जन्मदिन स्पेशल: यहां किशोर दा के फैंस लगाते है दूध और जलेबी का भोग, गाने से करते है याद

Update: 2018-08-04 11:41 GMT

इंदौर: मध्य प्रदेश के खंडवा शहर की भौगोलिक ही नहीं, सांस्कृतिक विशेषता भी अनूठी है। दिलचस्प यह है कि खंडवा शहर के बीचोबीच बांबे बाजार में बॉलीवुड के महान गायक व अभिनेता किशोर कुमार का स्मारक स्थित है। किशोर कुमार के बचपन की कई यादें यहां बोलती नजर आती हैं। इसी जगह पर उनका बचपन बीता था। उनके नाम पर बनी स्मारक पर हर साल उनके फैंस भारी तादाद में पहुंचते है और वहां पर उन्हें दूध और जलेबी का भोग लगाते है।

newstrack.com आज आपको किशोर कुमार और उनसे जुड़ी स्मारक की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।

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किशोर दा की याद में बना है ये स्मारक

13 अगस्त 1987 को किशोर दा के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार खंडवा में किया गया था। उसी समय उनके फैन्स की तरफ से उनके नाम पर एक स्मारक बनाने की मांग उठी थी। उसके बाद वहीं पर किशोर दा के नाम पर स्मारक बनवा दिया गया। यहां पर हर साल उनके जन्मदिन और निधन के पर फैन्स का भारी जमावड़ा लगता है। स्मारक के आस पास काफी सजावट की जाती है। दिन भर किशोर दा के गाने बजते है। लोग उन्हें अपने –अपने ढ़ंग से याद करते है। बाकि दिनों में भी इस जगह पर लोगों का आना जारी रहता है।

दूध-जलेबी का लगाते है भोग

किशोर दा के चाहने वाले किशोर स्मारक पर पहुचंकर उनके जन्मदिन और निधन के दिन यहां दूध-जलेबी का भोग लगाते हैं। दरअसल, दूध-जलेबी किशोर कुमार को खूब पसंद था। उनकी पंसद का ख्याल रखते हुए उनके फैन्स यहां पर खुद के पैसे से सभी तरह के आवश्यक इंतजाम करते है। अगर इस दिन किशोर दा कोई फैन्स बाहर से कार्यक्रम में भाग लेने के आता है तो उसके रहने से लेकर खाने पीने का इंतजाम भी यहीं लोग करते है।

100 साल से भी अधिक पुराना है मकान

उनकी इच्छा के चलते खंडवा स्थित उनके पैतृक घर से ही उनकी अर्थी उठाई गई। किशोर कुमार का पैतृक घर यानी गांगुली निवास सौ साल पुराना है। उनके पिता कुंजीलाल गांगुली ने इसे बड़े ही जतन से बनवाया था। यह घर शहर के मुख्य व्यवसायिक क्षेत्र बांबे बाजार में है। घर के परिसर में 11 दुकानें हैं। इस घर का एरिया 7600 वर्गफीट है।

साल में दो बार खंडवा स्थित घर आते थे किशोर कुमार

किशोर कुमार फिल्मी मित्रों के साथ साल में दो बार खंडवा आते थे। उन्होंने मुंबई छोड़कर हमेशा के लिए इसी मकान में आने की तैयारी भी कर ली थी, लेकिन इससे पहले ही उनकी डेथ हो गई। वसीयत में लिखी आखिरी इच्छा के मुताबिक अंतिम संस्कार के पहले उनके पार्थिव शरीर को इसी मकान में लाया गया था। फिलहाल मकान पूरी तरह खंडहर हो चुका है।

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बेटे ने कहा था- बाबा का घर देखकर दिल को सुकून मिला

किशोर कुमार के छोटे बेटे सुमित गांगुली दो साल पहले अगस्त में अपने पैतृक घर पहुंचे थे। वे यहां एक घंटा रुके और घर के कोने-कोने में जाकर छत, दीवार और टूटे सामानों को गौर से देखते रहे। घर से बाहर निकलते हुए उन्होंने कहा था, "इस घर में पहली बार आया हूं। यहां आकर बाबा (किशोर कुमार) की यादें ताजा हो गईं।"सुमित किशोर कुमार और उनकी चौथी पत्नी लीना चंदावरकर के बेटे हैं। वे बचपन में किशोर कुमार के साथ खंडवा आ चुके हैं, लेकिन तब बमुश्किल दो-ढाई साल के रहे होंगे। सुमित ने कहा था, "यह मेरे बाबा की निशानी है। घर से बाबा के लगाव को याद किया तो भावुक हो गया। मैं घर के भीतर भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। बहुत देर बाद अपने आप पर काबू कर पाया। मकान को संवारने का प्रयास करेंगे। हम लोगों ने हर उस जगह को देखा, जहां बाबा कभी जाया करते थे। आज बाबा का घर देखकर दिल को सुकून मिला।"

