लखनऊः मोहर्रम यानी इमाम हुसैन की याद में मनाया जाने वाला गम का वो महीना जिसमें किसी महज़ब के लोग नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान की अवाम की आंखे नम हो जाती हैं। इमाम हुसैन की शहादत भले ही कर्बला में हुई थी लेकिन उनकी यादें हर दिल में बसी है। नवाबों की नगरी के नाम से मशहूर लखनऊ मोहर्रम का चांद नमूदार होने के साथ हुसैनी नगरी में तब्दील हो जाती है और शुरू हो जाता है मजलिस और मातम का दौर। इमाम हुसैन इंसानियत और एकता की मिसाल है। उनकी याद में मनाए जाने वाले मोहर्रम की वजह से ही लखनवी तहज़ीब ने अपनी आंखे खोली और यह तहज़ीब मोहर्रम की आगोश में ही पली बढ़ी। मोहर्रम में अज़ादारी की रस्म और रीत पूरी दुनिया में लखनऊ से ही ली गई है।
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इंसान को बेदार तो हो लेने दो, हर कौम पुकारेगी हमारे है हुसैन
मशहूर शायर जोश मलीहाबादी ने अपने इस शेर के ज़रिए बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में इमाम हुसैन को एकता अहिंसा और इंसानियत की मिसाल बताया है। इमाम हुसैन ने अपने पूरे परिवार के साथ कर्बला में शहादत दे कर इंसानियत को बचाया और अहिंसा का सबक दिया। इस्लाम में माफ़ी देने का सबक भी इमाम हुसैन के दर से मिला। इमाम हुसैन की शहादत में नम आंखों के साथ अज़ादारी मनाने का तरीका पूरी दुनिया में लखनऊ से लिया है। मोहर्रम में होने वाली अज़ादारी और जुलूस को देखने के लिए पूरी दुनिया के कोने-कोने से लोग आते और यहां के रस्मो रिवाज़ के तरीके अपने साथ ले जाते हैं। इमाम हुसैन ने अपने पूरे परिवार और दोस्तों के साथ इस्लाम को बचाने के लिए शहादत पेश कर यह साबित कर दिया की सच की हमेशा जीत होती है।
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पहली मोहर्रम को निकलता है शाही ज़री का जुलूस
मोहर्रम का चांद निकलने के साथ लखनऊ इमाम हुसैन की याद में डूब जाता है। फिज़ाओ में या हुसैन की सदाओ के साथ शुरू हो जाता है मजलिस मातम और जुलूस का सिलसिला। पहली मोहर्रम को शाही ज़री का जुलूस अपने रवायती अंदाज़ से निकलता है तो आजादारो की आंखे उस मंज़र का तसव्वुर करने लगती है। जब इमाम हुसैन ने अपने अजीजो के साथ कर्बला की सरज़मीन पर क़ायम किया। पहली मोहर्रम से जारी जुलूसो का सिलसिला दो महीने आठ दिन तक इमाम हुसैन और उनके साथ कर्बला में दीन को बचाने के लिए शहीदों की याद में चलता रहता है। कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के भाई इमाम हसन के बेटे जनाबे कासिम ने भी इस्लाम को बचाने के लिए अपनी शहादत पेश की थी। जिनकी याद में मोहर्रम की 6 तारीख को मेहंदी का जुलूस जाता है और आज़ादार भीगी पलकों से हाय कासिम की सदाओ के साथ खिराजे अकीदत पेश करते हैं।
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लखनऊ की दरिया वाली मस्जिद का अलम मुबारक है दुनिया में मशहूर
सियाह लिबास और मातम की सदा के साथ आठ मोहर्रम को दरिया वाली मस्जिद से इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास का अलम मुबारक का जुलूस अपने रवायती अंदाज़ में निकलता है। तो हर मज़हब से परे लाखों लोगो का हुजूम अलम मुबारक की जियारत के लिए दूर दूर से खिंचा चला आता है। या अब्बास की सदाओं के साथ सियाह कपड़ो में अज़ादार अब्बास अलमबरदार की याद में नौहा पढ़ कर पूरी दुनिया को कर्बला के वाकिए में हजरत अब्बास की वीरता और यजीद के ज़ुल्म से रु-ब-रु करवाते है। किसी शायर ने हजरत अब्बास की वीरता को कुछ इस अंदाज़ में बयान किया है...
