तुलना में कम होते हैं। ये अलग बात है कि वे दुनिया के सामने कठोर बने रहते हैं। यहां तक कि तलाक को भी बिना शिकन के झेल लेते हैं, लेकिन यह महज़ दिखावा होता है। जीवनसाथी से अलगाव, आगे का जीवन तन्हा जीना, दोस्तों, रिश्तेदारों, महिला कलीग्स की चुभती निगाहें, ताने-उलाहने, तीखे कमेंट्स पुरुषों को अंदर से तोड़ देते हैं।
उनका मन कमज़ोर और भावनाएं घायल होती जाती हैं, लेकिन हमेशा से जो सिखाया-बताया जाता है कि पुरुष बहादुर होता है, रोता नहीं है, उसे दर्द नहीं होता है।बस, यही बातें उन्हें कठोर बने रहने पर मजबूर कर देती हैं।
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महिलाएं मन की बातें शेयर कर लेती है
पुरुष अपने दुख-तकलीफ को उतनी सहजता से नहीं कह पाते, जितनी सरलता से महिलाएं कहती हैं। फिर चाहे बात छोटी-सी खरोंच लगने की हो या तलाक की। जहां स्त्री अपने-पराए हर किसी से अपने तलाक पर बात कर लेती है, पति के अत्याचार, व्यवहार के बारे में सब कुछ बता अपना मन हल्का कर लेती है, वहीं पुरुष ये सब नहीं कर पाते।
पुरुष के लिए तो अपने बेस्ट फ्रेंड से भी अपनी पत्नी, तलाक़ और उससे जुड़े हालात, वजहों को डिसकस करना, अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना टेढ़ी खीर साबित होता है। पुरुष अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण अपने ग़म को अपने अंदर ही पालता रहता है।
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तलाक़ से उपजा अवसाद, सदमा और पत्नी का रिजेक्शन पुरुष को लंबे समय तक तोड़कर रख देता है। पुरुष का यही अंतर्मुखी स्वभाव आगे चलकर कई गंभीर मानसिक व शारीरिक हेल्थ प्रॉब्लम्स को जन्म देता है। भारतीय पुरुष शादी होते ही अपनी हर तरह की ज़रूरतों के लिए पत्नी पर कुछ इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि उनका डेली रूटीन बिना पत्नी की मदद के पूरा नहीं होता। तलाक होने पर अचानक जब यह सपोर्ट सिस्टम फेल हो जाता है, तो उनकी ज़िंदगी अव्यवस्थित हो जाती है। इन सबका असर उनकी नौकरी यानी प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ने लगता है।
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वे काम में पहले जैसे स्मार्ट और परफेक्ट नहीं रह जाते। देर रात तक की मीटिंग अटेंड नहीं कर पाते। वे लॉन्ग टूर पर नहीं जा पाते हैं, क्योंकि अब उन्हें घर मैनेज करने के साथ-साथ बच्चों के स्कूल (यदि बच्चे हैं), उनकी सुरक्षा की भी चिंता लगी रहती है। पहले की तरह स़िर्फ अपने करियर पर फोकस नहीं रख पाते, जिससे वे प्रोफेशनल फ्रंट पर पिछड़ने लगते हैं।
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किसी का सहयोग नहीं
सायकोलॉजिस्ट के अनुसार, घर-बाहर की ज़िम्मेदारी के साथ समाज व रिश्तेदारों के व्यवहार में उनके प्रति आया परिवर्तन, ठंडापन उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर करता है। जीवनसाथी की कमी उनके मन में खालीपन का एहसास पैदा करने लगती है। वे ग़ुस्सैल, चिड़चिड़े व आक्रामक होते जाते हैं। कभी-कभी अल्कोहल, ड्रग्स, जुए आदि की लत उनके पतन का कारण बन जाती है। पुरुषों के लिए डिवोर्स फाइनेंशियली भी बहुत भारी पड़ता है। तलाक़ के बाद भारी एलीमनी देनी पड़ती है। जॉइंट एसेट्स का लिक्विडेशन करना होता है। घर, चल-अचल संपत्ति में भी पत्नी व बच्चोें की हिस्सेदारी देना ज़रूरी होता है। इन सब को पूरा करते-करते पुरुष की ज़िंदगीभर की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च हो जाता है।
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बच्चे की कस्टडी मां के साथ
डिवोर्स होने पर छोटे बच्चों की कस्टडी अक्सर मां को मिलती है. पिता के हिस्से में आती हैं कोर्ट के आदेशानुसार नियत समय पर चंद मुलाकातें। पुरुष अपनी पत्नी से अलग रह सकते हैं, लेकिन अपने बच्चों का दूर जाना उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देता है। बच्चे के जन्म से लेेकर परवरिश से जुड़ी छोटी-छोटी बातें, यादें उन्हें ग़मगीन करती चली जाती हैं, यह औैर बात है कि वे अपना यह दर्द किसी से साझा नहीं करते। तलाक़ के बाद अपने बच्चे से पिता को दूर कर दिया जाना उनके लिए किसी इमोशनल अत्याचार से कम नहीं है।
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तलाक का पुरुषों के मान-सम्मान और इमेज पर भी नेगेटिव असर पड़ता है। लेकिन अफ़सोस यह कि जहां पत्नी को हर तरफ से सहयोग मिलता है, वहीं पति के पास एक कंधा भी नहीं होता, जिस पर सिर रखकर, वह अपना मन हल्का कर सके। इसलिए यह कह देना कि तलाक का असर पुरुषों पर नहीं होता गलत और न्यायसंगत नहीं है।