मालदीव और इंडिया के रिश्ते समाप्त होने की कगार पर, जानिए क्यों जरुरी है ये देश

Update:2018-08-12 15:10 IST

नई दिल्‍ली : पड़ोसी देश मालदीव और इंडिया के रिश्ते कभी मधुर हुआ करते थे। लेकिन मौजूदा प्रेसिडेंट अब्‍दुल्‍ला यामीन का झुकाव चाइना की तरफ अधिक है। अब्‍दुल्‍ला यामीन चाइना को खुश करने के लिए इंडिया से रिश्‍ते समाप्त करने की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में आप ये जानिए कि आखिर क्यों मालदीव से अच्छे रिश्ते हमारे देश के लिए जरुरी है।

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हिंद महासागर में रणनीतिक, सामरिक और कूटनीतिक तौर पर भारत के लिए जरुरी

मालदीव की दुनिया के मैप में स्थिति उसे चाइना और इंडिया दोनों के लिए रणनीतिक, सामरिक और कूटनीतिक तौर पर जरुरी बना देती है। चाइना यहां से भारतीय जहाजों और सबमरीन पर आसानी से नजर रख सकता है। इसके लिए उसे कोई बड़ा सैन्य इन्फ्रा नहीं खड़ा करना होगा। चाइना इस देश में तेजी से सड़क, पुल और एयरपोर्ट के साथ बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। जो भविष्य में उसके ही काम आने हैं। जब की मालदीव सरकार को लगता है कि ये उसके लिए फायदे का सौदा है।

वहीँ इंडिया की बात करे तो मालदीव मिडल ईस्ट के बीच सबसे अधिक व्यस्त जहाजी मार्ग के करीब है। ऐसे में हमारा व्यापार प्रभावित होता। देश की आर्थिक स्थति बिगड़ेगी सामरिक तौर पर भी मालदीव में चाइना की मौजूदगी टेंशन पैदा करने वाली है।

इंडिया के साथ संबंध समाप्ति की तरफ

मालदीव इंडिया के हेलीकॉप्‍टर और वहां मौजूद सैनिकों को अब और देश में नहीं रहने देना चाहता। इंडिया और चाइना के बीच अनुबंध पिछले जून माह में ही समाप्त हो चुका है। इंडिया में मालदीव के राजदूत अहमद मोहम्मद ने यह इच्छा जाहिर की है कि आगे ऐसा अनुबंध न हो। और इंडिया ने जो वर्ष 2013 में दो ध्रुव हेलीकॉप्‍टरों दिए थे वो और भारतीय नौसेना के 28 जवानों का दल उसे वापस बुला ले।

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इंडियंस को नौकरी के लिए ना

चाइना के कहने पर मालदीव सरकार इंडियंस को वर्क परमिट और बिजनेस वीजा जारी नहीं कर रही। कई इंडियंस जो छुट्टी पर घर आये थे अब वो वापस नहीं जा सकते हैं। इंडिया ने इस मामले में कूटनीतिक दबाव बनाने का प्रयास किया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिला।

मालदीव में जो भी नौकरियों के लिए आवेदन मांगे जा रहे हैं उनमें लिखा जा रहा है कि इंडियंस आवेदन न करें।

एहसानमंद नहीं एहसानफरामोश

2014 में मालदीव के वाटर प्‍लांट में भयंकर आग लगी थी उस समय इंडिया ने हजारों लीटर पीने का पानी दिया था। उस समय चाइना ने साथ नहीं दिया।

इसके साथ ही 1988 में इंडिया ने ही उसपर कब्‍जा होने से बचाया था। आर्मी द्वारा चलाए गए ‘आपरेशन कैक्टस’ को वहां का आम आदमी तो याद करता है लेकिन वहां की सरकार उसे भूल चुकी है।

सिर्फ इतना ही नहीं 1965 में आजादी के बाद इंडिया ने ही सबसे पहले मालदीव को मान्यता दी थी। वर्ष 1972 में माले में दूतावास स्थापित किया। मालदीव में इस समय तक़रीबन 30 हजार इंडियंस रहते हैं।

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