स्‍टेशन पर कचरा बीनने वाले बच्‍चों को मिली अनोखी मां, करती हैं हर मदद

Update: 2016-05-08 09:41 GMT

गोरखपुर: मां इस शब्द को सुन करके ही एक शक्ति का एहसास होता है क्योंकि मां शब्द में ही एक शक्ति है। कुछ इसी तरह का उदाहरण गोरखपुर में देखने को मिला है। जहां सीमा अग्रवाल ने अपने सारे काम को देखते हुए अपने कुछ साथियों की मदद से ये बेड़ा उठाया है। ये उन बच्चों को पढ़ाने में मदद करती है, जो बच्चे रेलवे स्टेशन पर कचरा बीनने का काम करते हैं व नशाखोरी में लिप्त हो चुके हैं।

गोरखपुर में रहने वाली सीमा अग्रवाल जो अपने दो बच्चों के साथ रहती है और अपने जीवन यापन के लिए एक दुकान चलाती हैं। लेकिन इन सब कामों के बाद भी वो अपना कुछ समय उन बच्चों को देती हैं, जिनके मां बाप नहीं हैं। वो बच्चे अपना जीवन यापन करने के लिए रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने का काम करते हैं। और तो और उसमें कुछ बच्चे तो ऐसे भी हैं, जो पूरी तरह से नशे में लिप्त हो चुके हैं

सीमा अग्रवाल रोज तीन बजे गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पास सड़क पर ही आ कर लगभग 50 बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। वे उनको किताबें, खाना, कपड़े और खेलकूद का सामान अपने साथियों की मदद से करती हैं। बच्चे भी पूरे दमखम से पढ़ने, खेलने कूदने और खाने में लगे रहते हैं। इतना ही नहीं आज मदर डे के दिन इन बच्चों के साथ अपना अनमोल समय देकर सीमा अग्रवाल और उनकी साथी कृति पाण्डेय ने बच्चों के साथ केक भी काटा |

क्‍या है डॉ. कृति का कहना

डॉ. कृति पाण्डेय का कहना है की आज मदर डे है और इन सभों मे कितने सारे बच्चे ऐसे हैं, जिनके पैरेंट्स नहीं हैं। तो हमने मदर डे इन बच्चों के साथ मनाने का सोचा। जिससे इन बच्चों को भी अच्छा लगे। आज पहली बार लग रहा है की हम लोग अच्छे से मदर डे मना रहे हैं ।

हम अपने बच्चों और परिवार से समय निकाल कर आती हूं। इन बच्चों को पढ़ाना और खाना खिलाना हमको बहुत अच्छा लगता है। इन बच्चों मे बहुत बच्चे ऐसे हैं, जिनके मां बाप नहीं है। उन बच्चों को हम मां की तरह प्यार देते हैं। इनमें बहुत बच्चे ऐसे हैं, नशे में लिप्त हो चुके हैं। लेकिन हम लोगों ने काफी हद तक प्रयास कर के उन बच्चों को सुधार दिया है ।

बच्‍चे भी हैं काफी खुश

एक तरफ जहां बिन मां के बच्‍चे मां के प्‍यार के लिए तरसते हैं, वहीं स्‍टेशन पर रहने वाले राजू का कहना है कि उनकी कृति दीदी बहुत अच्‍छी हैं। वे उन्‍हें पढ़ाने के साथ साथ कपड़े और खाने का सामान भी देती हैं। उन्‍हें कृति के रूप में लगता है कि जैसे उनकी मां हैं वो।

राजू, छात्र

 

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