मकान और दुकान की कीमत 12 करोड़ रुपए के करीब

26 अगस्त 2014 को किशोर कुमार के छोटे बेटे सुमित और अनूप कुमार के बेटे अर्जुन खंडवा में बांबे बाजार स्थित अपने पैतृक मकान पर पहुंचे थे। दोनों ने लीगल एडवाइजर एवं प्रापर्टी ब्रोकर के साथ मकान का जायजा लिया था। चप्पा-चप्पा देखने के बाद उन्होंने प्रापर्टी ब्रोकर से सौदे के संबंध में एक घंटे तक चर्चा की थी। स्थानीय खरीदारों के साथ ही इंदौर के प्रापर्टी ब्रोकर से मकान बेचने और कीमत पर सलाह मशविरा लिया था। मकान और दुकान की कीमत (सरकारी दर से) 12 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इसका बाजार मूल्य 15 से 16 करोड़ रुपए माना जा रहा है। हालांकि, किशोर कुमार के फैन्स चाहते हैं कि उनके घर पर स्मारक बनाया जाए।

खंडवा में बीता था बचपन

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था। पिता कुंजी लाल गांगुली पेशे से एडवोकेट थे। किशोर दा अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन से ही उनका मन पढ़ाई के अलावा संगीत सुनने में ज्यादा लगता था। जैसे –जैसे वह बड़े होते गये। उनका संगीत के प्रति रुझान बढ़ता गया। उन्होंने बड़े होने पर सिंगर बनने के लिए मुंबई जाने का फैसला किया।

18 साल की उम्र में आये थे मुंबई

किशोर कुमार 18 साल की उम्र में मुंबई में सिंगर बनने के लिए आये थे। लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी। उस समय तब उनके बड़े भाई अशोक कुमार फिल्म अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे। अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर दा एक्टिंग में अपनी पहचान बनाये लेकिन किशोर कुमार का मन एक्टिंग में कम और सिंगिंग में ज्यादा लगता था। उन्होंने सिंगिंग में कभी ट्रेनिंग भी नहीं ली थी।

न चाहते हुए भी करनी पड़ी एक्टिंग

किशोर कुमार ने न चाहते हुए भी एक्टिंग में कदम रख दिया। उनकी आवाज अच्छी थी। जिन फिल्मों ने वह बतौर एकत्र काम किया करते थे। उसी फिल्म में उन्हें गाने का मौक़ा भी मिल जाया करता था। उनकी आवाज सहगल से काफी मिलती थी। बतौर गायक 1948 में देवानंद की फिल्म ‘जिद्दी’ में उन्हें मरने की दुवाएं क्या मांगू गाने का मौक़ा मिला। इसके बाद उन्हें एक के बाद एक फिल्मों में गाने के लिए मौक़ा मिला।

एक्टिंग और सिंगिंग के अलावा किया ये सभी काम

किशोर कुमार ने वर्ष 1951 में बतौर एक्टर फिल्म आन्दोलन से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन इस फिल्म से वह दर्शकों के बीच अपनी खास पहचान नहीं बना पाए। 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘लड़की’ उनकी करियर की पहली सुपरहिट फिल्म रहीं। जिसके बाद उन्हें बॉलीवुड में एक सफल एक्टर के तौर पर उनको पहचान मिली। 1964 में उन्होंने फिल्म दूर गगन की छांव से निर्देशन में कदम रखा। उन्होंने बॉलीवुड को बढ़ती का ‘नाम दाढ़ी’, ‘शाबास डैडी’ जैसी कई अन्य सुपरहिट फ़िल्में भी दी।

8 बार मिला फेयर फेयर अवार्ड

किशोर कुमार को उनके गाये गीतों के लिए 8 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने पूरे फ़िल्मी करियर में 600 सौ से भी अधिक फिल्मों में अपनी आवाज दी थी। उन्होंने बंगला, मराठी, असामी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, उडिया आदि भाषाओं में गीत गए थे।

1987 में दुनिया को कह गये अलविदा

किशोर दा ने 1987 में फिल्मों से सन्यास लेने का फैसला किया था। वे अपने पैतृक निवास खंडवा में जाकर रहना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए तैयारी भी कर ली थी। लेकिन 13 अगस्त 1987 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया। उनका गांव का सपना अधूरा ही रह गया।

 

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