लखनऊ: समाजवादी पार्टी शनिवार को अपना रजत जयंती समारोह मना रही है। पार्टी ने शनिवार को 25 साल का सफर पूरा कर लिया है। 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की थी। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और राज नरायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं से राजनीति की एबीसीडी सीखने वाले मुलायम वैसे तो सपा के गठन से पहले ही उत्तर प्रदेश के सीएम बन चुके थे। लेकिन इनकी अपनी कोई पार्टी नहीं थी। 1980 के आखिर में वो उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने थे जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया।
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मुलायम 1989 में पहली बार बने सीएम
मुलायम सिंह यादव ने 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने थे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेता मुलायम भारत सरकार मे रक्षा मंत्री भी रह चुके है और राष्ट्रीय राजनीति के सबसे बड़े समाजवादी नेता हैं। जिनका सम्मान सभी अन्य पार्टी के नेता करते हैं। समाजवादी पार्टी की लोकप्रियता उत्तर प्रदेश मेंं सबसे अधिक है।
मुलायम ने जब 1992 में पनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास बड़ा नेता नहीं। इसके बाद सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर लिया था। जो कि समाजवादी पार्टी का पहला एक बड़ा प्रयोग था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पैदा हुए सियासी माहौल में मुलायम का यह प्रयोग सफल भी रहा। कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह फिर सत्ता में आए और सीएम बने।
सीएम ने भ्रष्ट नेताओं पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था
सीएम अखिलेश ने भ्रष्ट नेताओं को अभी कुछ दिनों पहले ही अपनी पार्टी से बाहर निकाला है। अखिलेश ने अपनी कैबिनेट में अहम मंत्रालयों का जिम्मा संभाल रहे चाचा शिवपाल यादव की भी कैबिनेट से छुट्टी कर दी थी।
कुछ दिन पार्टी में चली महाभारत के बाद फिर से शिवपाल कि कैबिनेट में वापसी हो गई। लेकिन अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष का पद वापस नहीं मिल पाया मुलायम के चचेरे भाई और राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव पार्टी से निकाल दिए गए। अखिलेश के कुछ और करीबियों की भी पार्टी से छुट्टी कर दी गई।
मुलायम की लाख कोशिशों के बावजूद भी चाचा शिवपाल की सरकार में वापसी नहीं हो सकी है। इस कलह के बाद एक बार फिर पार्टी को नेता जी ने संभाल लिया है। अखिलेश अब अगले चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। वहीं शिवपाल को चुनाव पूर्व प्रस्तावित महागठबंधन के लिए दूसरों दलों को साथ लाने की जिम्मेदारी नेताजी ने सौंप दी है।