लखनऊ: महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने पराक्रम से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। उनकी बहादुरी की गाथा राजस्थान के साथ पूरे देश में गाई जाती है। महाराणा प्रताप की 476वीं जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। वो एक ऐसे योद्धा थे, जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके। उनका संघर्ष इतिहास में अमर है। महाराणा, उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के बेटे थे। दुश्मन भी उनकी युद्धकला की तारीफ़ करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, महाराणा का परिवार भी काफी बड़ा था।
प्रताप के जन्म के साथ जीत का जश्न भी मिला
1540 में प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ किले में हुआ था और उनके जन्म के साथ ही महाराणा उदयसिंह ने खोए हुए चित्तौड़ किले को जीता। इस विजय यात्रा में जयवंता बाई भी उदयसिंह के साथ थीं। चित्तौड़ विजय के बाद उदयसिंह ने कई राजघरानों में शादियां की। जिसके बाद प्रताप की मां जयवंता बाई के खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गया। जयंवता बाई बालक प्रताप को लेकर चित्तौड़ दुर्ग से नीचे बनी हवेली में रहने लगीं। यहीं से उनका प्रशिक्षण शुरू हुआ।
चेतक और महाराणा प्रताप
जब महाराणा प्रताप ने मान सिंह पर वार किया तो वह झुककर बच गया, महावत मारा गया। बेकाबू हाथी को मान सिंह ने संभाल लिया। सबको भ्रम हुआ कि मान सिंह मर गया। दूसरे ही पल बहलोल खां पर प्रताप ने ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े कर दिए।
युद्ध में उनको गोली सहित आठ बड़े घाव लगे थे। तीर-तलवार की अनगिनत खरोंचें थीं। चेतक के घायल होने के बाद निकले प्रताप के घावों को कालोड़ा में मरहम मिला। इस पर बदायूनी लिखते हैं कि ऐसे वीर की ख्याति लिखते मेरी कलम भी रुक जाती है।
208 किलो का वजन लेकर लड़ते थे प्रताप
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी।