World Disabled Day: दिव्यांगों ने दिया समाज को यह पैगाम, दया नहीं, चाहिए हमें सम्मान

Update: 2016-12-02 10:48 GMT

लखनऊ: उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते, दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते..

हो दिल में जिसके जज़्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से घबराया नहीं करते...

वो देख नहीं सकते हैं, फिर भी अपने किसी काम के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहते, वह सुन नहीं सकते, पर कभी दूसरों को बुरा नहीं बोलते हैं। वह बोल नहीं सकते हैं, लेकिन उनकी खामोशी किसी के अल्फाजों की मोहताज नहीं होती है। वह चल नहीं सकते हैं, पर फिर भी वह दूसरों के कंधे नहीं ढूंढते हैं। हम बात कर रहे हैं, उन दिव्यांगों की, जिन्हें आज भी समाज के कुछ लोग जिंदगी का अभिशाप मानते हैं। 'दिव्यांग' शब्द आते ही कुछ लोगों के मन में इनके लिए दया आ जाती है, तो कुछ लोगों के मन में नफरत सब कुछ हासिल कर लेने के बावजूद भी दिव्यांगों को समाज से ऐसे अलग किया जाता है। दिक्कत तो इस बात कि है कि यह सोच न केवल अनपढ़ लोग रखते हैं। बल्कि कई बार पढ़े-लिखे लोग भी इस छोटी सोच के शिकार होते हैं।

केवल शरीर का एक अंग निशक्त हो जाने से कोई अलग नहीं हो जाता है। सभी जानते हैं कि दिव्यांगता से कोई पीछा नहीं छुड़ा सकता है। लेकिन सच तो यह है कि इससे हार मान कर वह अपनी जिंदगी के उद्देश्य और खुशियों को हासिल करना भी नहीं छोड़ता है। दूसरों की दिव्यांगता का मजाक उड़ाने वाले अगर कभी एक भी दिन इन दिव्यांगों की जिंदगी जीकर देखे, तो शायद उन्हें समझ आएगा कि जिंदगी के संघर्ष में कैसे मुस्कुराया जाता है?

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जो लोग दिव्यांगों को बेसहारा समझते हैं, उन्हें जरुरत है बस एक बार उनकी दुनिया में जाकर देखने की ये दिव्यांगों की दुनिया बहुत खूबसूरत होती है। ये अपनी संघर्ष भरी जिंदगी को भी बड़ी ख़ुशी के साथ जीते हैं। न तो इनमें एक-दूसरे से जलन की भावना होती है और ना ही नफरत आंखों से ना देख पाने के बावजूद ये अपने काम खुद करते हैं। वो एक छड़ी को अपना हमसफर बना लेते हैं। एक बार को अगर जरा सा अंधेरे में और लोगों को छोड़ दिया जाए, तो वह परेशान हो जाते हैं। एक मिनट आंखें बंद करके एक कमरे से दूसरे कमरे नहीं जा पाते। फिर ऐसे लोग दिव्यांगों से खुद की बराबरी कर सकते हैं। जरा सोचकर देखिए कि आखिर कौन है ज्यादा सक्षम?

कहते हैं कि भगवान जिसे दुःख देता है, उसे उससे निपटने की शक्ति भी खूब देता है। तभी तो बोल न सकने वाले लोग अपनी हर बात को इशारों में समझा ले जाते हैं। इनकी जिंदगी जितनी प्रेरणाओं से भरी होती है, उतनी एक नॉर्मल इंसान की नहीं। तो फिर आखिर समाज में कुछ लोग दिव्यांगों को हीन नजरों से क्यों देखते हैं? आज दुनिया में तमाम ऐसे दिव्यांग हुए हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े कामों से लोगों को हैरान किया है। ऐसी मिसालें पेश की हैं, जिन्हें सुनकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं होती है, जो ऐसे लोगों को लोग हीन नजरों से देखते हैं।

खैर एक तरफ जहां समाज के कुछ लोग दिव्यांगों को दया का पात्र समझते हैं तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो न केवल इन्हें सम्मान देते हैं बल्कि इनके हक़ के लिए भी लड़ रहे हैं। विश्व दिव्यांग दिवस के मौके पर जब Newstrack.com ने दिव्यांगों से मिलकर उनके विचार जानने की कोशिश की, तो पता चला कि आखिर दिव्यांग क्या चाहते हैं?

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शकुंतला यूनिवर्सिटी में बीए फर्स्ट इयर की पढ़ाई करने वाले दिव्यांग शिव मोहन निषाद का कहना है कि वह दिव्यांग हैं, इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं है। उनकी लाइफ का मकसद है कि वह अपने जैसे लोगों को शिक्षित कर सकें। वहीं उनके एक दोस्त का कहना है कि जब से प्रधानमंत्री मोदी जी ने उनके लिए दिव्यांग जैसे शब्द का यूज किया है, तब से उनमें काफी कॉन्फिडेंस बढ़ा है। इन लोगों का मानना है कि वे अपने काम के लिए दूसरों का सहारा नहीं ढूंढते हैं।

आगे की स्लाइड में जानिए क्या है दिव्यांग लाइब्रेरियन पूरण लाल का कहना

दिव्यांग पूरन लाल का कहना है कि वह जिस यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरियन के तौर पर काम करते हैं। वहां पर दिव्यांगों के साथ जरा भी भेदभाव नहीं किया जाता है। वहीं उनके साथ भी सभी अच्छे से व्यवहार करते हैं। उनका कहना है कि हमारे देश में दिव्यांग दिवस मनाने के लिए जरुरी है कि लोगों को जागरूक किया जाए। ताकि जो लोग अपनी दिव्यांगता को अभिशाप समझते हैं, उनमें कुछ करने की हिम्मत जाग सके।

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शकुंतला यूनिवर्सिटी में डी.एड की पढ़ाई करने वाले रिंकू सिंह का कहना है कि एक टाइम था, जब उन्हें अपने दिव्यांग होने पर शर्म आती थी। उन्हें तब काफी बुरा लगता था, जब लोग उनके जैसे लोगों के लिए विकलांग जैसे भद्दे शब्द का प्रयोग करते थे। वह कहते हैं कि जब से प्रधानमंत्री मोदी ने 'दिव्यांग' शब्द शुरू किया है। तब से उन्हें भी लगने लगा कि वह उसी समाज का हिस्सा है, जिन्हें अब तक यह समाज हीन नजरों से देखता था। रिंकू सिंह ने मोदी जी को धन्यवाद किया है।

आगे की स्लाइड में जानिए क्या है दिव्यांग विकास मौर्या का कहना

दिव्यांग विकास मौर्या का कहना है कि दुनिया के किस संविधान में लिखा है कि यह दुनिया केवल नॉर्मल लोगों के लिए है? आखिर क्यों दिव्यांग लोगों को कुछ लोग समाज का हिस्सा नहीं मानते हैं? वह कहते हैं कि जब हम लोग भी उतनी ही पढ़ाई लिखाई कर रहे हैं, उतनी ही मेहनत कर रहे हैं, तो फिर हम वह जगह क्यों नहीं हासिल कर सकते हैं, जो कि आम लोगों के लिए है।

वह कहते हैं कि उन्हें इस बात की ख़ुशी है। आज दिव्यांगों के लिए लोगों का नजरिया बदल रहा है। लोग हमारे जैसों की हेल्प के लिए खुद आगे आ रहे हैं। लेकिन फिर भी लोगों को हम जैसे लोगों के प्रति दया नहीं बल्कि सम्मान भाव रखना चाहिए।

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दिव्यांग जय प्रताप का कहना है कि उन्हें चलने-फिरने में प्रॉब्लम होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपनी मंजिल को पाने के लिए कदम बढ़ाना छोड़ देंगे। इनका कहना है कि समाज के लोगों से इनकी एक रिक्वेस्ट है कि हमें अपने से अलग न समझें। हम भी बिलकुल आपकी तरह ही हैं। दिव्यांग दिवस पर जागरूकता फैलाने की जरुरत है।

जब टूटने लगे हौसले तो बस ये याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,

ढूंढ ही लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते...

दिव्यांग जब अपनी दिव्यांगता को हरा सकते हैं। अपने हौसलों के दम पर दुनिया को जीत लेने की चाह रख सकते हैं, तो फिर दिव्यांगता कैसी? लोगों को चाहिए कि वह ऐसी लोगों का हौसला बढ़ाएं। इनके अधिकारों से इन्हें रूबरू कराएं, इन्हें बंदी न बनने दें। लोग ये बात ना भूलें की अपंग और विकलांग कोई भी-कभी भी बन सकता है। जिन नफरत भरी नज़रों से लोग इन्हें देखते है। उन्हीं नज़रों में अगर खुद के किसी व्यक्तिगत आपातकाल का नजराना देख लें। तो विकलांगो के प्रति ये भावना अपने आप दूर हो जाएगी। विकलांग दिवस तक सुनिश्चित करने पर इन सबका क्या फायदा? अगर इनसे उन लोगों को कोई ख़ुशी ही न मिले क्योंकि इनका आत्मसम्मान तो फिर भी ठोकरें खा ही रहा है।

 

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