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लखनऊ: सौ, पांच सौ और हज़ार के करारे नोट सबको अच्छे लगते हैं। भारत का रुपया हो या यूरोप का यूरो या फिर अमेरिका का डॉलर आम तौर से लोग समझते हैं कि नोट कागज से तैयार किए जाते हैं। ये सब नोट कागज से नहीं बल्कि कपास से बनते हैं। भारत सहित कई देशों में नोट बनाने के लिए कपास को कच्चे माल की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
कागज की अपेक्षा कपास ज्यादा मुश्किल हालात सह सकता है। कपास के रेशे में लेनिन नामक फाइबर होता है और बाकि के मिश्रण में गैटलिन और आधेसिवेस नामक सोलुशन का इस्तेमाल किया जाता है, जो नोट बनाने वाले कागज़ को उम्रदराज़ बनाता है।
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नोट बनाने के लिए सबसे पहले कपास को एक खास प्रक्रिया से गुजारा जाता है। कपास की ब्लीचिंग और धुलाई करने के बाद उसकी लुग्दी बनाई जाती है। इसका असली फॉर्मूला सीक्रेट रखा जाता है। इसके बाद सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन उस लुग्दी को कागज की लंबी शीट में बदल देती है। इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर डाले जाते हैं। दुनिया के सभी देशों में हर नोट बिल्कुल अनोखा होता है। उसका अपना नंबर होता है। नोट छापने वाले प्रिटिंग प्रेस अलग-अलग नंबर छापती हैं।
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भारतीय नोट के सारे डिज़ाइन रिज़र्व बैंक ही तय करता है। यह नोट छापे भी इनकी ही प्रेस में जाते हैं । लेकिन इन नोटों को जारी करने से पहले भारत सरकार से मंजूरी लेना जरूरी है। नोटों की प्रिंटिंग नासिक, देवास, मैसूर और सालबोनी में स्थित चार मुद्रण प्रेसों में की जाती है। जबकि सिक्कों की ढलाई मुंबई, नोएडा, कोलकाता और हैदराबाद में स्थित चार टकसालों में की जाती है।
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भारतीय रुपए में सबसे ज्यादा सिक्योरिटी फीचर होते हैं इनकी मदद से जालसाजी या नकली मुद्रा के चलन को रोकने की कोशिश होती है जालसाजी को रोकने के लिए निजी प्रिंटरों पर नकेल कसी जाती है। समय-समय पर नयापन एक नोट को जस का तस बाजार में बहुत समय तक नहीं रखा जा सकता। ऐसा करने से नकली नोट बनाने वालों को मौका मिलता है। लिहाजा समय समय पर नोटों का डिजायन बदला जाता है। आम तौर पर 5,10,20,50,100 और 500 के नोटों को अलग-अलग सालों में बदला जाता है।
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भारत विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है, जहां सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। 6वीं सदी ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा' से जोड़ा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चांदी।
शेरशाह सूरी के शासनकाल के दौरान शुरू किया गया ‘रुपया’ आज तक प्रचलन में है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह प्रचलन में रहा, इस दौरान इसका वज़न 11.66 ग्राम था और इसके भार का 91.7% तक शुद्ध चांदी थी। पहले रुपए (11.66 ग्राम) को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था। भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में होने लगी।
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इस प्रकार मौजूदा भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया। इसीलिये भारत में कभी-कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था। महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की श्रंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद भी पाकिस्तान भारतीय नोट इस्तेमाल करता था। उस पर पाकिस्तान की स्टाम्प लगी होती थी। यह सिलसिला तब तक चला जब तक पाकिस्तान ने खुद के नोट बनाने शुरू नहीं किए।
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भारतीय रुपए के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक' (1784-91) थे। शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए काग़ज़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 मूल्य के होते थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बनाया जाने लगा था। 1954 से 1978 के बीच में 5000 और 10000 के नोट भी चला करते थे जिन्हें बाद में बंद कर दिया गया।
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भारतीय रुपए के नोट के पर भारत की 22 सरकारी में से 15 भाषाओं असमिया, बंगला, गुजराती,कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू में उनका मूल्य मुद्रित है। 10 रुपए के एक नोट को छापने के लिए सरकार को 0.75 रुपए , 20 रुपए के लिए 0.95 रुपए है, 50 रुपए के एक नोट को छापने के लिए 1.23 रुपए की लागत आती है। 100 रुपये के एक नोट को छापने की लागत 1.44 रुपये जबकि 500 रुपए के एक नोट को छापने की लागत 2.64 रुपये आती है। भारत में छपने वाला सबसे बड़े नोट 1000 रुपए का है। जिसे छापने के लिए सरकार को 3.17 रुपए चुकाने होते हैं।
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