आशुतोष सिंह
वाराणसी: बेटियों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में अभियान छेड़ रखा है। गांव-गांव, शहर-शहर इस अभियान को आंदोलन की शक्ल देने की कोशिश हो रही है। बनारस में इस आंदोलन की अगुवाई एक महिला डॉक्टर शिप्रा धर कर रही हैं। शिप्रा के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है बेटियों को बचाना। उनका यह मिशन एक जुनून का रूप ले चुका है।
अपने मिशन को पूरा करने के लिए शिप्रा धर जी-जान से जुटी हैं। देश के नामी शिक्षा संस्थान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से एमडी की डिग्री ले चुकी शिप्रा के लिए डॉक्टरी कमाने का पेशा नहीं है। वे इसे समाज और बेटियों की सेवा करने का एक बेहतर मौका मानती हैं।
एक घटना ने बदल दी सोच
शिप्रा धर ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद तय किया कि वे किसी सरकारी नौकरी को चुनने के बजाय खुद का अस्पताल खोलेंगी, लेकिन डेढ़ साल पहले उनके अस्पताल में कुछ ऐसा हुआ, जिसने उनके जीने का अंदाज और नजरिया ही बदल दिया। शिप्रा धर ने बताया कि लगभग डेढ़ साल पहले एक अधेड़ महिला अपनी गर्भवती बहू के साथ मेरे अस्पताल पहुंची।
इलाज के दौरान बहू ने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया, लेकिन बेटियों को बोझ समझने वाली दादी के दिल में उस बेटी के लिए कोई जगह नहीं थी। खुशी के बजाय वह महिला गुस्से से तमतमाई हुई थी। घर में बेटी पैदा होने की टीस उस महिला के जेहन में कुछ इस कदर थी कि उसने अपनी बहू के साथ ही मुझे भी जमकर ताने मारे।
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बेटी होने पर मुफ्त करती हैं इलाज
उस महिला के तानों ने अस्पताल की तस्वीर बदल दी। इस घटना के बाद डा. शिप्रा ने अस्पताल में पैदा होने वाली सभी बेटियों का इलाज मुफ्त करने की ठान ली। तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। सिर्फ बेटियों का मुफ्त इलाज ही नहीं, डा. शिप्रा 6 लड़कियों की पढ़ाई का भी खर्च उठा रही हैं। लड़कियों को बेहतर तालीम दिलाने के लिए शिप्रा आने वाले दिनों में एक स्कूल भी खोलने की योजना बना रही हैं ताकि हर गरीब और बेसहारा बेटी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
लोगों के लिए मिसाल बनी शिप्रा की मुहिम
शिप्रा की यह मुहिम शहर के लोगों के लिए मिसाल बन गई है। शिप्रा के इस नेक काम में मदद के लिए कई संस्थाएं भी आगे आ रही हैं। अब उनके अस्पताल में आने वाले लोगों की सोच भी बदल रही है। अस्पताल पहुंचने वाली लीलावती कहती हैं कि अब लडक़ा हो या लड़की, कोई फर्क नहीं।
बिटिया होगी तो उसे शिप्रा मैडम की तरह डॉक्टरनी बनाऊंगी। शिप्रा अब उन बेटियों के लिए काम करती हैं, जिन्हें दुनिया में कदम रखते ही दुत्कारा जाता है, जिनके पैदा होने पर जश्न नहीं मातम मनाया जाता है। अब तक उनके अस्पताल में कुल 90 खुशनसीब बेटियों ने जन्म लिया और डा. शिप्रा ने सभी बेटियों का मुफ्त इलाज कर उनके परिवार के लोगों को बड़ा गिफ्ट दिया।
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पति ने दिया हर मोड़ पर साथ
अगर शिप्रा बेटियों के लिए मुहिम चला रही हैं तो इसके पीछे उनके पति मनोज श्रीवास्तव का भी योगदान है। पत्नी के हर कदम पर साथ देने वाले मनोज श्रीवास्तव भी डॉक्टर हैं। पत्नी पर फक्र करते हुए मनोज कहते हैं कि समाज में हाशिए पर जा चुकी आधी आबादी को सहारे की नहीं बल्कि मजबूत करने की जरुरत है। बेटियों को बचाने के लिए समाज में बड़े बदलाव की जरुरत है और उनकी पत्नी इसी बदलाव की प्रतीक बनकर उभरी हैं।
बेटियों को बचाने के लिए जारी इस मुहिम ने शिप्रा को नई पहचान दी है। शहर की बेटियों के लिए शिप्रा एक नई संभावना बनकर उभरी हैं। यकीनन डॉक्टर शिप्रा की सीमाएं सीमित हैं, लेकिन बेटियों के लिए किए जाने वाले काम को लेकर उनकी इच्छाएं अनंत हैं और वे उन पर काम कर रही हैं। उनकी छोटी सी कोशिश समाज के लिए एक आईना है। उन लोगों के लिए एक नजीर है जिनके लिए बेटियां एक बोझ होती हैं।