लखनऊ: नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा, कृष्ण का वो अवतार जो हर युग में हर किसी का मन मोह लेता है। श्याम सुंदर यशोदानंदन कृष्ण की जीवन लीला का वर्णन जीवन में रस घोलने का काम करता है। कलयुग के सबसे लोकप्रिय भगवान कृष्ण का हर रूप पूजनीय, आदरणीय और प्रेरणादायक है। कान्हा, तो कभी घनश्याम, तो कभी मधुसुदन चाहे जिस रुप में ले लो इनके नाम, हर रूप में है तारणहार। क्या कहूं कृष्णा तुम्हें राम या श्याम।
एक ने लिया रात में मां देवकी की गोद में जन्म तो दूसरे ने किया दिन में मां यशोदा के वात्सल्य का पान। एक ने माता-पिता की छांव में गुजारा बचपन तो दूसरे ने यौवन के बाद का जीवन। एक कहलाएं मर्यादा पुरुषोत्तम तो दूसरे बने मर्यादा का पालन करने वाले श्याम।
युगांतर
राम और श्याम के जीवन में एक युग का अंतर है फिर दोनों अलग होते हुए भी एक है। राजा दशरथ ने कई हजार सालों की तपस्या के बाद त्रेतायुग में राम को पाया तो वासुदेवजीने द्वापर में कालीअंधियारी रात में कन्हैया को पाया। दोनों के जीवन युग में हजार थी असमानताएं फिर थे दोनों रहे मर्यादा पुरुष। और भारत की युग युगांतर चलने वाली आत्मा।
प्रेम को किया परिभाषित
कृष्ण जन्माष्टमी में श्याम के साथ राम का अनुकरण हमारी मानसिक शांति और प्रेम की अनुकृति है। माखनचोर का जन्म पर उनके प्रेम को याद करते हुए उनके राम स्वरुप की तुलना हमारा उनके प्रेम को दर्शाती है। राम ने मां सीती जी के साथ एक पत्नी धर्म का पालन किया तो कृष्ण ने महारास के साथ हर किसी को प्रेम का संदेश दिया और सबके प्रेम को स्वीकार किया, लेकिन उसमे वासना नहीं बल्कि दिलों में बसने वाला प्रेम था।
सनातन सन्मार्ग और सर्वकल्याण
कृष्ण- राम के ही दर्शन में ही है भारत की असली सार्थकता। कृष्णाष्टमी पर सृष्टि के पालनहार रचयिता को याद करना हमारा कर्तव्य भी है और प्रेम भी। शिव के बिना इनका दर्शन में अधूरा जहां ये त्रिदेव है वहीं धर्म,दर्शन और सन्मार्ग है। कृष्ण के प्रति अडिग विश्वास, जो हर युग में शाश्वत प्रेम रहा है। कृष्ण ने अपनी सूझबूझ और शक्ति का प्रदर्शन मजबूती से किया।
कृष्ण ने विद्रोह भी किया, क्रांति भी की और अपने लक्ष्य की खातिर पूरी प्रक्रिया को ही बदल दिया। धर्म और अधर्म को अलग-अलग तराजू में तौला है। कृष्ण को अपने समयकाल में दार्शनिक सिद्धांतों में व्यावहारिक बदलाव करना पड़ा था। क्योंकि, उनके सामने बड़ी समस्याएं थीं। सबके कल्याण के लिए चतुराई पुर्ण युक्तियों को भी सही बताया। कृष्ण ने कहा है कि एक अच्छे काम के लिए 100 झूठ भी बोला पड़ें तो सौ सच के बराबर है।
हजारों सालों से उतनी गहरा है उनका प्रेम
हजारों साल बाद आज भी उनका प्रेम उतना ही गहरा है। प्रेम का दूसरा पहलू घृणा होता है जो कृष्ण में नहीं था। उनका दर्शन बेहद सरल रहा, उनके उपदेश मेंजीवन का सार है। जो व्यक्ति के दुर्गुणों को बदले का मादा रखता है।
पूरी होगी जन्माष्टमी की सार्थकता
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और मर्यादा के लिए लड़ने वाले श्रीकृष्ण की तरह उनके दर्शन को जीवन में उतारना होगा। कई सदी बीत गए कान्हा फिर भी तुम ना मन से गए। एक बार फिर जरुरत है श्री कृष्ण के निश्छल प्रेम को समझने की..तभी सच्चे अर्थों में कृष्णाष्टमी के उत्सव को मनाने की सार्थकता पूरी होगी।
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, कृष्णाय क्लेशनाशाय, नमो नम: