Navratri 2022: विंध्याचल में हिमालय की पुत्री "शैलपुत्री" की होती है पूजा, देखें Video

Navratri 2022: सोमवार 26 सितंबर को भोर में मंगला आरती के साथ नौ दिन का नवरात्रि आरम्भ हो गया । नौ दिनों तक नवदुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती हैं।

Report :  Brijendra Dubey
Update:2022-09-26 09:56 IST

 मिर्जापुर: विंध्याचल में हिमालय की पुत्री "शैलपुत्री" की होती है पूजा

Mirzapur News: सोमवार 26 सितंबर को भोर में मंगला आरती के साथ नौ दिन का नवरात्रि (Navratri 2022) आरम्भ हो गया । नौ दिनों तक नवदुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती हैं। अभीष्ट सिद्धि और योग में भक्तों की हर कामना पूरा करेगी मां दुर्गा । आदिशक्ति जगदम्बा (Adishakti Jagadamba) का परम धाम विन्ध्याचल केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि प्रमुख शक्तिपीठ है । शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri Special) में लगने वाले विशाल मेले में दूर-दूर से भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं । नवरात्र में आदिशक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है ।

पहले दिन हिमालय की पुत्री पार्वती अर्थात शैलपुत्री के रूप में आदिशक्ति का सविधि पूजन अर्चन करने का विधान है । प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली मां का यह स्वरूप सभी के लिए वन्दनीय है । विन्ध्यपर्वत और पापनाशिनी मां गंगा के संगम तट पर विराजमान मां विंध्यवासिनी की शैलपुत्री के रूप में दर्शन देकर अपने सभी भक्तों का कष्ट दूर करती है। नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन किया । घंटे की ध्वनी और जयकारे से विन्ध्य क्षेत्र गुंजायमान रहा । एक रिपोर्ट...

बिंदुवासिनी के नाम से भी जाना जाता है इन्हे

अनादिकाल से भक्तों के आस्था का केंद्र बने विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी मां भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान मां विंध्यवासिनी का प्रथम दिन शैलपुत्री के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है । शैल का अर्थ पहाड़ होता है कथाओं के अनुसार पार्वती पहाड़ो के राजा हिमालय की पुत्री थी । पर्वत राज हिमालय की पुत्री को शैलपुत्री भी कहा जाता है उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है ।

भारत के मानक समय के लिए बिंदु के रूप में स्थापित विन्ध्यक्षेत्र में माँ को बिन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है । प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ शैलपुत्री सभी के लिए आराध्य है । कलश स्थापना कर पूजन करने से नौ दिन में माँ दुर्गा मन, वचन, कर्म सहित इस शरीर के नौ द्वार से सभी भक्तों की मनोकामना को पूरा करती है । भक्त को जिस - जिस वस्तुओं की जरूरत होता है वह सभी माता रानी प्रदान करती है । आज के दिन साधक के मुलचक्र जागरण होता है।

विदेशों से आते हैं भक्त माता के दर्शन के लिए

सिद्धपीठ में देश के कोने-कोने से ही नहीं विदेश से आने वाले भक्त माँ का दर्शन पाकर निहाल हो उठते है । दर्शन करने के लिए लम्बी लम्बी कतारों में लगे भक्त माँ जयकारा लगाते रहते हैं । भक्तो की आस्था से प्रसन्न होकर माँ उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती है । जो भी भक्त की अभिलाषा होती है माँ उसे पूरी करती हैं । माँ के धाम में पहुंचकर भक्त परम शांति की अनुभूति करते है । उन्हें विश्वास है कि माँ सब दुःख दूर कर देगी, विंध्य कारीडोर के निर्माण का कार्य प्रगति पर है, जिसके कारण पहले से व्यवस्था अच्छी हो गई है।

नवरात्र में मां के अलग - अलग रूपों की पूजा कर भक्त सभी कष्टों से छुटकारा पाते हैं । माता के किसी भी रूप में दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है और माँ अपने भक्तो के सारे कष्टों का हरण कर लेती है । नवरात्र के नौ दिन विंध्य क्षेत्र में लाखों भक्त माँ का दर्शन पाने के लिए आते हैं ।

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