चुल्लू में लेके फ़ेंक दिया आबे फुरात को
ये सोच के अब्बास ने प्यासे इमाम है
कब्ज़ा नहर पर कर के गाज़ी ने यह कहा
सुल लो मै अलमदार हूं अब्बास नाम है
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आशूर के दिन कर्बला में ताज़िए होते है सुपर्द ए ख़ाक
वहीं मोहर्रम की सबसे अज़ीम तारिख यानी आशूर के दिन इमाम हुसैन के सोगवार कर्बला के शहीदों की याद में भूखे प्यासे रहते हुए नंगे पैर घरो में रखे उन ताजियों को कर्बला जा कर दफनाते है, जिन्हें कर्बला के शहीदों की शबीह माना जाता है।
आतंकवाद के खिलाफ न झुकने दर्स देता है मोहर्रम
जुलूस मातम और मजलिसे अजा का यह सिलसिला दुनिया रहने तक बाकी रहेगा। कर्बला के वाकिए ने दुनिया को इंसानियत का सबक सिखा दिया। आज जो भी अज़ादारी के जुलूस निकाले जाते है। वह यजीद के आतंकवाद के खिलाफ इमाम हुसैन के अनुयायियों का विरोध है। इस अज़ादारी के ज़रिए पूरी दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ न झुकने का जो सबक इमाम हुसैन ने दिया उसे अज़ादार शिद्दत से फैलाते है।
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इमाम हुसैन महात्मा गांधी की नज़र में
महात्मा गांधी इमाम हुसैन से इतना प्रभावित थे की उन्होंने इमाम हुसैन के बारे में कहा- मैंने इमाम हुसैन से सीख की मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है। इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि यह इमाम हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे।
क्या कहते हैं सरदार ज्ञानी गुरमुख सिंह?
हज़रत इमाम हुसैन शहीदों के सरताज है। आज भी इमाम के नक़्शे क़दम पर चलने और उसूलों को मानने की ज़रूरत है क्योंकि बड़ी और बुराई ने इंसान को फिर परेशान कर रखा है। जो सच्चाई इमाम हुसैन ने दुनिया के सामने रखी थी सैंकड़ो साल गुज़र जाने के बावजूद आज भी उतनी ज़रूरत थी जितनी अगर इमाम हुसैन अमल करने का सबक़ न देते तो सैंकड़ो साल गुज़रने के बाद भी ज़िंदगी की तस्वीर नुमाया नहीं होती।
पंडित गोपीनाथ अमन देहलवी
इमाम हुसैन ने जो बात कही, सीधी साधी और सच्ची कही। उन्होंने चालबाज़ियों से काम न लिया। आख़िर हुसैन और उनके साथी शहीद हो गए। हुसैन इब्ने अली को सलाम जो हक़ परस्त था। हुसैन इब्ने अली को सलाम जिसने अपनी जान देकर इंसानियत का पैग़ाम दुनिया को दिया।
सर राधा कृष्णनन
इमाम हुसैन ने अपनी कुर्बानियों से दुनिया को साबित कर दिया की दुनिया में हक़ और सदाक़त को ज़िंदा रखने के हथियार और फौजो के बजाय जान की कुर्बानी पेश करके कामयाबी हासिल हो सकती है। उन्होंने कर्बला में दुनिया के सामने एक बेमिसाल नज़ीर पेश की है। आज हम उस बहादुर इमाम और इंसानियत को ज़िंदा रखने वाली अज़ीमुशान इंसान की याद मानते हुए दिलो में फख़्र का जज़्बा महसूस करते है।